व्यवस्थाविवरण 10:1-22

  • दोनों पटियाएँ दोबारा बनायी गयीं (1-11)

  • यहोवा क्या चाहता है (12-22)

    • यहोवा का डर मानो; उससे प्यार करो (12)

10  उस वक्‍त यहोवा ने मुझसे कहा, ‘तू पत्थर काटकर अपने लिए दो पटियाएँ बनाना जो पहली पटियाओं जैसी हों+ और लकड़ी का एक संदूक* भी बनाना। फिर तू पहाड़ पर मेरे पास आना।  उन पटियाओं पर मैं वे शब्द लिखूँगा जो मैंने पहली पटियाओं पर लिखे थे, जिन्हें तूने चूर-चूर कर डाला था। फिर उन पटियाओं को तू संदूक में रखना।’  तब मैंने बबूल की लकड़ी का एक संदूक बनाया और पत्थर काटकर पहले जैसी दो पटियाएँ बनायीं और उन दोनों पटियाओं को हाथ में लिए पहाड़ पर गया।+  तब यहोवा ने उन पटियाओं पर वे दस आज्ञाएँ*+ लिखीं जो उसने पहली पटियाओं पर लिखी थीं+ और मुझे दे दीं। ये वही आज्ञाएँ थीं जो यहोवा ने तुम्हारी पूरी मंडली को+ पहाड़ पर आग में से बात करते वक्‍त दी थीं।+  फिर मैं पहाड़ से नीचे उतर आया+ और मैंने वे पटियाएँ उस संदूक में रख दीं जैसे यहोवा ने मुझे आज्ञा दी थी। और वे पटियाएँ उसी संदूक में रखी रहीं।  इसके बाद इसराएली बएरोत-बने-याकान से रवाना हुए और मोसेरा पहुँचे। वहाँ हारून की मौत हो गयी और उसे दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा एलिआज़र याजक के नाते सेवा करने लगा।+  इसके बाद इसराएली मोसेरा से रवाना होकर गुदगोदा आए और गुदगोदा से योतबाता+ गए जहाँ बहुत-सी नदियाँ* थीं।  उसी दौरान यहोवा ने लेवी गोत्र को अलग किया+ कि वे यहोवा के करार का संदूक उठाएँ,+ यहोवा के सामने हाज़िर रहकर उसकी सेवा करें और उसके नाम से लोगों को आशीर्वाद दिया करें,+ जैसा कि वे आज तक कर रहे हैं।  इसीलिए लेवियों को अपने बाकी इसराएली भाइयों की तरह देश में ज़मीन का कोई हिस्सा या विरासत नहीं दी गयी। यहोवा ही उनकी विरासत है, जैसे तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने उन्हें बताया था।+ 10  मैं एक बार फिर पहाड़ पर गया और पहले की तरह 40 दिन, 40 रात वहीं रहा+ और यहोवा ने इस बार भी मेरी बिनती सुनी।+ इसीलिए यहोवा ने तुम्हें नाश न करने का फैसला किया। 11  फिर यहोवा ने मुझसे कहा, ‘अब तू लोगों की अगुवाई कर और सफर में आगे बढ़ने के लिए उन्हें तैयार कर ताकि वे जाकर उस देश को अपने अधिकार में कर लें जिसे देने के बारे में मैंने उनके पुरखों से शपथ खायी थी।’+ 12  अब हे इसराएलियो, तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुमसे क्या चाहता है?+ बस यही कि तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा का डर मानो,+ हर बात में उसकी बतायी राह पर चलो,+ उससे प्यार करो, पूरे दिल और पूरी जान से अपने परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करो+ 13  और यहोवा की उन आज्ञाओं और विधियों का पालन किया करो जो आज मैं तुम्हें दे रहा हूँ। ऐसा करने से तुम्हारा ही भला होगा।+ 14  देखो, तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा आकाश का मालिक है, ऊँचे-से-ऊँचा आकाश और धरती और जो कुछ उसमें है सब उसी का है।+ 15  मगर यहोवा सिर्फ तुम्हारे पुरखों के करीब आया और उनसे प्यार किया और उनके बच्चों को, हाँ, सब राष्ट्रों में से तुम लोगों को चुना+ जैसा कि आज ज़ाहिर है। 16  अब तुम लोग अपने दिलों को शुद्ध करो*+ और ढीठ बनना छोड़ दो+ 17  क्योंकि तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा सब ईश्‍वरों से महान ईश्‍वर है+ और सब प्रभुओं से महान प्रभु है, वह महाप्रतापी, शक्‍तिशाली और विस्मयकारी परमेश्‍वर है जो किसी के साथ भेदभाव नहीं करता,+ न ही रिश्‍वत लेता है। 18  वह अनाथों* और विधवाओं को न्याय दिलाता है।+ वह तुम्हारे बीच रहनेवाले परदेसियों से प्यार करता है+ और उनके खाने-पहनने की ज़रूरतें पूरी करता है। 19  तुम भी परदेसियों से प्यार करना क्योंकि एक वक्‍त तुम खुद मिस्र में परदेसी हुआ करते थे।+ 20  तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा का डर मानना, उसी की सेवा करना,+ उससे लिपटे रहना और उसके नाम से शपथ लेना। 21  तुम सिर्फ उसी की बड़ाई करना।+ वह तुम्हारा परमेश्‍वर है जिसने तुम्हारी खातिर महान और विस्मयकारी काम किए हैं, जैसे तुमने खुद अपनी आँखों से देखा है।+ 22  जब तुम्हारे बाप-दादे मिस्र गए थे तब वे सिर्फ 70 लोग थे+ और अब देखो, तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें इतना बढ़ाया है कि आज तुम आसमान के तारों की तरह अनगिनत हो गए हो।+

कई फुटनोट

या “पेटी।”
शा., “दस वचन।”
या “पानी की घाटियाँ।”
या “का खतना करो।”
या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”