व्यवस्थाविवरण 19:1-21

  • खून का दोष और शरण नगर (1-13)

  • सीमा-चिन्ह न सरकाना (14)

  • अदालत में गवाह (15-21)

    • दो या तीन गवाह ज़रूरी (15)

19  तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें वह देश दे देगा जहाँ दूसरी जातियाँ रहती हैं। यहोवा उन जातियों का नाश कर देगा और तुम उनके शहरों और घरों में बस जाओगे।+  जब तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा वह देश तुम्हारे अधिकार में कर देगा, तो तुम उस देश के बीच में तीन शहर अलग ठहराना।+  तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा जिस देश को तुम्हारे अधिकार में कर देगा, उसका इलाका तुम तीन प्रांतों में बाँटना और उन शहरों तक जाने के लिए सड़कें तैयार करना ताकि एक खूनी उनमें से किसी शहर में भाग सके।  मगर उन शहरों में सिर्फ ऐसे खूनी को रहने दिया जाए जिसने अनजाने में किसी का खून किया है न कि नफरत की वजह से।+  जैसे, एक आदमी अपने साथी के साथ जंगल में लकड़ी काटने जाता है और जब पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी ऊपर उठाता है तो कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर उसके साथी को लग जाती है और वह मर जाता है। तब उस खूनी को उनमें से किसी एक शहर में भाग जाना चाहिए और वहीं रहना चाहिए।+  अगर शहर बहुत दूर होगा तो जब खून का बदला लेनेवाला+ गुस्से की आग में जलता हुआ खूनी का पीछा करेगा तब रास्ते में ही उसे पकड़कर मार डालेगा, जबकि उसे मार डालना सही नहीं होगा क्योंकि वह उस आदमी से नफरत नहीं करता था जिसे उसने मार डाला था।+  इसीलिए मैं तुम्हें आज्ञा दे रहा हूँ, ‘तुम तीन शहर अलग ठहराना।’  तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हारी सरहद बढ़ाएगा और तुम्हें देश का सारा इलाका दे देगा जैसे उसने तुम्हारे पुरखों से शपथ खाकर वादा किया था,+  बशर्ते तुम इस आज्ञा का हमेशा पालन करो, जो आज मैं तुम्हें दे रहा हूँ कि तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्यार करना और हमेशा उसकी राहों पर चलना।+ जब परमेश्‍वर तुम्हारी सरहद बढ़ाएगा तो तुम इन तीन शहरों के अलावा तीन और शहर अलग ठहराना।+ 10  तब उस देश में, जो तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें विरासत में देनेवाला है, किसी बेगुनाह का खून नहीं बहाया जाएगा+ और तुम पर खून का दोष नहीं लगेगा।+ 11  लेकिन अगर एक आदमी अपने साथी से नफरत करता है+ और घात लगाकर उस पर जानलेवा हमला करता है जिससे उसका साथी मर जाता है और इसके बाद वह खूनी इनमें से किसी शहर में भाग जाता है, 12  तो वह खूनी जिस शहर का है, वहाँ के मुखियाओं को उसे वापस बुलवाना चाहिए और उसे खून का बदला लेनेवाले के हाथ में सौंप देना चाहिए। और वह खूनी मार डाला जाए।+ 13  तुम* उस पर बिलकुल तरस न खाना और इसराएल से बेगुनाह के खून का दोष मिटा देना+ जिससे तुम्हारा भला हो। 14  तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा जो देश तुम्हारे अधिकार में करनेवाला है, वहाँ जब तुम सबको अपनी-अपनी विरासत की ज़मीन मिलेगी, तो तुम अपने पड़ोसी की ज़मीन का सीमा-चिन्ह मत सरकाना+ जो पुरखों ने लगाया है। 15  अगर एक आदमी पर किसी गुनाह या पाप का इलज़ाम लगाया गया है, तो सिर्फ एक गवाह उसे दोषी नहीं ठहरा सकता।*+ दो या तीन गवाहों के बयान पर ही मामले की सच्चाई साबित की जानी चाहिए।+ 16  अगर एक आदमी दूसरे आदमी को नुकसान पहुँचाने के इरादे से उसके खिलाफ झूठी गवाही देता है और उस पर किसी अपराध का इलज़ाम लगाता है,+ 17  तो उन दोनों आदमियों को, जिनके बीच मुकदमा है, यहोवा और याजकों और अपने दिनों के न्यायियों के सामने हाज़िर होना चाहिए।+ 18  न्यायी मामले की अच्छी छानबीन करेंगे+ और अगर यह साबित हो जाए कि गवाही देनेवाला झूठा है और उसने अपने साथी पर झूठा इलज़ाम लगाया है, 19  तो उस झूठे गवाह को वही सज़ा देना, जो उसने अपने भाई को दिलाने की साज़िश की थी।+ इस तरह तुम अपने बीच से बुराई मिटा देना।+ 20  फिर जब दूसरे लोग इस मामले के बारे में सुनेंगे तो वे डर जाएँगे और तुम्हारे बीच फिर कभी कोई ऐसा बुरा काम नहीं करेगा।+ 21  ऐसा बुरा काम करनेवाले पर तुम* बिलकुल तरस न खाना।+ उससे तुम बराबर का बदला लेना, जान के बदले जान, आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ और पैर के बदले पैर।+

कई फुटनोट

शा., “तुम्हारी आँखें।”
शा., “उसके खिलाफ नहीं उठ सकता।”
शा., “तुम्हारी आँखें।”