व्यवस्थाविवरण 20:1-20

  • युद्ध के नियम (1-20)

    • किन लोगों को युद्ध से छूट (5-9)

20  जब तुम अपने दुश्‍मनों से युद्ध करने जाओगे और देखोगे कि उनके पास घोड़े और रथ हैं और उनके सैनिक तुमसे ज़्यादा हैं, तो तुम उनसे डर मत जाना क्योंकि तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हारे साथ है, जो तुम्हें मिस्र से बाहर लाया है।+  जब तुम्हारी सेना युद्ध के लिए तैयार खड़ी हो, तब याजक को सेना के सामने आकर उससे बात करनी चाहिए।+  उसे सैनिकों से यह कहना चाहिए, ‘हे इसराएलियो, सुनो। तुम जो अपने दुश्‍मनों से युद्ध करने जा रहे हो, तुम अपना दिल कमज़ोर न होने देना। तुम दुश्‍मनों से बिलकुल न डरना, न ही उनसे खौफ खाना या उनसे थर-थर काँपना  क्योंकि तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हारे साथ-साथ चल रहा है और वह तुम्हारी तरफ से दुश्‍मनों से लड़ेगा और तुम्हें बचाएगा।’+  और सेना-अधिकारी भी सैनिकों से कहें, ‘क्या तुममें ऐसा कोई आदमी है जिसने नया घर बनाया और उसमें रहना शुरू नहीं किया? अगर है तो वह अपने घर लौट जाए। कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाए और कोई दूसरा आदमी जाकर उसके घर में रहने लगे।  क्या तुममें ऐसा कोई है जिसने अंगूरों का बाग लगाया और अब तक उसका फल नहीं खाया? अगर है तो वह अपने घर लौट जाए। कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाए और कोई दूसरा आदमी उसके बाग के फल खाए।  क्या तुममें ऐसा कोई आदमी है जिसकी सगाई हो चुकी है मगर अब तक शादी नहीं हुई? अगर है तो वह अपने घर लौट जाए।+ कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में मारा जाए और कोई दूसरा आदमी उसकी मँगेतर से शादी कर ले।’  सेना-अधिकारी सैनिकों से यह भी पूछें, ‘क्या तुममें कोई डरपोक और बुज़दिल है?+ अगर है तो वह अपने घर लौट जाए। कहीं ऐसा न हो कि वह अपने दूसरे भाइयों का भी मन कच्चा कर दे।’+  यह सब कहने के बाद सेना-अधिकारियों को सेना की अगुवाई के लिए सेनापति ठहराने चाहिए। 10  जब तुम किसी शहर से युद्ध करने उसके पास जाते हो, तो पहले उसके सामने शांति का प्रस्ताव रखना और उसे अपनी सुलह की शर्तें बताना।+ 11  अगर वह शहर तुम्हारी शर्तें मानकर तुमसे सुलह के लिए राज़ी हो जाता है और तुम्हारे लिए अपने फाटक खोल देता है, तो उस शहर के सभी लोग तुम्हारे लिए जबरन मज़दूरी करनेवाले बन जाएँगे और तुम्हारी सेवा करेंगे।+ 12  लेकिन अगर वह शहर तुम्हारे साथ सुलह करने से इनकार कर देता है और तुमसे युद्ध करने निकल पड़ता है तो तुम उस शहर को घेर लेना। 13  तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा ज़रूर उस शहर को तुम्हारे हाथ में कर देगा और तुम वहाँ के हर आदमी को तलवार से मार डालना। 14  मगर औरतों, बच्चों और मवेशियों को और शहर की हर चीज़ तुम लूट में ले लेना।+ तुम अपने दुश्‍मनों का लूट का माल अपने लिए ले लेना क्योंकि तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें यह सब दे दिया है।+ 15  ऐसा तुम उन सभी शहरों के साथ करना जो तुमसे बहुत दूर हैं, जो यहाँ की आस-पास की जातियों के नहीं हैं। 16  मगर जो शहर तुम्हारे आस-पास की जातियों के हैं और तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें विरासत में दे रहा है, वहाँ तुम किसी को भी ज़िंदा मत छोड़ना।+ 17  तुम वहाँ रहनेवाले हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों को पूरी तरह नाश कर देना,+ ठीक जैसे तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें आज्ञा दी है 18  ताकि ये जातियाँ तुम्हें ऐसे घिनौने काम न सिखाएँ जो वे अपने देवताओं के लिए करती हैं और तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा के खिलाफ तुमसे पाप न करवाएँ।+ 19  जब तुम किसी शहर को जीतने के लिए उसकी घेराबंदी करते हो और कई दिनों तक उससे युद्ध करते हो, तो वहाँ के पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाकर उन्हें नाश मत करना। तुम उन पेड़ों के फल खा सकते हो, मगर उन्हें काटना मत।+ क्या मैदान के पेड़ इंसान हैं कि तुम उन पर हमला करके उन्हें नाश कर दो? 20  तुम सिर्फ ऐसे पेड़ों को काट सकते हो जिनके बारे में तुम जानते हो कि वे फलदार पेड़ नहीं हैं। तुम उन्हें काटकर शहर की घेराबंदी के लिए इस्तेमाल कर सकते हो, जब तक कि तुम शहर पर कब्ज़ा नहीं कर लेते।

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