व्यवस्थाविवरण 26:1-19

  • पहले फल अर्पित करना (1-11)

  • दूसरा दसवाँ हिस्सा (12-15)

  • इसराएल, यहोवा की खास जागीर (16-19)

26  जब तुम उस देश में कदम रखोगे जो तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें विरासत में देनेवाला है और उसे अपने अधिकार में कर लोगे और उसमें बस जाओगे,  तब उस देश में जो तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें देगा, अपनी ज़मीन की हर उपज में से कुछ पहले फल लेना। उन्हें एक टोकरी में रखकर उस जगह ले जाना जो तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा अपने नाम की महिमा के लिए चुनता है।+  वहाँ तुम अपने दिनों के याजक के पास जाना और उससे कहना, ‘आज मैं ऐलान करता हूँ कि तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने जो वादा किया था उसे पूरा किया है। इसीलिए मैं आज इस देश में हूँ जिसे देने के बारे में यहोवा ने हमारे पुरखों से शपथ खायी थी।’+  तब याजक तेरे हाथ से टोकरी लेगा और तेरे परमेश्‍वर यहोवा की वेदी के आगे उसे रखेगा।  फिर तू अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने यह ऐलान करना, ‘मेरा पिता अरामी+ था और जगह-जगह परदेसी बनकर रहा था।* वह अपने घराने के साथ मिस्र गया+ और वहाँ परदेसी बनकर रहा। उस वक्‍त उसके घराने में बहुत कम लोग थे।+ मगर आगे चलकर वहाँ उसके वंशजों की गिनती बढ़कर बेशुमार हो गयी और उनसे एक महान और ताकतवर राष्ट्र बना।+  फिर मिस्रियों ने हमारे साथ बुरा सलूक किया और हमें बहुत सताया, हमसे कड़ी गुलामी करवायी।+  तब हमने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा की दुहाई दी और यहोवा ने हमारी बिनती सुन ली। उसने हमारी हालत पर ध्यान दिया कि हम कितनी दुख-तकलीफें, मुसीबतें और ज़ुल्म सह रहे थे।+  आखिरकार यहोवा ने अपना शक्‍तिशाली हाथ बढ़ाया+ और दिल दहलानेवाले बड़े-बड़े काम, चिन्ह और चमत्कार किए और हमें मिस्र से निकालकर बाहर ले आया।+  फिर वह हमें यहाँ ले आया और हमें यह देश दिया जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।+ 10  यहोवा ने मुझे जो ज़मीन दी है उसकी उपज के पहले फल मैं लाया हूँ।’+ तुम अपने पहले फल अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने रखना और अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने दंडवत करना। 11  फिर तुम उन सारी अच्छी चीज़ों के कारण खुशियाँ मनाना जो तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें और तुम्हारे घराने को दी हैं। तुम अपने बीच रहनेवाले लेवियों और परदेसियों के साथ खुशियाँ मनाना।+ 12  जब तीसरा साल यानी दसवाँ हिस्सा देने का साल आता है तब तुम अपनी उपज का दसवाँ हिस्सा अलग करोगे+ और उसे ले जाकर अपने शहरों* के लेवियों, परदेसियों, अनाथों* और विधवाओं को दोगे ताकि वे उसमें से जी-भरकर खाएँ।+ 13  इसके बाद तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने कहना, ‘मैंने अपने घर से अपनी उपज का पवित्र हिस्सा ले जाकर लेवियों, परदेसियों, अनाथों और विधवाओं को दिया है,+ ठीक जैसे तूने मुझे आज्ञा दी थी। मैंने तेरी आज्ञाएँ नहीं तोड़ीं, न ही उन्हें मानने में लापरवाही की। 14  मैंने मातम मनाते समय पवित्र हिस्से में से कुछ नहीं खाया, न अशुद्ध हालत में उसे छुआ और न ही मरे हुओं के लिए उसमें से कुछ निकालकर दिया। मैंने अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात मानी है और तेरी सभी आज्ञाओं का पालन किया है। 15  इसलिए अब तू स्वर्ग से, अपने पवित्र निवास से अपने इसराएली लोगों पर नज़र कर और जैसे तूने हमारे पुरखों से शपथ खायी थी,+ हम पर और हमारे इस देश पर आशीष दे+ जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।’+ 16  आज के दिन तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें आज्ञा दे रहा है कि तुम इन सभी कायदे-कानूनों और न्याय-सिद्धांतों का पालन करना। तुम पूरे दिल और पूरी जान से उनको मानना और उनके मुताबिक चलना।+ 17  आज के दिन तुम लोगों ने यहोवा का यह ऐलान सुना है कि अगर तुम उसकी राहों पर चलोगे, उसके कायदे-कानूनों,+ आज्ञाओं+ और न्याय-सिद्धांतों+ को मानोगे और उसकी बात सुनोगे तो वह तुम्हारा परमेश्‍वर होगा। 18  और आज तुमने यहोवा के सामने ऐलान किया है कि तुम उसके अपने लोग और उसकी खास जागीर* बनोगे,+ ठीक जैसे उसने तुमसे वादा किया था और तुम उसकी सारी आज्ञाएँ मानोगे। 19  और अगर तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिए पवित्र लोग बने रहोगे तो जैसे उसने वादा किया है, वह तुम्हें उन सभी राष्ट्रों से ऊँचा उठाएगा जिन्हें उसने बनाया है+ ताकि तुम्हें सबसे बढ़कर तारीफ, शोहरत और सम्मान हासिल हो।”+

कई फुटनोट

या शायद, “और नाश होने पर था।”
या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”
शा., “फाटकों के अंदर।”
या “अनमोल जायदाद।”