सभोपदेशक 10:1-20

  • ज़रा-सी बेवकूफी से समझदार का नाम खराब (1)

  • काम न जानना खतरनाक है (2-11)

  • मूर्ख की दुर्दशा (12-15)

  • शासकों की मूर्खता (16-20)

    • कोई चिड़िया तेरी बात दोहरा दे (20)

10  जैसे मरी हुई मक्खियाँ खुशबूदार तेल* को सड़ा देती हैं, बदबूदार बना देती हैं, वैसे ही ज़रा-सी बेवकूफी एक इज़्ज़तदार और समझदार इंसान का नाम खराब कर देती है।+  बुद्धिमान का दिल उसे सही राह पर ले चलता है, लेकिन मूर्ख का दिल उसे बुरी राह पर ले जाता है।+  मूर्ख चाहे जो भी राह ले, उसमें समझ ही नहीं होती+ और वह सबको जता देता है कि वह मूर्ख है।+  अगर कभी राजा का गुस्सा तुझ पर भड़के, तो अपनी जगह मत छोड़ना+ क्योंकि शांत रहने से बड़े-बड़े पाप रोके जा सकते हैं।+  दुनिया में* मैंने यह होते देखा जो बड़े दुख की बात है और इस तरह की गलती अधिकार रखनेवाले करते हैं:+  मूर्ख को ऊँची-ऊँची पदवी दी जाती है जबकि काबिल* इंसान छोटे ओहदे पर ही रह जाता है।  मैंने देखा है कि नौकर घोड़े पर सवार होते हैं जबकि हाकिम नौकर-चाकरों की तरह पैदल चलते हैं।+  जो गड्‌ढा खोदता है वह गड्‌ढे में गिर सकता है+ और जो पत्थर की दीवार तोड़ता है उसे साँप डस सकता है।  जो खदान में पत्थर काटता है उसे पत्थर से चोट लग सकती है और जो लकड़ी चीरता है उसे लकड़ी से चोट लग सकती है।* 10  अगर कुल्हाड़ी की धार घिस चुकी है और उसे तेज़ न किया जाए, तो चलानेवाले को बहुत ज़ोर लगाना पड़ेगा। मगर बुद्धि से काम लेने पर कामयाबी मिलती है। 11  साँप को वश में करने से पहले अगर वह सपेरे को काट ले, तो सपेरा* होने का क्या फायदा? 12  बुद्धिमान की बातें मन मोह लेती हैं,+ मगर मूर्ख के होंठ उसे बरबाद कर देते हैं।+ 13  मूर्ख मूर्खता की बातों से शुरूआत करता है+ और पागलपन की बातों से अंत करता है, जिससे मुसीबत खड़ी हो जाती है। 14  फिर भी वह बोलने से बाज़ नहीं आता।+ इंसान नहीं जानता कि आगे क्या होगा और कौन उसे बता सकता है कि उसके जाने के बाद क्या होगा?+ 15  मूर्ख की मेहनत उसे थका देती है क्योंकि उसे यह तक नहीं पता कि शहर जाने का रास्ता कौन-सा है। 16  उस देश का क्या होगा जिसका राजा एक लड़का ही है+ और जिसके हाकिम सुबह से दावतें उड़ाते हैं! 17  मगर उस देश का कितना भला होगा जिसका राजा शाही घराने से है। और जिसके हाकिम समय पर खाते-पीते हैं, वह भी धुत्त होने के लिए नहीं बल्कि ताकत पाने के लिए।+ 18  बहुत आलस करने से छत धँसती जाती है और हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहने से घर चूने लगता है।+ 19  रोटी* चेहरे पर हँसी ले आती है और दाख-मदिरा ज़िंदगी में रस भर देती है।+ मगर पैसा हर ज़रूरत पूरी कर सकता है।+ 20  अपने मन में* भी राजा को मत कोसना*+ और न अपने कमरे में जब तू अकेला हो, किसी दौलतमंद को कोसना। क्या पता कोई चिड़िया वह बात उन तक पहुँचा दे या कोई उड़नेवाला जीव उनके सामने तेरी बात दोहरा दे।

कई फुटनोट

शा., “इत्र बनानेवाले के तेल।”
शा., “सूरज के नीचे।”
शा., “अमीर।”
या शायद, “उसे सावधानी बरतनी चाहिए।”
शा., “मंत्र पढ़नेवाला।”
या “खाना।”
या शायद, “अपने बिस्तर पर।”
या “को शाप मत देना।”