पहला इतिहास 17:1-27

  • दाविद मंदिर नहीं बनाएगा (1-6)

  • दाविद से राज का करार (7-15)

  • उसकी धन्यवाद की प्रार्थना (16-27)

17  जब दाविद अपने महल में रहने लगा, तो उसके कुछ ही समय बाद उसने भविष्यवक्‍ता नातान+ से कहा, “देख, मैं तो देवदार से बने महल में रह रहा हूँ,+ जबकि यहोवा के करार का संदूक कपड़े से बने तंबू में है।”+  नातान ने दाविद से कहा, “तेरे मन में जो कुछ है वह कर क्योंकि सच्चा परमेश्‍वर तेरे साथ है।”  उसी दिन, रात को परमेश्‍वर का यह संदेश नातान के पास पहुँचा,  “तू जाकर मेरे सेवक दाविद से कहना, ‘यहोवा तुझसे कहता है, “मेरे निवास के लिए भवन बनानेवाला तू नहीं होगा।+  जब से मैं इसराएल को निकाल लाया, तब से लेकर आज तक क्या मैंने किसी भवन में निवास किया है? मैं हमेशा एक तंबू से दूसरे तंबू में और एक डेरे से दूसरे डेरे* में जाता रहा।+  जिस दौरान मैं पूरे इसराएल के साथ-साथ चलता रहा और मैंने अपने लोगों पर न्यायी ठहराए कि वे चरवाहों की तरह उनकी देखभाल करें, तब क्या मैंने कभी किसी न्यायी से कहा कि तूने मेरे लिए देवदार का भवन क्यों नहीं बनाया?”’  तू मेरे सेवक दाविद से कहना, ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, “मैं तुझे चरागाहों से ले आया था जहाँ तू भेड़ों की देखभाल करता था और तुझे अपनी प्रजा इसराएल का अगुवा बनाया।+  तू जहाँ कहीं जाएगा मैं तेरे साथ रहूँगा+ और तेरे सामने से तेरे सभी दुश्‍मनों को नाश कर दूँगा+ और तेरा नाम ऐसा महान करूँगा कि तू दुनिया के बड़े-बड़े नामी आदमियों में गिना जाएगा।+  मैं अपनी प्रजा इसराएल के लिए एक जगह चुनूँगा और वहाँ उन्हें बसाऊँगा। वे वहाँ चैन से जीएँगे, कोई उन्हें दुख नहीं देगा। उन पर दुष्ट लोग अत्याचार नहीं करेंगे, जैसे गुज़रे वक्‍त में+ 10  दुष्ट मेरे लोगों पर तब से अत्याचार करते रहे जब मैंने उन पर न्यायी ठहराए थे।+ मैं तेरे सब दुश्‍मनों को तेरे अधीन कर दूँगा।+ मैं तुझे एक और बात बताता हूँ, ‘यहोवा तेरे लिए एक राज-घराना तैयार करेगा।’ 11  जब तेरी उम्र पूरी हो जाएगी और तेरी मौत हो जाएगी* तो मैं तेरे वंश को, तेरे बेटों में से एक को खड़ा करूँगा+ और उसका राज मज़बूती से कायम करूँगा।+ 12  वही मेरे लिए एक भवन बनाएगा+ और मैं उसकी राजगद्दी सदा के लिए मज़बूती से कायम करूँगा।+ 13  मैं उसका पिता बनूँगा और वह मेरा बेटा होगा।+ मैं उससे प्यार* करना कभी नहीं छोड़ूँगा,+ जैसे मैंने उस इंसान से करना छोड़ दिया था जो तुझसे पहले था।+ 14  मैं हमेशा के लिए उसे अपने भवन में ठहराऊँगा और अपना राज सौंपूँगा+ और उसकी राजगद्दी सदा तक कायम रहेगी।”’”+ 15  नातान ने जाकर ये सारी बातें और यह पूरा दर्शन दाविद को बताया। 16  तब राजा दाविद यहोवा के सामने बैठकर कहने लगा, “हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी हस्ती ही क्या है? मैं और मेरा घराना कुछ भी नहीं। फिर भी तूने मुझे ऊँचा उठाकर इस मुकाम तक पहुँचाया।+ 17  हे परमेश्‍वर, तूने यह भी वादा किया है कि तेरे सेवक का राज-घराना मुद्दतों तक कायम रहेगा।+ हे यहोवा परमेश्‍वर, तूने मुझे इस काबिल समझा है कि मैं और ऊँचा उठाया जाऊँ।* 18  तेरा यह सेवक दाविद इस सम्मान के बारे में तुझसे और क्या कह सकता है? तू तो अपने सेवक को अच्छी तरह जानता है।+ 19  हे यहोवा, तूने अपने सेवक की खातिर और अपने मन की इच्छा के मुताबिक ये सारे महान काम किए हैं और इस तरह अपनी महानता ज़ाहिर की है।+ 20  हे यहोवा, तेरे जैसा और कोई नहीं।+ हमने बहुत-से ईश्‍वरों के बारे में सुना है, मगर तुझे छोड़ और कोई परमेश्‍वर नहीं।+ 21  और इस धरती पर तेरी प्रजा इसराएल जैसा और कौन-सा राष्ट्र है?+ सच्चा परमेश्‍वर जाकर उन्हें छुड़ा लाया ताकि वे उसके अपने लोग बनें।+ तूने अपने लोगों को मिस्र से छुड़ाया और उनके सामने से दूसरी जातियों को खदेड़कर बाहर कर दिया।+ तूने महान और विस्मयकारी काम करके अपना नाम ऊँचा किया।+ 22  तूने अपनी प्रजा इसराएल को हमेशा के लिए अपने लोग बना लिया+ और हे यहोवा, तू उनका परमेश्‍वर बन गया।+ 23  अब हे यहोवा, तूने अपने सेवक और उसके घराने के बारे में जो वादा किया था उसे पूरा करने में तू हमेशा विश्‍वासयोग्य रहे और तू ठीक वैसा ही करे जैसा तूने वादा किया है।+ 24  तेरा नाम सदा कायम* और ऊँचा रहे+ ताकि लोग कहें, ‘सेनाओं का परमेश्‍वर और इसराएल का परमेश्‍वर यहोवा इसराएल के लिए परमेश्‍वर है’ और तेरे सेवक दाविद का राज-घराना तेरे सामने सदा तक मज़बूती से कायम रहे।+ 25  हे मेरे परमेश्‍वर, तूने अपने सेवक को अपना यह मकसद बताया है कि तू उसके लिए एक राज-घराना बनाएगा। इसीलिए तेरा यह सेवक पूरे यकीन के साथ तुझसे यह प्रार्थना कर पाया है। 26  हे यहोवा, तू ही सच्चा परमेश्‍वर है और तूने अपने सेवक के बारे में इन भले कामों का वादा किया है। 27  इसलिए मेरी दुआ है कि तू अपने सेवक के घराने को खुशी-खुशी आशीष दे और यह घराना तेरे सामने हमेशा कायम रहे क्योंकि हे यहोवा, तूने ही इस घराने को आशीष दी है और यह आशीष सदा बनी रहेगी।”

कई फुटनोट

शायद इसका मतलब है, “एक तंबू की जगह से दूसरी जगह और एक निवास से दूसरे निवास।”
शा., “तू अपने पुरखों के साथ होने के लिए जाएगा।”
या “अटल प्यार।”
या “तूने मुझे ऊँचे पद का आदमी समझा है।”
या “विश्‍वासयोग्य साबित हो।”