कुरिंथियों के नाम पहली चिट्ठी 16:1-24

  • यरूशलेम के मसीहियों के लिए दान इकट्ठा करना (1-4)

  • पौलुस के सफर की योजना (5-9)

  • तीमुथियुस और अपुल्लोस के सफर की योजना (10-12)

  • सलाह और नमस्कार (13-24)

16  पवित्र जनों के लिए जो दान इकट्ठा किया जा रहा है,+ उसके बारे में मैंने गलातिया की मंडलियों को जो आदेश दिए हैं, तुम भी उनका पालन कर सकते हो।  हर हफ्ते के पहले दिन तुममें से हर कोई अपनी आमदनी के मुताबिक कुछ अलग रखे ताकि जब मैं आऊँ तो उस वक्‍त दान जमा न करना पड़े।  मगर जब मैं वहाँ आऊँगा, तो तुम अपनी चिट्ठियों में जिन आदमियों की सिफारिश करते हो, उन्हें भेजूँगा+ ताकि तुम खुशी-खुशी जो तोहफा दोगे, उसे वे यरूशलेम पहुँचा दें।  लेकिन अगर मेरे लिए भी वहाँ जाना मुनासिब हुआ, तो मैं उनके साथ जाऊँगा।  मगर मैं मकिदुनिया का दौरा करने के बाद तुम्हारे पास आऊँगा क्योंकि मैं मकिदुनिया से होकर आऊँगा+  और शायद मैं तुम्हारे यहाँ ठहरूँ या फिर तुम्हारे यहाँ सर्दियाँ भी बिताऊँ और इसके बाद जहाँ मैं जाऊँगा वहाँ के लिए तुम कुछ दूर तक मुझे छोड़ आना।  मैं नहीं चाहता कि मैं अभी रास्ते में तुमसे बस मुलाकात करके चला जाऊँ, बल्कि यह चाहता हूँ कि अगर यहोवा* इजाज़त दे तो मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्‍त बिताऊँ।+  मगर मैं पिन्तेकुस्त के त्योहार तक इफिसुस+ में ही रहूँगा  क्योंकि मेरे लिए मौके का एक दरवाज़ा खोला गया है कि मैं और ज़्यादा सेवा कर सकूँ,+ मगर विरोधी भी बहुत हैं। 10  अगर तीमुथियुस+ वहाँ आए, तो ध्यान रखना कि तुम्हारे पास रहते वक्‍त उसे किसी बात का डर न हो क्योंकि वह भी मेरी तरह यहोवा* का काम कर रहा है।+ 11  इसलिए कोई उसे तुच्छ न समझे। तुम उसे कुछ दूर तक सही-सलामत पहुँचा देना ताकि वह यहाँ मेरे पास आ सके क्योंकि मैं भाइयों के साथ उसका इंतज़ार कर रहा हूँ। 12  अब हमारे भाई अपुल्लोस+ की बात कहूँ, तो मैंने उससे बहुत गुज़ारिश की कि भाइयों के साथ तुम्हारे पास आए। अभी तुम्हारे पास आने की उसकी इच्छा नहीं थी, मगर जब उसे मौका मिलेगा तब वह तुम्हारे पास आएगा। 13  जागते रहो,+ विश्‍वास में मज़बूत खड़े रहो,+ दिलेर बनो,*+ शक्‍तिशाली बनते जाओ।+ 14  तुम्हारे बीच सारे काम प्यार से किए जाएँ।+ 15  अब भाइयो, मैं तुम्हें एक और बात के लिए बढ़ावा देता हूँ। तुम जानते हो कि स्तिफनास का घराना अखाया के पहले फल हैं और वे पवित्र जनों की सेवा में लगे रहते हैं। 16  तुम भी ऐसे लोगों के अधीन रहो और उन सबके भी अधीन रहो जो सहयोग देते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं।+ 17  मैं स्तिफनास+ और फूरतूनातुस और अखइखुस के यहाँ रहने से बेहद खुश हूँ, क्योंकि उन्होंने तुम्हारे यहाँ न होने की कमी पूरी कर दी है। 18  उन्होंने तुम्हारा और मेरा जी तरो-ताज़ा किया है। इसलिए ऐसे आदमियों का आदर किया करो। 19  एशिया की मंडलियाँ तुम्हें नमस्कार कहती हैं। अक्विला और प्रिसका, साथ ही उनके घर में इकट्ठा होनेवाली मंडली+ भी प्रभु में तुम्हें दिल से नमस्कार कहती है। 20  सभी भाइयों का तुम्हें नमस्कार। पवित्र चुंबन से एक-दूसरे को नमस्कार करो। 21  मैं पौलुस खुद अपने हाथ से अब तुम्हें नमस्कार लिखता हूँ। 22  अगर कोई प्रभु से लगाव नहीं रखता तो वह शापित हो। हे हमारे प्रभु, आ! 23  प्रभु यीशु की महा-कृपा तुम पर बनी रहे। 24  तुम सब जो मसीह यीशु में हो, तुम्हें मेरा प्यार।

कई फुटनोट

अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “मरदानगी से काम करो।”