कुरिंथियों के नाम पहली चिट्ठी 3:1-23

  • कुरिंथ के लोगों की दुनियावी सोच (1-4)

  • परमेश्‍वर बढ़ाता है (5-9)

    • परमेश्‍वर के सहकर्मी (9)

  • आग में टिकनेवाली चीज़ों से बनाना (10-15)

  • तुम परमेश्‍वर का मंदिर हो (16, 17)

  • दुनिया की बुद्धि मूर्खता है (18-23)

3  इसलिए भाइयो, मैं तुमसे ऐसे बात नहीं कर सका जैसे परमेश्‍वर की सोच रखनेवालों से की जाती है,+ बल्कि मुझे ऐसे बात करनी पड़ी जैसे दुनियावी* सोच रखनेवालों से की जाती है और जो मसीह में दूध-पीते बच्चे हैं।+  मैंने तुम्हें दूध ही दिया, न कि ठोस खाना क्योंकि तुम उस वक्‍त उसे पचाने के काबिल नहीं थे। दरअसल तुम अब भी काबिल नहीं हो+  क्योंकि तुम अब तक दुनियावी हो।+ तुम्हारे बीच जलन है और झगड़े होते हैं, इसलिए क्या तुम दुनियावी लोगों जैसे नहीं हो+ और क्या तुम इंसानों जैसी चाल नहीं चल रहे?  जब कोई कहता है, “मैं पौलुस का चेला हूँ,” और दूसरा कहता है, “मैं अपुल्लोस+ का हूँ,” तो क्या तुम दुनियावी लोगों जैसा बरताव नहीं कर रहे?  अपुल्लोस क्या है? और हाँ, पौलुस क्या है? सिर्फ सेवक हैं,+ ठीक जैसे प्रभु ने हरेक को सेवा सौंपी है और जिनके ज़रिए तुम विश्‍वासी बने हो।  मैंने लगाया,+ अपुल्लोस ने पानी देकर सींचा+ लेकिन परमेश्‍वर उसे बढ़ाता रहा।  इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, न ही पानी देनेवाला कुछ है मगर परमेश्‍वर सबकुछ है जो इसे बढ़ाता है।+  जो पौधा लगाता है और पानी देता है, वे दोनों एकता में हैं,* मगर हर कोई अपनी मेहनत का इनाम पाएगा।+  हम परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं। तुम परमेश्‍वर का खेत हो जिसमें खेती की जा रही है और परमेश्‍वर की इमारत हो।+ 10  परमेश्‍वर ने मुझ पर जो महा-कृपा की है, उसकी बदौलत मैंने एक कुशल राजमिस्त्री की तरह नींव डाली।+ मगर कोई दूसरा उस नींव पर इमारत खड़ी कर रहा है। हर कोई ध्यान देता रहे कि वह नींव पर किस तरह इमारत खड़ी कर रहा है। 11  इसलिए कि कोई भी इंसान उस नींव के सिवा जो डाली जा चुकी है, दूसरी नींव नहीं डाल सकता और यह नींव यीशु मसीह है।+ 12  कोई इस नींव पर सोने, चाँदी और कीमती पत्थरों से इमारत खड़ी करता है तो कोई लकड़ी, भूसे या घास-फूस से। 13  एक इंसान का काम कैसा है, यह उस दिन पता चल जाएगा जिस दिन उसे परखा जाएगा क्योंकि आग सबकुछ ज़ाहिर कर देगी+ और साबित कर देगी कि हरेक का काम कैसा है। 14  अगर किसी की इमारत जो उसने नींव पर खड़ी की है, टिकी रहेगी तो वह इनाम पाएगा। 15  और अगर किसी की इमारत जल जाएगी तो उसे नुकसान उठाना पड़ेगा लेकिन वह खुद बचा लिया जाएगा, फिर भी यह ऐसा होगा मानो वह आग से जलते-जलते बचा हो। 16  क्या तुम नहीं जानते कि तुम लोग परमेश्‍वर का मंदिर हो+ और परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति तुममें निवास करती है?+ 17  अगर कोई परमेश्‍वर के मंदिर को नाश करता है, तो परमेश्‍वर उसे नाश करेगा इसलिए कि परमेश्‍वर का मंदिर पवित्र है और यह मंदिर तुम लोग हो।+ 18  कोई खुद को न बहकाए: अगर तुममें से कोई सोचता है कि वह इस ज़माने* में बुद्धिमान है, तो वह मूर्ख बन जाए ताकि वह बुद्धिमान बन सके। 19  इस दुनिया की बुद्धि परमेश्‍वर की नज़र में मूर्खता है क्योंकि लिखा है, “वह बुद्धिमानों को उन्हीं की चालाकी में फँसा देता है।”+ 20  और यह भी लिखा है, “यहोवा* जानता है कि बुद्धिमानों के तर्क बेकार हैं।”+ 21  इसलिए कोई भी इंसानों पर शेखी न मारे क्योंकि सबकुछ तुम्हारा है, 22  चाहे पौलुस हो या अपुल्लोस या कैफा*+ या यह दुनिया या मौत या ज़िंदगी या आज की या आनेवाली चीज़ें, सबकुछ तुम्हारा है। 23  और तुम मसीह के हो+ और मसीह, परमेश्‍वर का है।

कई फुटनोट

शा., “शारीरिक।”
या “उनका एक ही मकसद है।”
या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
पतरस भी कहलाता था।