थिस्सलुनीकियों के नाम पहली चिट्ठी 5:1-28

  • यहोवा का दिन आ रहा है (1-5)

    • “शांति और सुरक्षा है!” (3)

  • जागते रहो, होश-हवास बनाए रखो (6-11)

  • सलाह (12-24)

  • आखिर में नमस्कार (25-28)

5  भाइयो, ये बातें कब होंगी, हमें इनके समय और दौर के बारे में तुम्हें कुछ लिखने की ज़रूरत नहीं।  इसलिए कि तुम खुद अच्छी तरह जानते हो कि यहोवा* का दिन+ ठीक वैसे ही आ रहा है जैसे रात को चोर आता है।+  जब लोग कहते होंगे, “शांति और सुरक्षा है!” तब उसी वक्‍त अचानक उन पर विनाश आ पड़ेगा,+ जैसे एक गर्भवती औरत को अचानक प्रसव-पीड़ा उठने लगती है और वे किसी भी हाल में नहीं बच पाएँगे।  मगर भाइयो, तुम अंधकार में नहीं हो कि वह दिन तुम पर ऐसे आ पड़े, जैसे दिन का उजाला चोरों पर आ पड़ता है।  इसलिए कि तुम सब रौशनी के बेटे और दिन के बेटे हो।+ हम न तो रात के हैं न ही अंधकार के।+  तो फिर आओ हम बाकियों की तरह न सोएँ,+ बल्कि जागते रहें+ और होश-हवास बनाए रखें।+  जो सोते हैं, वे रात को सोते हैं और जो पीकर धुत्त होते हैं वे रात के वक्‍त धुत्त होते हैं।+  मगर हम जो दिन के हैं, आओ हम अपने होश-हवास बनाए रखें और विश्‍वास और प्यार का कवच और उद्धार की आशा का टोप पहने रहें।+  क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें उसका क्रोध झेलने के लिए नहीं बल्कि हमारे प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए उद्धार पाने के लिए चुना है।+ 10  मसीह हमारे लिए मरा+ ताकि हम चाहे ज़िंदा हों या मौत की नींद सो जाएँ, हम उसके साथ जीएँ।+ 11  इसलिए एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते* रहो और एक-दूसरे को मज़बूत करते रहो,+ ठीक जैसा तुम कर भी रहे हो। 12  भाइयो, अब हम तुमसे गुज़ारिश करते हैं कि तुम्हारे बीच जो कड़ी मेहनत करते हैं और प्रभु में तुम्हारी अगुवाई करते हैं और तुम्हें समझाते-बुझाते हैं, उनका आदर करो। 13  और उनके काम की वजह से प्यार से उनकी बहुत कदर करो।+ एक-दूसरे के साथ शांति कायम करनेवाले बनो।+ 14  और भाइयो, हम तुम्हें बढ़ावा देते हैं कि जो मनमानी करते हैं उन्हें चेतावनी दो,*+ जो मायूस* हैं उन्हें अपनी बातों से तसल्ली दो, कमज़ोरों को सहारा दो और सबके साथ सब्र से पेश आओ।+ 15  इस बात का ध्यान रखो कि कोई किसी की बुराई का बदला बुराई से न दे,+ मगर तुम हमेशा एक-दूसरे की और बाकी सबकी भलाई करने में लगे रहो।+ 16  हमेशा खुश रहो।+ 17  लगातार प्रार्थना करते रहो।+ 18  हर बात के लिए धन्यवाद दो।+ मसीह यीशु में तुम्हारे लिए परमेश्‍वर की यही मरज़ी है। 19  पवित्र शक्‍ति के ज़बरदस्त असर में रुकावट न डालो।*+ 20  भविष्यवाणियों को तुच्छ न समझो।+ 21  सब बातों को परखो,+ जो बढ़िया है उसे थामे रहो। 22  हर तरह की दुष्टता से दूर रहो।+ 23  मेरी दुआ है कि शांति का परमेश्‍वर तुम्हें पूरी तरह पवित्र करे। तुम भाइयों का मन, जान* और शरीर हमारे प्रभु यीशु मसीह की मौजूदगी के दौरान हर तरह से निर्दोष बना रहे।+ 24  जिसने तुम्हें बुलाया है वह विश्‍वासयोग्य है और वह ज़रूर ऐसा करेगा। 25  भाइयो, हमारे लिए प्रार्थना करते रहो।+ 26  पवित्र चुंबन से सब भाइयों को नमस्कार करो। 27  मैं प्रभु के नाम से तुम पर यह ज़िम्मेदारी डालता हूँ कि यह चिट्ठी सब भाइयों को पढ़कर सुनायी जाए।+ 28  हमारे प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा तुम पर होती रहे।

कई फुटनोट

अति. क5 देखें।
या “को दिलासा देते।”
या “समझाओ।”
या “निराश।”
शा., “पवित्र शक्‍ति की आग मत बुझाओ।”
शब्दावली में “जीवन” देखें।