पहला राजा 18:1-46

  • एलियाह, ओबद्याह और अहाब से मिला (1-18)

  • करमेल पर एलियाह का बाल के भविष्यवक्‍ताओं के साथ सामना (19-40)

    • ‘दो विचारों में लटके रहना’ (21)

  • साढ़े तीन साल का सूखा खत्म (41-46)

18  काफी समय बाद, तीसरे साल+ यहोवा का यह संदेश एलियाह के पास पहुँचा: “जा, अहाब के पास जा। अब मैं देश की ज़मीन पर पानी बरसाऊँगा।”+  तब एलियाह, अहाब के पास गया। उस समय तक सामरिया में अकाल भयंकर रूप ले चुका था।+  इस बीच अहाब ने अपने राजमहल की देखरेख के अधिकारी ओबद्याह को बुलवाया। (ओबद्याह यहोवा का बहुत डर मानता था।  जब इज़ेबेल+ यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं को मरवा रही थी, तब ओबद्याह ने 100 भविष्यवक्‍ताओं को पचास-पचास में बाँटकर दो गुफाओं में छिपा दिया था और वह उनके लिए रोटी और पानी मुहैया कराता रहा।)  अहाब ने ओबद्याह से कहा, “देश की सभी घाटियों और पानी के सोतों के पास जा। हो सकता है हमारे घोड़ों और खच्चरों के लिए भरपूर घास मिल जाए, वरना हमारे सभी जानवर मर जाएँगे।”  फिर अहाब और ओबद्याह ने देश का दौरा करने के लिए इलाका आपस में बाँट लिया, एक तरफ अहाब गया और दूसरी तरफ ओबद्याह।  जब ओबद्याह जा रहा था तो रास्ते में उसकी मुलाकात एलियाह से हुई जो उससे मिलने के लिए वहाँ था। ओबद्याह ने एलियाह को देखते ही पहचान लिया और मुँह के बल गिरकर उससे कहा, “मेरे मालिक एलियाह, क्या तू है?”+  एलियाह ने कहा, “हाँ, मैं हूँ। तू जाकर अपने मालिक को बता कि एलियाह आया है।”  मगर ओबद्याह ने कहा, “मैंने ऐसा क्या पाप किया है जो तू अपने इस सेवक को अहाब के हवाले कर रहा है? तू क्यों मुझे मरवाना चाहता है? 10  तेरे परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, ऐसा एक भी देश या राज्य नहीं जहाँ मेरे मालिक ने तुझे ढूँढ़ने के लिए अपने आदमी न भेजे हों। जब भी किसी देश या राज्य के लोग कहते, ‘वह यहाँ नहीं है’ तो मालिक उनसे शपथ खिलवाता कि उन्होंने तुझे नहीं देखा।+ 11  अब तू मुझसे कह रहा है कि जाकर अपने मालिक को बता कि एलियाह यहाँ है। 12  जब मैं तेरे पास से जाऊँगा तो यहोवा की पवित्र शक्‍ति तुझे यहाँ से किसी ऐसी जगह ले जाएगी+ जिसका मुझे पता नहीं होगा और जब मैं अहाब को तेरी खबर दूँगा और तू उसे नहीं मिलेगा तो वह ज़रूर मुझे मार डालेगा। तेरा सेवक बचपन से यहोवा का डर मानता आया है। 13  मालिक, क्या तुझे नहीं बताया गया कि जब इज़ेबेल यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं को मरवा रही थी तो मैंने क्या किया था? मैंने यहोवा के 100 भविष्यवक्‍ताओं को पचास-पचास में बाँटकर गुफाओं में छिपा दिया और उनके लिए रोटी और पानी मुहैया कराता रहा।+ 14  मगर अब तू मुझसे कह रहा है कि जाकर अपने मालिक को बता कि एलियाह यहाँ है। वह ज़रूर मुझे मार डालेगा।” 15  मगर एलियाह ने कहा, “सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, जिसकी मैं सेवा करता हूँ,* आज मैं उसके सामने जाऊँगा।” 16  तब ओबद्याह ने अहाब के पास जाकर उसे एलियाह के बारे में बताया और अहाब, एलियाह से मिलने निकल पड़ा। 17  जैसे ही अहाब ने एलियाह को देखा उसने एलियाह से कहा, “इसराएल पर घोर संकट लानेवाले, तू फिर आ गया?” 18  एलियाह ने कहा, “इसराएल पर संकट लानेवाला मैं नहीं, तू और तेरे पिता का घराना है। तुम लोगों ने यहोवा के नियमों पर चलना छोड़ दिया और बाल देवताओं को मानने लगे हो।+ 19  अब तू पूरे इसराएल को आदेश दे कि वह करमेल पहाड़+ पर मेरे सामने इकट्ठा हो। साथ ही, बाल के 450 भविष्यवक्‍ताओं और पूजा-लाठ*+ की उपासना करनेवाले 400 भविष्यवक्‍ताओं को भी बुला जो इज़ेबेल की मेज़ से खाते हैं।” 20  तब अहाब ने इसराएल के सब लोगों को करमेल पहाड़ पर आने का संदेश भेजा, साथ ही भविष्यवक्‍ताओं को वहाँ इकट्ठा किया। 21  फिर एलियाह सब लोगों के पास आकर कहने लगा, “तुम लोग कब तक दो विचारों में लटके रहोगे?*+ अगर यहोवा सच्चा परमेश्‍वर है तो उसे मानो+ और अगर बाल सच्चा परमेश्‍वर है तो उसे मानो!” मगर जवाब में लोगों ने एक शब्द भी न कहा। 22  तब एलियाह ने उनसे कहा, “यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं में से सिर्फ मैं बचा हूँ+ जबकि बाल के भविष्यवक्‍ता 450 हैं। 23  हमारे लिए दो बैल लाए जाएँ और बाल के भविष्यवक्‍ता उनमें से एक बैल चुन लें। वे उसके टुकड़े-टुकड़े करके उसे लकड़ी पर रखें, मगर उसे आग न लगाएँ। दूसरा बैल मैं लूँगा और उसके टुकड़े-टुकड़े करके लकड़ी पर रखूँगा, मगर उसे आग नहीं लगाऊँगा। 24  फिर तुम लोग अपने देवता का नाम पुकारना+ और मैं यहोवा का नाम पुकारूँगा। जो परमेश्‍वर जवाब में आग भेजेगा वही सच्चा परमेश्‍वर साबित होगा।”+ तब सब लोगों ने कहा, “हाँ, यह सही रहेगा।” 25  फिर एलियाह ने बाल के भविष्यवक्‍ताओं से कहा, “पहले तुम इनमें से एक बैल चुन लो और उसे बलि के लिए तैयार करो क्योंकि तुम्हारी तादाद ज़्यादा है। इसके बाद तुम अपने देवता का नाम पुकारना, मगर लकड़ी में आग मत लगाना।” 26  तब उन्होंने वह बैल लिया जो उन्हें दिया गया था। उन्होंने उसे बलि के लिए तैयार किया। फिर वे बाल देवता का नाम पुकारने लगे। वे सुबह से दोपहर तक कहते रहे, “हे बाल, हमारी सुन! हे बाल, हमारी सुन!” मगर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, कोई आवाज़ सुनायी नहीं दी।+ फिर भी वे अपनी बनायी वेदी के चारों तरफ उछलते-कूदते रहे। 27  दोपहर के करीब एलियाह उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहने लगा, “और ज़ोर से चिल्लाओ! वह एक देवता है,+ शायद किसी बात को लेकर गहरी सोच में पड़ा हो या फिर वह हलका होने गया हो।* या क्या पता वह सो रहा हो, उसे जगाने की ज़रूरत पड़े!” 28  बाल के भविष्यवक्‍ता गला फाड़-फाड़कर पुकार रहे थे। वे अपने दस्तूर के मुताबिक खुद को बरछों और कटारों से काटने लगे। वे ऐसा तब तक करते रहे जब तक कि उनका पूरा शरीर लहू-लुहान न हो गया। 29  दोपहर बीत गयी, यहाँ तक कि शाम के अनाज के चढ़ावे का समय हो गया, फिर भी वे पागलों* जैसा बरताव करते रहे। मगर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, कोई आवाज़ सुनायी नहीं दी। उन पर ध्यान देनेवाला कोई न था।+ 30  आखिरकार एलियाह ने सब लोगों से कहा, “तुम लोग मेरे पास आओ।” तब सब लोग उसके पास गए। फिर उसने यहोवा की वह वेदी ठीक की जो ढा दी गयी थी।+ 31  फिर एलियाह ने 12 पत्थर लिए। ये पत्थर याकूब के बेटों से बने गोत्रों की गिनती के हिसाब से थे, जिससे यहोवा ने कहा था, “तेरा नाम इसराएल होगा।”+ 32  उन पत्थरों से एलियाह ने यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक वेदी बनायी।+ वेदी के चारों तरफ उसने खाई खुदवायी। खाई जितनी ज़मीन पर बनायी गयी थी, उसका माप उतनी ज़मीन के बराबर था जिसमें दो सआ* बीज बोया जा सकता है। 33  इसके बाद उसने वेदी पर लकड़ियाँ तरतीब से रखीं, बैल के टुकड़े-टुकड़े किए और लकड़ी पर रखे।+ फिर उसने कहा, “चार बड़े-बड़े मटकों में पानी भरो और होम-बलि के जानवर पर और लकड़ी पर उँडेल दो।” 34  उन्होंने जब ऐसा किया तो उसने कहा, “एक बार और करो।” उन्होंने दोबारा किया। उसने कहा, “फिर से पानी उँडेलो।” उन्होंने तीसरी बार ऐसा किया। 35  पानी वेदी पर से चारों तरफ बहने लगा। उसने खाई को भी पानी से भरवा दिया। 36  शाम का अनाज का चढ़ावा अर्पित करने का समय हो गया था।+ भविष्यवक्‍ता एलियाह वेदी के पास आया और उसने कहा, “हे यहोवा, अब्राहम, इसहाक और इसराएल के परमेश्‍वर,+ आज तू यह ज़ाहिर कर दे कि इसराएल में तू ही परमेश्‍वर है और मैं तेरा सेवक हूँ और तेरे आदेश पर ही मैंने यह सब किया है।+ 37  हे यहोवा, मेरी सुन ले। मेरी दुआ सुन ले ताकि ये लोग जानें कि तू यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है और तू उनके दिलों को वापस अपनी तरफ फेर रहा है।”+ 38  तब यहोवा ने ऊपर से आग भेजी जिससे होम-बलि, लकड़ी, पत्थर, धूल, सबकुछ भस्म हो गया+ और खाई का पानी भी पूरी तरह सूख गया।+ 39  जब लोगों ने यह सब देखा, तो वे फौरन मुँह के बल गिरकर कहने लगे: “यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है! यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है!” 40  तब एलियाह ने उनसे कहा, “बाल के सभी भविष्यवक्‍ताओं को पकड़ लो! एक भी भागने न पाए!” लोगों ने फौरन भविष्यवक्‍ताओं को पकड़ लिया। एलियाह उन्हें कीशोन नदी+ के पास ले गया और वहाँ उन सबको मार डाला।+ 41  फिर एलियाह ने अहाब से कहा, “तू ऊपर जा और कुछ खा-पी ले क्योंकि मूसलाधार बारिश की आवाज़ सुनायी दे रही है।”+ 42  तब अहाब खाने-पीने के लिए ऊपर गया जबकि एलियाह करमेल पहाड़ की चोटी पर गया। वह ज़मीन पर घुटनों के बल झुका और उसने अपना मुँह घुटनों के बीच रखा।+ 43  फिर उसने अपने सेवक से कहा, “ज़रा ऊपर जा और समुंदर की तरफ देखकर आ।” सेवक ने ऊपर जाकर देखा और कहा, “कुछ नहीं दिखायी दे रहा।” एलियाह ने सात बार उससे कहा, “जाकर देख।” 44  सातवीं बार सेवक ने कहा, “देख, समुंदर पर से आदमी की हथेली जितना छोटा बादल ऊपर उठ रहा है!” एलियाह ने कहा, “अहाब के पास जा और उससे कहना, ‘रथ तैयार करवाकर यहाँ से फौरन नीचे चला जा! वरना तू मूसलाधार बारिश में फँस जाएगा।’” 45  इस बीच आसमान काले बादलों से ढक गया, तेज़ हवाएँ चलने लगीं और मूसलाधार बारिश होने लगी।+ अहाब रथ पर सवार होकर यिजरेल की तरफ भागता गया।+ 46  मगर यहोवा ने एलियाह को शक्‍ति दी और एलियाह ने अपने कपड़े से अपनी कमर कसी और दौड़ने लगा। वह इतनी तेज़ दौड़ा कि अहाब से आगे निकल गया और यिजरेल तक दौड़ता गया।

कई फुटनोट

शा., “जिसके सामने मैं खड़ा रहता हूँ।”
शब्दावली देखें।
या “दो बैसाखियों के सहारे लँगड़ाते रहोगे?”
या शायद, “किसी सफर पर निकला हो।”
या “भविष्यवक्‍ताओं।”
एक सआ 7.33 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।