पहला राजा 2:1-46

  • दाविद ने सुलैमान को हिदायतें दीं (1-9)

  • दाविद की मौत; सुलैमान राजा बना (10-12)

  • अदोनियाह की साज़िश और मौत (13-25)

  • अबियातार बाहर किया गया; योआब मार डाला गया (26-35)

  • शिमी मार डाला गया (36-46)

2  जब दाविद की मौत करीब थी तो उसने अपने बेटे सुलैमान को ये हिदायतें दीं:  “देख, अब मैं ज़्यादा दिन नहीं जीऊँगा।* इसलिए तू हिम्मत से काम लेना+ और हौसला रखना।+  तू हमेशा यहोवा की बतायी राह पर चलना। उसने मूसा के कानून में जो विधियाँ, आज्ञाएँ, न्याय-सिद्धांत और याद दिलानेवाली हिदायतें लिखवायी हैं उन सबका तू पालन करना। इस तरह तू अपना फर्ज़ निभाना।+ तब तू जो भी काम करे और जहाँ भी जाए, तू कामयाब होगा।*  और यहोवा अपना यह वादा निभाएगा जो उसने मेरे बारे में किया था, ‘अगर तेरे बेटे मेरे सामने पूरे दिल, पूरी जान और पूरी वफादारी से सही राह पर चलते रहेंगे और इस तरह अपने चालचलन पर ध्यान देंगे,+ तो ऐसा कभी नहीं होगा कि इसराएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए तेरे वंश का कोई आदमी न हो।’+  तू यह भी अच्छी तरह जानता है कि सरूयाह के बेटे योआब ने मेरे साथ क्या किया था। उसने इसराएल के दो सेनापतियों को यानी नेर के बेटे अब्नेर+ और येतेर के बेटे अमासा को मार डाला।+ उसने युद्ध के समय नहीं बल्कि शांति के समय उनका खून बहाया।+ ऐसा करके उसने अपने कमरबंद और जूतों पर खून का दाग लगाया।  तू अपनी बुद्धि से काम लेना और उसे ऐसी मौत मरने मत देना जैसी सब इंसानों पर आती है।*+  मगर तू गिलाद के रहनेवाले बरजिल्लै+ के बेटों पर कृपा* करना। वे तेरी मेज़ से खाया करें क्योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम से भाग रहा था+ तो उन्होंने मेरा साथ दिया था।+  और तेरे पड़ोस में बहूरीम का जो शिमी रहता है, बिन्यामीन गोत्र के गेरा का बेटा, उसे मत छोड़ना। जिस दिन मैं महनैम जा रहा था,+ उस दिन उसने मुझे शाप दिया था, बड़े तीखे शब्दों से मुझ पर वार किया था।+ बाद में जब वह यरदन के पास मुझसे मिलने आया था, तब हालाँकि मैंने यहोवा की शपथ खाकर उससे कहा था, ‘मैं तुझे तलवार से नहीं मार डालूँगा,’+  मगर अब तू उसे सज़ा दिए बिना मत छोड़ना।+ तू बुद्धिमान आदमी है और जानता है कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए। तू उसे मौत की सज़ा देना ताकि वह बुढ़ापे में शांति से न मर सके।”*+ 10  इसके बाद दाविद की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में दफनाया गया।+ 11  दाविद ने इसराएल पर 40 साल राज किया था, 7 साल हेब्रोन+ में रहकर और 33 साल यरूशलेम में रहकर।+ 12  फिर सुलैमान ने अपने पिता की राजगद्दी सँभाली और उसका राज दिनों-दिन मज़बूत होता गया।+ 13  कुछ समय बाद हग्गीत का बेटा अदोनियाह, सुलैमान की माँ बतशेबा के पास आया। बतशेबा ने उससे पूछा, “तू नेक इरादे से ही आया है न?” अदोनियाह ने कहा, “हाँ, मैं नेक इरादे से ही आया हूँ।” 14  फिर उसने कहा, “मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।” बतशेबा ने कहा, “बोल, क्या कहना चाहता है।” 15  उसने कहा, “तू अच्छी तरह जानती है कि राजगद्दी मुझे मिलनी थी और पूरा इसराएल भी यही उम्मीद लगाए था* कि मैं राजा बनूँगा।+ मगर राजगद्दी मेरे हाथ से निकल गयी और मेरे भाई को मिल गयी। खैर कोई बात नहीं। यहोवा की यही मरज़ी थी कि राजगद्दी उसे मिले।+ 16  मगर अब मैं तुझसे बस एक गुज़ारिश करना चाहता हूँ। तू इनकार मत करना।” बतशेबा ने कहा, “बोल, क्या गुज़ारिश है।” 17  उसने कहा, “मेहरबानी करके राजा सुलैमान से कह कि वह शूनेम की अबीशग+ मुझे दे दे, मैं उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ। वह तेरी बात नहीं टालेगा।” 18  बतशेबा ने कहा, “ठीक है। मैं तेरी तरफ से राजा से बात करूँगी।” 19  तब बतशेबा अदोनियाह की तरफ से बात करने राजा सुलैमान के पास गयी। जैसे ही वह राजा के सामने आयी, राजा अपनी राजगद्दी से उठा और झुककर उसे प्रणाम किया। फिर वह अपनी राजगद्दी पर बैठ गया और राजमाता के लिए एक आसन मँगवाया ताकि वह उसके दायीं तरफ बैठे। 20  फिर बतशेबा ने कहा, “मैं एक छोटी-सी गुज़ारिश लेकर आयी हूँ। तू इनकार मत करना।” राजा ने कहा, “माँ, तुझे जो गुज़ारिश करनी है कर। मैं इनकार नहीं करूँगा।” 21  बतशेबा ने कहा, “तू अपने भाई अदोनियाह को शूनेम की अबीशग दे दे ताकि वह उसे अपनी पत्नी बना सके।” 22  राजा सुलैमान ने अपनी माँ से कहा, “तू अदोनियाह के लिए सिर्फ शूनेम की अबीशग ही क्यों माँग रही है? उसके लिए पूरा राजपाट माँग ले!+ वह मेरा बड़ा भाई जो है+ और याजक अबियातार और सरूयाह का बेटा योआब+ भी उसकी तरफ हैं।”+ 23  इसके बाद राजा सुलैमान ने यहोवा की शपथ खाकर कहा, “अदोनियाह को इस गुज़ारिश की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी। अगर मैंने उसे मौत के घाट न उतारा तो परमेश्‍वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे। 24  यहोवा के जीवन की शपथ, जिसने अपने वादे के मुताबिक मुझे मेरे पिता दाविद की राजगद्दी पर बिठाया, मेरा राज मज़बूती से कायम किया+ और मेरे लिए एक राज-घराना तैयार किया,+ आज अदोनियाह को मौत के घाट उतारा जाएगा।”+ 25  ऐसा कहने के फौरन बाद राजा सुलैमान ने यहोयादा के बेटे बनायाह+ को भेजा जिसने जाकर अदोनियाह पर वार किया और वह मर गया। 26  और याजक अबियातार+ से राजा ने कहा, “तू अनातोत में अपने खेत लौट जा!+ वैसे तो तू मौत की सज़ा के लायक है, मगर मैं आज तुझे नहीं मार डालूँगा क्योंकि तूने मेरे पिता दाविद के साथ रहते सारे जहान के मालिक यहोवा का संदूक उठाया था+ और तूने मेरे पिता के दुखों में उसका साथ दिया था।”+ 27  सुलैमान ने अबियातार को याजकपद से हटा दिया ताकि वह अब से याजक के नाते यहोवा की सेवा न करे। इस तरह उसने यहोवा की वह बात पूरी की जो उसने शीलो+ में एली के घराने के खिलाफ सुनायी थी।+ 28  जब ये सारी खबर योआब तक पहुँची, तो वह भागकर यहोवा के तंबू+ में गया और उसने वेदी के सींग पकड़ लिए। उसने भले ही अबशालोम का साथ नहीं दिया था,+ मगर उसने अदोनियाह का साथ दिया था।+ 29  राजा सुलैमान को बताया गया कि योआब भागकर यहोवा के तंबू में गया है और वेदी के पास खड़ा है। तब सुलैमान ने यहोयादा के बेटे बनायाह को यह कहकर भेजा, “जा, उसे खत्म कर दे!” 30  बनायाह यहोवा के तंबू में गया और उसने योआब से कहा, “राजा का हुक्म है, ‘तू बाहर आ!’” मगर योआब ने कहा, “नहीं, मैं यहीं मरूँगा।” बनायाह ने वापस आकर राजा को बताया कि योआब ने ऐसा-ऐसा कहा है। 31  राजा ने कहा, “ठीक है। वह जैसा कहता है वैसा ही कर। उसे वहीं मार डाल और उसकी लाश ले जाकर दफना दे। उसने बेगुनाहों का खून बहाकर मुझ पर और मेरे पिता के घराने पर जो दोष लगाया है उसे दूर कर।+ 32  यहोवा उसके खून का दोष उसी के सिर डाले क्योंकि उसने इसराएल के सेनापति अब्नेर+ को और यहूदा के सेनापति अमासा+ को मार डाला और मेरे पिता को इस बारे में कोई खबर नहीं थी। नेर का बेटा अब्नेर और येतेर का बेटा अमासा, दोनों उससे ज़्यादा नेक और भले आदमी थे, उसने उन दोनों को तलवार से मार डाला।+ 33  उन दोनों के खून के लिए योआब और उसके वंशज सदा दोषी रहेंगे।+ मगर दाविद और उसके वंशजों को, उसके घराने और उसके राज को सदा तक यहोवा की तरफ से शांति मिले।” 34  इसके बाद यहोयादा के बेटे बनायाह ने जाकर योआब को मार डाला और उसकी लाश वीराने में उसके घर के पास दफना दी। 35  फिर राजा ने यहोयादा के बेटे बनायाह+ को योआब की जगह सेनापति ठहराया और सादोक+ को अबियातार की जगह याजक ठहराया। 36  फिर राजा ने शिमी+ को बुलवाया और उससे कहा, “तू यरूशलेम में अपने लिए एक घर बना और यहीं रह। तू यह शहर छोड़कर कहीं नहीं जा सकता। 37  जिस दिन तू शहर से बाहर निकलेगा और किदरोन घाटी पार करेगा,+ उस दिन तू ज़रूर मार डाला जाएगा। तेरा खून तेरे ही सिर पड़ेगा।” 38  शिमी ने राजा से कहा, “मेरे मालिक राजा, तेरा यह फैसला सही है। तूने जैसा कहा है, तेरा यह दास वैसा ही करेगा।” इसलिए शिमी यरूशलेम में रहने लगा और काफी समय तक वहीं रहा। 39  मगर तीसरे साल के आखिर में शिमी के दासों में से दो आदमी भाग गए और गत के राजा आकीश+ के पास चले गए, जो माका का बेटा था। जैसे ही शिमी को बताया गया, “देख, तेरे दास गत में हैं,” 40  उसने फौरन अपने गधे पर काठी कसी और अपने दासों को ढूँढ़ने आकीश के पास गत गया। जब शिमी अपने दासों को लेकर वापस आया, 41  तो सुलैमान को खबर दी गयी कि शिमी यरूशलेम छोड़कर गत गया था और अब लौट आया है। 42  तब राजा ने शिमी को बुलवाया और उससे कहा, “क्या मैंने तुझे यहोवा की शपथ नहीं धरायी थी और तुझे खबरदार नहीं किया था कि जिस दिन तू यह शहर छोड़कर कहीं और जाएगा, उस दिन तू ज़रूर मार डाला जाएगा? और क्या तूने नहीं कहा था कि मेरा फैसला सही है और तू मेरी बात मानेगा?+ 43  तो फिर तूने क्यों अपनी बात नहीं रखी जो तूने यहोवा की शपथ खाकर कही थी? और मैंने तुझ पर जो पाबंदी लगायी थी वह तूने क्यों नहीं मानी?” 44  राजा ने शिमी से यह भी कहा, “तू खुद अच्छी तरह जानता है कि तूने मेरे पिता दाविद के साथ कितना बुरा किया था।+ अब यहोवा तुझे उस बुराई का फल देगा।+ 45  मगर राजा सुलैमान को आशीष मिलेगी+ और दाविद का राज यहोवा के सामने हमेशा तक मज़बूती से कायम रहेगा।” 46  यह कहकर राजा ने यहोयादा के बेटे बनायाह को हुक्म दिया कि वह शिमी को मार डाले। बनायाह ने जाकर उसे मार डाला।+ इस तरह इसराएल पर सुलैमान का राज मज़बूती से कायम हो गया।+

कई फुटनोट

शा., “मैं दुनिया की रीत के मुताबिक जानेवाला हूँ।”
या “बुद्धिमानी से काम करेगा।”
शा., “उसके पके बालों को शांति से कब्र में मत जाने देना।”
या “अटल प्यार।”
शा., “तू उसके पके बालों को खून के साथ कब्र में उतार देना।”
शा., “दाविद अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शा., “मेरी ओर मुँह किए था।”