पहला शमूएल 14:1-52

  • मिकमाश में योनातान की जीत (1-14)

  • इसराएल के दुश्‍मनों की हार (15-23)

  • शाऊल ने उतावली में शपथ खायी (24-46)

    • लोगों ने गोश्‍त के साथ खून खाया (32-34)

  • शाऊल के युद्ध; उसका परिवार (47-52)

14  एक दिन शाऊल के बेटे योनातान+ ने अपने हथियार ढोनेवाले सेवक से कहा, “चलो, हम उस पार पलिश्‍तियों की चौकी के पास चलते हैं।” मगर उसने अपने पिता को कुछ नहीं बताया।  उस वक्‍त शाऊल गिबा+ शहर के बाहर मिगरोन में अनार के पेड़ के नीचे रह रहा था और उसके साथ करीब 600 आदमी थे।+  (अहीतूब का बेटा अहियाह+ एपोद पहने हुए था।+ अहीतूब, ईकाबोद का भाई+ और फिनेहास का बेटा+ था और फिनेहास, शीलो में यहोवा की सेवा करनेवाले याजक+ एली का बेटा+ था।) उन आदमियों को पता नहीं था कि योनातान पलिश्‍तियों के पास गया हुआ है।  योनातान पलिश्‍तियों की चौकी तक जाने के लिए जो घाटी पार कर रहा था, उसके दोनों तरफ एक-एक नुकीली चट्टान थी। एक चट्टान का नाम बोसेस था और दूसरी का सेने।  एक चट्टान उत्तर में खंभे की तरह सीधी खड़ी थी और उसके सामने मिकमाश था और दूसरी चट्टान दक्षिण में थी और उसके सामने गेबा था।+  योनातान ने अपने हथियार ढोनेवाले सेवक से कहा, “चलो हम उस पार उन खतनारहित आदमियों+ की चौकी के पास चलते हैं। हो सकता है यहोवा हमारी मदद करे क्योंकि चाहे हम गिनती में थोड़े हों या ज़्यादा, यहोवा हमारे ज़रिए उद्धार दिला सकता है, उसके लिए कोई बात रुकावट नहीं है।”+  सेवक ने उससे कहा, “तेरा दिल जो कहे वह कर। तू जहाँ चाहे वहाँ चल, मैं तेरे पीछे-पीछे चलूँगा।”  योनातान ने कहा, “हम उस पार उन आदमियों के पास जाएँगे ताकि हम उन्हें नज़र आएँ।  अगर वे कहते हैं, ‘तुम हमारे आने तक वहीं खड़े रहना!’ तो हम वहीं खड़े रहेंगे। उनके पास नहीं जाएँगे। 10  लेकिन अगर वे कहते हैं, ‘आओ, हम पर हमला करो!’ तो हम ऊपर जाएँगे क्योंकि यहोवा उन्हें हमारे हाथ में कर देगा। यही हमारे लिए निशानी होगी।”+ 11  फिर वे दोनों जाकर ऐसी जगह खड़े हो गए कि पलिश्‍ती लोग अपनी चौकी से उन्हें देख सकें। पलिश्‍तियों ने उन्हें देखकर कहा, “वह देखो, इब्री आदमी अपने बिल में से निकलकर आ रहे हैं, जहाँ वे दुबके हुए थे।”+ 12  तब पलिश्‍तियों की चौकी पर तैनात आदमियों ने योनातान और उसके सेवक से कहा, “आओ, आओ, हम तुम्हें सबक सिखाते हैं!”+ यह सुनते ही योनातान ने अपने सेवक से कहा, “मैं आगे चलता हूँ, तू मेरे पीछे-पीछे आ। यहोवा उन्हें इसराएल के हाथ में कर देगा।”+ 13  फिर योनातान अपने हाथों और पैरों के बल ऊपर चढ़कर पलिश्‍तियों के पास गया। उसके पीछे-पीछे उसका सेवक भी चढ़कर गया। योनातान पलिश्‍तियों पर वार करने लगा और उसका सेवक भी उसके पीछे-पीछे उन्हें घात करता गया। 14  योनातान और उसके सेवक ने पहली बार जो हमला किया उसमें करीब 20 पलिश्‍ती मारे गए और वह भी आधे एकड़ ज़मीन की लंबाई के अंदर।* 15  तब उन सभी पलिश्‍तियों में आतंक फैल गया जो चौकी में तैनात थे और जो मैदान में छावनी डाले हुए थे। यहाँ तक कि उनके लुटेरे-दलों+ में भी खौफ समा गया और ज़मीन काँपने लगी। इस सबके पीछे परमेश्‍वर का हाथ था। 16  शाऊल के जो पहरेदार बिन्यामीन के गिबा में थे,+ उन्होंने देखा कि पलिश्‍तियों में खलबली मची हुई है और वह चारों तरफ फैलती जा रही है।+ 17  शाऊल ने अपने आदमियों से कहा, “ज़रा गिनती लेकर देखो कि हमारे यहाँ से कौन गया है।” जब उन्होंने गिनती ली तो देखा कि योनातान और उसका हथियार ढोनेवाला सेवक गायब हैं। 18  तब शाऊल ने अहियाह+ से कहा, “सच्चे परमेश्‍वर का संदूक यहाँ ले आ!” (उस वक्‍त सच्चे परमेश्‍वर का संदूक इसराएलियों के पास था।) 19  जब शाऊल याजक से बात कर रहा था, तो वहाँ पलिश्‍तियों की छावनी में और ज़्यादा हाहाकार मचने लगा। शाऊल ने याजक से कहा, “तू यह काम बंद कर।”* 20  फिर शाऊल और उसके सभी आदमी इकट्ठा हुए और पलिश्‍तियों से युद्ध करने उनकी छावनी में गए। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने देखा कि पलिश्‍ती एक-दूसरे पर ही तलवार चला रहे हैं और हर तरफ बड़ी खलबली मची हुई है। 21  और जो इब्री लोग पहले पलिश्‍तियों की तरफ हो गए थे और उनके साथ छावनी में थे, वे अब उन्हें छोड़कर शाऊल और योनातान के साथवाले इसराएलियों की तरफ आ गए। 22  और जितने इसराएली आदमी एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में जा छिपे थे+ उन्होंने जब सुना कि पलिश्‍ती भाग गए हैं तो वे भी युद्ध में शामिल होकर पलिश्‍तियों का पीछा करने लगे। 23  इस तरह यहोवा ने उस दिन इसराएल को बचाया+ और यह लड़ाई दूर बेत-आवेन तक चलती रही।+ 24  मगर उस दिन इसराएली आदमियों की हालत पस्त हो चुकी थी क्योंकि शाऊल ने उन्हें यह शपथ धरायी थी, “अगर किसी आदमी ने शाम से पहले, जब तक मैं अपने दुश्‍मनों से बदला नहीं ले लेता, एक निवाला भी खाया तो वह शापित हो!” इसलिए किसी भी आदमी ने कुछ नहीं खाया था।+ 25  सभी इसराएली आदमी* एक जंगल में पहुँचे और वहाँ ज़मीन पर शहद पड़ा था। 26  उन्होंने देखा कि शहद टपक रहा है, मगर उनमें से किसी ने शहद नहीं खाया क्योंकि वे सभी शपथ की वजह से डर गए थे। 27  मगर योनातान नहीं जानता था कि उसके पिता ने लोगों को शपथ धरायी है,+ इसलिए उसने अपनी लाठी बढ़ाकर उसका छोर मधुमक्खी के छत्ते में डाला। फिर जब उसने हाथ से शहद लेकर मुँह में डाला तो उसकी जान में जान आयी।* 28  तभी लोगों में से एक आदमी ने उससे कहा, “तेरे पिता ने सब लोगों को एक शपथ धरायी है और सख्ती से कहा है कि अगर आज किसी ने कुछ खाया तो वह शापित होगा!+ इसीलिए लोगों की हालत इतनी पस्त है।” 29  मगर योनातान ने कहा, “मेरा पिता देश पर बड़ा संकट ले आया है! देखो, मैंने ज़रा-सा शहद चखा और मेरी जान में जान आ गयी। 30  अगर लोगों को दुश्‍मनों की लूट में से जी-भरकर खाने दिया जाता तो कितना अच्छा होता!+ हम और भी बड़ी तादाद में पलिश्‍तियों को मार डालते।” 31  उस दिन वे मिकमाश से अय्यालोन+ तक पलिश्‍तियों को मारते गए और वे थककर चूर हो गए थे। 32  इसलिए वे सब लूट के माल पर टूट पड़े। वे भेड़ों, गाय-बैलों और बछड़ों को पकड़कर ज़मीन पर हलाल करने लगे और खून के साथ ही गोश्‍त खाने लगे।+ 33  तब शाऊल को बताया गया कि लोग खून के साथ गोश्‍त खा रहे हैं और यहोवा के खिलाफ पाप कर रहे हैं।+ इस पर उसने कहा, “तुम लोगों ने विश्‍वासघात किया है। तुम जल्दी से एक बड़ा पत्थर लुढ़काकर मेरे पास ले आओ।” 34  फिर उसने कहा, “लोगों के पास जाओ और उनसे कहो, ‘तुम सब अपना-अपना बैल और अपनी-अपनी भेड़ यहाँ लाकर हलाल करो और फिर उसे खाओ। तुम खून के साथ गोश्‍त खाकर यहोवा के खिलाफ पाप मत करो।’”+ तब उस रात हर कोई अपना बैल शाऊल के पास ले गया और वहाँ उसे हलाल किया। 35  फिर शाऊल ने यहोवा के लिए एक वेदी बनायी।+ यह वह पहली वेदी थी जो उसने यहोवा के लिए बनायी थी। 36  बाद में शाऊल ने अपने आदमियों से कहा, “चलो हम रात में पलिश्‍तियों पर हमला करते हैं और सुबह उजाला होने तक उन्हें लूटते हैं। हम उनमें से एक को भी ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे।” उन्होंने कहा, “तुझे जो सही लगे वह कर।” फिर याजक ने कहा, “आओ, हम इस जगह पर सच्चे परमेश्‍वर से पूछें।”+ 37  तब शाऊल ने परमेश्‍वर से सलाह की, “क्या मुझे पलिश्‍तियों पर हमला करना चाहिए?+ क्या तू उन्हें इसराएल के हाथ में कर देगा?” मगर परमेश्‍वर ने उस दिन उसे कोई जवाब नहीं दिया। 38  तब शाऊल ने कहा, “लोगों के सभी प्रधानो, यहाँ आओ और पता लगाओ कि आज हमारे बीच कौन-सा पाप हुआ है। 39  मैं यहोवा के जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ, जिसने इसराएल को बचाया है, जिस किसी ने पाप किया है उसे मौत की सज़ा दी जाएगी, फिर चाहे वह मेरा बेटा योनातान ही क्यों न हो।” मगर लोगों में से किसी ने कुछ नहीं कहा। 40  तब शाऊल ने लोगों से कहा, “तुम सब एक तरफ खड़े हो जाओ, मैं और मेरा बेटा योनातान दूसरी तरफ खड़े होंगे।” लोगों ने कहा, “तुझे जो सही लगे वही कर।” 41  तब शाऊल ने यहोवा से कहा, “हे इसराएल के परमेश्‍वर, तुम्मीम+ के ज़रिए हमें जवाब दे!” तब योनातान और शाऊल चुने गए और लोग छूट गए। 42  फिर शाऊल ने कहा, “अब चिट्ठियाँ डालकर+ देखो कि मैं कसूरवार हूँ या मेरा बेटा योनातान।” चिट्ठी योनातान के नाम पर निकली। 43  शाऊल ने योनातान से कहा, “मुझे बता, तूने क्या पाप किया है?” योनातान ने कहा, “मैंने अपनी लाठी के छोर से बस थोड़ा-सा शहद चखा।+ हाँ, मैं कसूरवार हूँ। मैं मरने के लिए तैयार हूँ!” 44  तब शाऊल ने कहा, “योनातान, अगर तुझे मौत की सज़ा न मिली तो परमेश्‍वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे।”+ 45  मगर लोगों ने शाऊल से कहा, “क्या योनातान मार डाला जाएगा जिसने इसराएल को इतनी बड़ी जीत दिलायी* है?+ नहीं, यह हरगिज़ नहीं हो सकता! यहोवा के जीवन की शपथ, उसका बाल भी बाँका नहीं होगा क्योंकि उसने आज के दिन परमेश्‍वर के साथ मिलकर काम किया है।”+ ऐसा कहकर लोगों ने योनातान को बचा लिया* और उसे मौत की सज़ा नहीं दी गयी। 46  इसके बाद शाऊल ने पलिश्‍तियों का पीछा करना छोड़ दिया और वे अपने इलाके में लौट गए। 47  शाऊल ने इसराएल पर अपनी हुकूमत मज़बूत की और आस-पास के सभी दुश्‍मनों से युद्ध किया। उसने मोआबियों,+ अम्मोनियों,+ एदोमियों+ और पलिश्‍तियों+ से और सोबा के राजाओं+ से युद्ध किया। वह जहाँ भी गया दुश्‍मनों को हराता गया। 48  उसने बड़ी दिलेरी से युद्ध किया और अमालेकियों पर जीत हासिल की+ और इसराएल को लुटेरों के हाथ से बचाया। 49  शाऊल के बेटों के नाम हैं योनातान, यिश्‍वी और मलकीशूआ।+ उसकी दो बेटियाँ थीं, बड़ी का नाम मेरब+ था और छोटी का मीकल।+ 50  शाऊल की पत्नी का नाम अहीनोअम था जो अहीमास की बेटी थी। शाऊल के सेनापति का नाम अब्नेर+ था जो उसके पिता के भाई नेर का बेटा था। 51  शाऊल का पिता कीश+ था और अब्नेर का पिता नेर,+ अबीएल का बेटा था। 52  शाऊल जब तक जीया तब तक उसके और पलिश्‍तियों के बीच घमासान युद्ध होता रहा।+ शाऊल जब भी किसी ताकतवर या बहादुर आदमी को देखता तो उसे अपनी सेना में भरती कर लेता था।+

कई फुटनोट

यानी ज़मीन का उतना हिस्सा जितना एक जोड़ी बैल एक दिन में जोत सकता है।
शा., “अपना हाथ खींच।”
शा., “सारा देश।”
शा., “उसकी आँखें चमक उठीं।”
शा., “छुड़ाया।”
या “उद्धार दिलाया।”