पहला शमूएल 17:1-58

  • दाविद ने गोलियात को हराया (1-58)

    • गोलियात की चुनौती (8-10)

    • दाविद ने चुनौती स्वीकार की (32-37)

    • वह यहोवा के नाम से लड़ा (45-47)

17  पलिश्‍ती लोग+ अपनी सेना की टुकड़ियाँ लेकर इसराएलियों से युद्ध करने सोकोह+ में इकट्ठा हुए जो यहूदा के इलाके में है। उन्होंने सोकोह और अजेका+ के बीच एपेस-दम्मीम+ में छावनी डाली।  शाऊल और इसराएली आदमी भी इकट्ठा हुए और उन्होंने एलाह घाटी+ में छावनी डाली। वे पलिश्‍तियों से मुकाबला करने के लिए दल बाँधकर तैनात हो गए।  पलिश्‍ती लोग एक तरफ के पहाड़ पर तैनात थे और इसराएली दूसरी तरफ के पहाड़ पर। दोनों के बीच एक घाटी थी।  फिर पलिश्‍तियों की तरफ से एक वीर योद्धा उनकी छावनी से निकलकर आया। उसका नाम गोलियात+ था और वह गत+ का रहनेवाला था। वह करीब साढ़े नौ फुट* लंबा था।  उसके सिर पर ताँबे का टोप था और उसने ताँबे का बख्तर*+ पहन रखा था जिसका वज़न 5,000 शेकेल* था।  उसकी टाँगों पर ताँबे का कवच था और वह अपनी पीठ पर ताँबे की बरछी+ लटकाए हुए था।  उसके भाले का डंडा जुलाहे के लट्ठे जैसा भारी था+ और भाले के लोहे के फल का वज़न 600 शेकेल* था। उसके आगे-आगे उसकी ढाल ढोनेवाला सैनिक चलता था।  गोलियात सामने आकर खड़ा हो गया और उसने इसराएल के सेना-दल को यह कहकर ललकारा,+ “तुम लोग यहाँ दल बाँधकर क्यों आए हो? मैं पलिश्‍तियों का माना हुआ सूरमा हूँ और तुम शाऊल के सेवक हो। जाओ, अपने लिए कोई ऐसा आदमी चुन लो जो मेरा मुकाबला कर सके और उसे भेजो मेरे पास।  अगर वह मुझसे लड़कर मुझे मार गिराए तो हम लोग तुम्हारे गुलाम बन जाएँगे। लेकिन अगर मैंने उसे मार डाला तो तुम हमारे दास बन जाओगे, हमारी गुलामी करोगे।” 10  उस पलिश्‍ती ने यह भी कहा, “आज मैं इसराएल की सेना को चुनौती देता हूँ,+ भेजो किसी आदमी को मेरे पास। हो जाए मुकाबला!” 11  जब शाऊल और सारे इसराएलियों ने उस पलिश्‍ती की ये बातें सुनीं तो वे बहुत डर गए और थर-थर काँपने लगे। 12  दाविद, यहूदा के बेतलेहेम+ एप्राता+ के रहनेवाले यिशै का बेटा था। यिशै+ के आठ बेटे थे+ और जब शाऊल राजा था तब तक यिशै बूढ़ा हो चुका था। 13  यिशै के तीन बड़े बेटे शाऊल के साथ युद्ध में गए हुए थे।+ सबसे बड़ा एलीआब था,+ दूसरा अबीनादाब+ और तीसरा शम्माह था।+ 14  दाविद सबसे छोटा था।+ उसके वे तीनों बड़े भाई शाऊल के साथ युद्ध में गए हुए थे। 15  दाविद अपने पिता की भेड़ों को चराने+ के लिए शाऊल के यहाँ से बेतलेहेम आया-जाया करता था। 16  इस बीच वह पलिश्‍ती आदमी हर दिन सुबह-शाम युद्ध के मैदान में आकर इसराएलियों को ललकारता था। ऐसा वह 40 दिन तक करता रहा। 17  एक दिन यिशै ने अपने बेटे दाविद से कहा, “बेटा, ये एपा-भर* भुना हुआ अनाज और ये दस रोटियाँ लेकर फौरन अपने भाइयों के पास छावनी में जा। 18  और पनीर के ये दस टुकड़े ले जाकर उनके सेना-अधिकारी* को दे आ। तू जाकर अपने भाइयों का हाल-चाल पूछ और उनके पास से कोई ऐसी निशानी ला जिससे मुझे यकीन हो कि वे सही-सलामत हैं।” 19  दाविद के भाई पलिश्‍तियों से लड़ने+ के लिए शाऊल और बाकी इसराएली आदमियों के साथ एलाह घाटी में थे।+ 20  दाविद अगले दिन सुबह जल्दी उठा और उसने अपनी भेड़ों की रखवाली करने का ज़िम्मा किसी और को सौंपा। फिर वह सामान बाँधकर निकल पड़ा, ठीक जैसे उसके पिता यिशै ने उसे आज्ञा दी थी। जब दाविद छावनी के पास पहुँचा, तो उसने देखा कि सेना नारे लगाती हुई युद्ध के मैदान की तरफ बढ़ रही है। 21  इसराएली और पलिश्‍ती सेना मुकाबले के लिए आमने-सामने तैनात हो गयीं। 22  दाविद ने फौरन अपना सामान उस आदमी के पास छोड़ा जो सामान की रखवाली करता था और दौड़कर युद्ध के मैदान में गया। वहाँ उसने अपने भाइयों की खैरियत पूछी।+ 23  दाविद उनसे बात कर ही रहा था कि तभी पलिश्‍तियों की सेना में से उनका सूरमा गोलियात+ निकलकर सामने आया, जो गत से था। उसने हर दिन की तरह इसराएलियों को ललकारा+ और दाविद ने यह सब सुना। 24  जब इसराएली आदमियों ने उस योद्धा को देखा तो वे सब डर के मारे भाग खड़े हुए।+ 25  वे एक-दूसरे से कह रहे थे, “देखा उस आदमी को? कैसे इसराएल को ललकारता है।+ राजा ने कहा है कि जो उस पलिश्‍ती को मार डालेगा उसे वह खूब सारी दौलत देगा, उससे अपनी बेटी की शादी कराएगा+ और उसके पिता के घराने को कर और सेवा से छूट दे देगा।” 26  दाविद ने पास खड़े आदमियों से पूछा, “उस पलिश्‍ती को जो मार डालेगा और इसराएल को बदनाम होने से बचाएगा उसे क्या इनाम मिलेगा? उस खतनारहित पलिश्‍ती की यह मजाल कि वह जीवित परमेश्‍वर की सेना को ललकारे?”+ 27  तब उन आदमियों ने दाविद को वही बात बतायी, “जो उस आदमी को मार डालेगा उसे ये-ये दिया जाएगा।” 28  जब दाविद के बड़े भाई एलीआब+ ने उसे वहाँ खड़े आदमियों से बात करते देखा तो वह दाविद पर भड़क उठा और कहने लगा, “तू यहाँ क्यों आया है? तू उन थोड़ी-सी भेड़ों को वीराने में किसके पास छोड़ आया?+ तू सबकुछ छोड़-छाड़कर युद्ध का नज़ारा देखने चला आया? इतनी गुस्ताखी! मैं जानता हूँ, तेरा दिल साफ नहीं है।” 29  तब दाविद ने कहा, “मैंने कौन-सा बड़ा गुनाह कर दिया? बस एक सवाल ही तो पूछा है!” 30  इसलिए दाविद किसी और के पास गया और उससे भी वही सवाल पूछा।+ उन लोगों ने भी वही जवाब दिया।+ 31  कुछ आदमियों ने दाविद की बात सुन ली थी और जाकर इस बारे में शाऊल को बताया। तब शाऊल ने दाविद को अपने पास बुलवाया। 32  दाविद ने शाऊल से कहा, “उस पलिश्‍ती की वजह से किसी का मन कच्चा न हो।* तेरा यह दास उससे लड़ेगा।”+ 33  मगर शाऊल ने कहा, “तू उस पलिश्‍ती से कैसे लड़ सकता है? तू बस एक छोटा-सा लड़का है+ और वह लड़कपन से सैनिक* रहा है।” 34  तब दाविद ने कहा, “तेरा यह दास अपने पिता की भेड़ों का चरवाहा भी है। एक बार जब एक शेर+ मेरी एक भेड़ को उठाकर ले जाने लगा और दूसरी बार एक भालू एक भेड़ को उठाकर ले जाने लगा, 35  तो मैंने उनका पीछा किया और उन्हें मारा और भेड़ को उनके मुँह से बचाया। जब उन जानवरों ने मुझ पर हमला किया तो मैंने उनके बाल कसकर पकड़ लिए* और उन्हें गिराकर मार डाला। 36  तेरे दास ने शेर और भालू, दोनों को मार डाला। इस खतनारहित पलिश्‍ती का भी वही अंजाम होगा क्योंकि इसने जीवित परमेश्‍वर की सेना को ललकारा है।”+ 37  दाविद ने यह भी कहा, “यहोवा, जिसने मुझे शेर और भालू के पंजों से बचाया था, वही मुझे इस पलिश्‍ती के हाथ से भी बचाएगा।”+ तब शाऊल ने दाविद से कहा, “जा, यहोवा तेरे साथ रहे।” 38  फिर शाऊल ने दाविद को अपने कपड़े पहनाए। उसने दाविद के सिर पर ताँबे का टोप रखा और उसे एक बख्तर पहनाया। 39  फिर दाविद ने शाऊल की तलवार अपने कपड़ों पर बाँध ली और चलने की कोशिश की, मगर वह चल नहीं पाया क्योंकि वह इन सबका आदी नहीं था। दाविद ने शाऊल से कहा, “मैं यह सब पहनकर नहीं चल पा रहा हूँ, मुझे इनकी आदत नहीं है।” इसलिए दाविद ने वह सब उतार दिया। 40  उसने हाथ में अपनी लाठी ली और घाटी से पाँच चिकने-चिकने पत्थर चुने और अपनी चरवाहे की थैली में रखे। उसके हाथ में उसका गोफन था।+ फिर वह उस पलिश्‍ती की तरफ बढ़ने लगा। 41  वह पलिश्‍ती कदम बढ़ाता हुआ दाविद की तरफ आने लगा और उसकी ढाल ढोनेवाला सैनिक उसके आगे-आगे चल रहा था। 42  जब उस पलिश्‍ती की नज़र दाविद पर पड़ी तो उसने दाविद को नीची नज़रों से देखा। उसने दाविद की खिल्ली उड़ायी क्योंकि वह बस एक सुंदर-सा लड़का था जिससे लाली झलकती थी।+ 43  उस पलिश्‍ती ने दाविद से कहा, “क्या मैं कुत्ता हूँ+ जो तू डंडा लेकर मुझे भगाने आया है?” फिर वह अपने देवताओं के नाम से दाविद को शाप देने लगा। 44  उस पलिश्‍ती ने दाविद से कहा, “आ जा, मैं तुझे मारकर तेरा माँस आकाश के पक्षियों और मैदान के जानवरों को खिला दूँगा।” 45  तब दाविद ने उस पलिश्‍ती से कहा, “तू तलवार, भाला और बरछी लेकर मुझसे लड़ने आ रहा है,+ मगर मैं सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से आ रहा हूँ,+ इसराएल की सेना के परमेश्‍वर के नाम से जिसे तूने ललकारा है।+ 46  आज ही के दिन यहोवा तुझे मेरे हाथ में कर देगा+ और मैं तुझे मार डालूँगा और तेरा सिर काट डालूँगा। आज मैं सभी पलिश्‍ती सैनिकों की लाशें आकाश के पक्षियों और धरती के जंगली जानवरों को खिला दूँगा। तब धरती के सब लोग जान जाएँगे कि इसराएल का परमेश्‍वर ही सच्चा परमेश्‍वर है।+ 47  और यहाँ जितने लोग इकट्ठा हैं वे सब जान जाएँगे* कि अपने लोगों को बचाने के लिए यहोवा को तलवार या भाले की ज़रूरत नहीं,+ क्योंकि युद्ध यहोवा का है+ और वह तुम सबको हमारे हाथ में कर देगा।”+ 48  तब वह पलिश्‍ती दाविद का सामना करने के लिए आगे बढ़ने लगा, मगर दाविद उसका मुकाबला करने पलिश्‍ती सेना की तरफ फुर्ती से दौड़ा। 49  दाविद ने अपनी थैली से एक पत्थर निकालकर गोफन में रखा और उस पलिश्‍ती की तरफ ऐसा फेंका कि वह सीधे जाकर उसके माथे पर लगा और अंदर धँस गया। वह पलिश्‍ती वहीं मुँह के बल ज़मीन पर गिर पड़ा।+ 50  इस तरह दाविद ने गोफन और एक पत्थर से उस पलिश्‍ती को हराया। उसने बिना तलवार के उस पलिश्‍ती का काम तमाम कर दिया।+ 51  दाविद दौड़ा-दौड़ा गया और उस पलिश्‍ती के ऊपर खड़ा हो गया। उसने उस आदमी की म्यान से तलवार निकाली+ और उसका सिर काट डाला ताकि यह पक्का हो जाए कि वह मर चुका है। जब पलिश्‍तियों ने देखा कि उनका सूरमा मर गया है तो वे सब भाग गए।+ 52  यह सब देखकर इसराएल और यहूदा के आदमी खुशी से चिल्लाने लगे। वे पलिश्‍तियों का पीछा करने लगे और घाटी+ से लेकर एक्रोन+ के फाटकों तक उनका घात करते गए। शारैम+ से लेकर दूर गत और एक्रोन तक, पूरे रास्ते पर उनकी लाशें बिछ गयीं। 53  इस तरह इसराएलियों ने पलिश्‍तियों का बेतहाशा पीछा किया और वापस आकर उनकी छावनियाँ लूट लीं। 54  फिर दाविद उस पलिश्‍ती का सिर उठाकर यरूशलेम ले आया, मगर उसके हथियार उसने अपने तंबू में रखे।+ 55  जब शाऊल ने दाविद को उस पलिश्‍ती का सामना करने के लिए जाते देखा तो उसने अपने सेनापति अब्नेर+ से पूछा, “अब्नेर, यह किसका लड़का है?”+ अब्नेर ने कहा, “हे राजा, तेरे जीवन की शपथ, मैं नहीं जानता!” 56  राजा ने उससे कहा, “पता लगाओ कि यह नौजवान किसका बेटा है।” 57  इसलिए जैसे ही दाविद उस पलिश्‍ती को मार डालने के बाद लौटा, अब्नेर उसे शाऊल के पास लाया। दाविद के हाथ में उस पलिश्‍ती का सिर था।+ 58  शाऊल ने उससे पूछा, “तू किसका बेटा है?” दाविद ने कहा, “मैं तेरे दास यिशै का बेटा हूँ+ जो बेतलेहेम का रहनेवाला है।”+

कई फुटनोट

शा., “छ: हाथ एक बित्ता।” अति. ख14 देखें।
यह कवच अंदर से कपड़े या चमड़े का बना होता था। इसके ऊपर धातु के टुकड़े ऐसे लगे होते थे जैसे मछली पर छिलकों की कतारें होती हैं।
करीब 57 किलो। अति. ख14 देखें।
करीब 6.84 किलो। अति. ख14 देखें।
करीब 22 ली. अति. ख14 देखें।
या “हज़ारों के प्रधान।”
या “कोई हिम्मत न हारे।”
या “एक वीर योद्धा।”
या “उन्हें जबड़े से पकड़ा।”
शा., “यह पूरी मंडली जान जाएगी।”