पहला शमूएल 25:1-44

  • शमूएल की मौत (1)

  • नाबाल ने दाविद के आदमियों को ठुकराया (2-13)

  • अबीगैल ने बुद्धिमानी से काम लिया (14-35)

    • ‘थैली में रखी कीमती चीज़ों की तरह यहोवा जान की हिफाज़त करेगा’ (29)

  • मूर्ख नाबाल की मौत (36-38)

  • अबीगैल दाविद की पत्नी बनी (39-44)

25  कुछ समय बाद शमूएल+ की मौत हो गयी और पूरा इसराएल उसके लिए मातम मनाने और उसके घर के पास उसे दफनाने के लिए रामाह में इकट्ठा हुआ।+ इसके बाद दाविद उठा और नीचे पारान वीराने चला गया।  माओन+ में एक आदमी रहता था जिसकी जायदाद करमेल*+ में थी। वह आदमी बहुत अमीर था। उसके पास 3,000 भेड़ें और 1,000 बकरियाँ थीं। वह करमेल में अपनी भेड़ों का ऊन कतरवा रहा था।  उस आदमी का नाम नाबाल+ था और उसकी पत्नी का नाम अबीगैल।+ अबीगैल हमेशा समझ-बूझ से काम लेती थी और बहुत खूबसूरत थी। मगर उसका पति कठोर स्वभाव का था और सबके साथ बुरा बरताव करता था।+ वह कालेबवंशी+ था।  जब दाविद वीराने में था तब उसने सुना कि नाबाल अपनी भेड़ों का ऊन कतरवा रहा है।  उसने अपने दस जवानों को यह कहकर नाबाल के पास भेजा, “तुम ऊपर करमेल जाओ और नाबाल से मिलकर कहो कि मैंने उसकी खैरियत पूछी है।  फिर तुम उससे कहना, ‘तू लंबी उम्र जीए, तू* और तेरा घराना और तेरा सबकुछ सलामत रहे।  मैंने सुना है कि तू अपनी भेड़ों का ऊन कतरवा रहा है। जब तेरे चरवाहे हमारे साथ थे तो हमने कभी उनका नुकसान नहीं किया।+ जितने दिन वे करमेल में रहे उन्होंने एक भी जानवर नहीं खोया।  तू चाहे तो इस बारे में अपने जवानों से पूछ सकता है। अब मेरे जवानों पर मेहरबानी कर, हम खुशी के इस मौके पर तेरे यहाँ आए हैं। तू अपने इन सेवकों को और अपने बेटे दाविद को जो कुछ दे सकता है दे।’”+  दाविद के जवान नाबाल के पास गए और उन्होंने उसे दाविद का संदेश दिया। जब उन्होंने अपनी बात पूरी की, 10  तो नाबाल ने उनसे कहा, “दाविद कौन है? यिशै का बेटा कौन है? आजकल जिस सेवक को देखो अपने मालिक से भागता फिरता है।+ 11  मैंने यह रोटी-पानी और गोश्‍त का इंतज़ाम ऊन कतरनेवाले अपने सेवकों के लिए किया है। क्या मैं यह सब उठाकर ऐसे लोगों को दे दूँ जो पता नहीं कहाँ से चले आते हैं?” 12  तब दाविद के जवान वहाँ से लौट गए और उन्होंने दाविद को सारी बातें सुनायीं। 13  दाविद ने फौरन अपने आदमियों से कहा, “सब लोग अपनी-अपनी तलवार बाँध लो!”+ उन सबने अपनी-अपनी तलवार बाँध ली और दाविद ने भी अपनी तलवार बाँध ली। दाविद के साथ करीब 400 आदमी निकल पड़े जबकि 200 आदमी सामान की देखभाल के लिए रह गए। 14  इस बीच नाबाल के एक सेवक ने उसकी पत्नी अबीगैल को बताया, “दाविद ने वीराने से अपने दूतों के हाथ हमारे मालिक के लिए शुभकामनाएँ भेजीं। मगर मालिक उन पर बरस पड़ा और उनकी बेइज़्ज़ती की।+ 15  जब हम उन आदमियों के साथ मैदानों में थे, तो उन्होंने कभी हमारा नुकसान नहीं किया। जितने दिन हम उनके साथ थे, हमारा एक भी जानवर गुम नहीं हुआ।+ 16  जब हम झुंड की चरवाही करते थे, तो उन्होंने एक बाड़े की तरह दिन-रात हमारी हिफाज़त की थी। 17  अब हमारे मालिक और उसके पूरे घराने पर मुसीबत आनेवाली है।+ मालिक ऐसा निकम्मा आदमी है+ कि हममें से कोई उससे बात नहीं कर सकता। इसलिए अब तुझे ही कुछ करना होगा।” 18  तब अबीगैल+ ने फौरन खाने-पीने की ढेर सारी चीज़ें गधों पर लादीं। उसने 200 रोटियाँ, दो बड़े-बड़े मटके दाख-मदिरा, पाँच हलाल की हुई भेड़ें, पाँच सआ* भुना हुआ अनाज, 100 किशमिश की टिकियाँ और 200 अंजीर की टिकियाँ लीं और गधों पर लादीं।+ 19  फिर उसने अपने सेवकों से कहा, “तुम लोग आगे-आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे आती हूँ।” मगर उसने अपने पति नाबाल को कुछ नहीं बताया। 20  अबीगैल गधे पर बैठी पहाड़ की आड़ में नीचे चली जा रही थी कि तभी रास्ते में उसकी मुलाकात दाविद और उसके आदमियों से हुई जो उसकी तरफ आ रहे थे। 21  अबीगैल से मिलने से पहले दाविद कह रहा था, “मैंने वीराने में बेकार ही उस आदमी की हर चीज़ की हिफाज़त की। मेरे रहते उसका एक भी जानवर गुम नहीं हुआ,+ मगर आज वह मेरी भलाई का यह सिला दे रहा है।+ 22  अगर मैंने कल सुबह तक उसके एक भी आदमी को ज़िंदा छोड़ा तो परमेश्‍वर दाविद के इन दुश्‍मनों को* कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे।” 23  जैसे ही अबीगैल की नज़र दाविद पर पड़ी, वह फौरन गधे से उतरी और उसने दाविद के सामने ज़मीन पर गिरकर उसे प्रणाम किया। 24  फिर वह दाविद के पैरों पर गिरकर कहने लगी, “मेरे मालिक, अपनी दासी को कुछ कहने की इजाज़त दे। जो भी हुआ है उसके लिए तू चाहे तो मुझे दोषी ठहरा दे, मगर अपनी दासी की बात मान ले। 25  उस निकम्मे नाबाल पर ध्यान मत दे।+ जैसा उसका नाम है वैसी उसकी फितरत है। उसका नाम नाबाल* है, और वह मूर्खों जैसा ही बरताव करता है। मालिक, तूने जिन जवानों को हमारे यहाँ भेजा था, उन्हें मैंने नहीं देखा था। 26  मेरे मालिक, यहोवा के जीवन की और तेरे जीवन की शपथ, यहोवा ने ही तुझे खून का दोषी+ बनने और अपने हाथों से बदला लेने* से रोक लिया है।+ तेरे दुश्‍मनों का और जो तेरा बुरा करने की ताक में घूम रहे हैं उनका वही हाल हो जो नाबाल का होगा। 27  मालिक, अब तू अपनी दासी के हाथ से यह तोहफा+ कबूल कर, जो मैं तेरे सेवकों के लिए लायी हूँ।+ 28  मेहरबानी करके अपनी दासी का अपराध माफ कर दे। यहोवा ज़रूर तेरे वंशजों को सदा तक राज करने का अधिकार देगा,+ क्योंकि तू यहोवा की तरफ से युद्ध करता है।+ तूने ज़िंदगी में कभी कोई बुरा काम नहीं किया है।+ 29  जब कोई तेरी जान लेने के लिए तेरा पीछा करे, तब तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरी जान की वैसे ही हिफाज़त करेगा जैसे कोई अपनी कीमती चीज़ें थैली में बाँधकर हिफाज़त से रखता है। और वह तेरे दुश्‍मनों का जीवन ऐसे दूर फेंकेगा, जैसे गोफन से पत्थर दूर फेंका जाता है। 30  जब यहोवा तेरे साथ वे सारे भलाई के काम करेगा, जिनका उसने वादा किया है और तुझे इसराएल का अगुवा ठहराएगा,+ 31  तब तेरा मन तुझे इस बात के लिए नहीं धिक्कारेगा और तुझे कोई पछतावा नहीं होगा कि तूने बेवजह खून बहाया है और खुद अपने हाथों से बदला लिया है।*+ मेरे मालिक, जब यहोवा तुझे आशीष देगा तब तू अपनी दासी को याद करना।” 32  तब दाविद ने अबीगैल से कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई हो जिसने आज तुझे मेरे पास भेजा है! 33  परमेश्‍वर तुझे आशीष दे क्योंकि तूने समझदारी से काम लिया है। आज तूने मुझे खून का दोषी बनने से और अपने हाथों से बदला लेने* से रोक लिया है,+ परमेश्‍वर तुझे आशीष दे। 34  इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, जिसने मुझे तेरा नुकसान करने से रोक लिया है,+ अगर तू फौरन मेरे पास न आती+ तो कल सुबह तक नाबाल के घराने का एक भी आदमी ज़िंदा नहीं बचता।”+ 35  इसके बाद दाविद ने अबीगैल का तोहफा कबूल किया और उससे कहा, “तू बेफिक्र होकर घर जा। देख, मैंने तेरी बात मान ली है। मैं तेरी गुज़ारिश पूरी करूँगा।” 36  बाद में अबीगैल नाबाल के पास लौटी। उस वक्‍त वह अपने घर पर राजा की तरह दावत उड़ा रहा था और वह* बहुत खुश था। वह पीकर धुत्त हो गया था। अबीगैल ने नाबाल को सुबह तक कुछ नहीं बताया। 37  सुबह जब नाबाल का नशा उतरा तो उसकी पत्नी अबीगैल ने उसे सारा हाल कह सुनाया। जब नाबाल ने यह सब सुना तो वह पत्थर-सा सुन्‍न हो गया, उसके दिल ने मानो काम करना बंद कर दिया। 38  करीब दस दिन बाद यहोवा ने नाबाल को मारा और वह मर गया। 39  जब दाविद को नाबाल की मौत की खबर मिली तो उसने कहा, “यहोवा की बड़ाई हो क्योंकि नाबाल ने मेरी जो बेइज़्ज़ती की थी+ उस मामले में यहोवा ने न्याय किया+ और मुझे बुरा काम करने से रोक दिया।+ परमेश्‍वर ने नाबाल के बुरे कामों का अंजाम उसी के सिर डाल दिया है!” इसके बाद दाविद ने अबीगैल के पास संदेश भेजा कि वह उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता है। 40  दाविद के सेवकों ने करमेल आकर अबीगैल से कहा, “दाविद ने हमारे हाथ यह संदेश भेजा है कि वह तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता है।” 41  अबीगैल ने फौरन मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर कहा, “तेरी यह दासी अपने मालिक के सेवकों के पैर धोने+ के लिए तैयार है।” 42  फिर अबीगैल+ फौरन उठी और अपने गधे पर सवार होकर निकल पड़ी। उसकी पाँच दासियाँ उसके पीछे-पीछे गयीं। अबीगैल दाविद के दूतों के साथ उसके पास गयी और उसकी पत्नी बन गयी। 43  दाविद ने यिजरेल+ की रहनेवाली अहीनोअम+ से भी शादी की थी। इस तरह वे दोनों उसकी पत्नियाँ बन गयीं।+ 44  मगर शाऊल ने अपनी बेटी यानी दाविद की पत्नी मीकल+ की शादी, लैश के बेटे पलती+ से करा दी थी जो गल्लीम का रहनेवाला था।

कई फुटनोट

यह करमेल पहाड़ नहीं बल्कि यहूदा का एक शहर है।
या “तुझे शांति मिले।”
एक सआ 7.33 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या शायद, “परमेश्‍वर दाविद को।”
मतलब “मूर्ख।”
या “उद्धार कराने।”
या “उद्धार किया है।”
या “उद्धार करने।”
शा., “नाबाल का दिल।”