पहला शमूएल 26:1-25

  • दाविद ने फिर से शाऊल को बख्शा (1-25)

    • उसने यहोवा के अभिषिक्‍त जन का आदर किया (11)

26  कुछ समय बाद ज़ीफ+ के आदमी शाऊल के पास गिबा+ गए और उन्होंने उसे बताया कि दाविद यशीमोन* के सामने हकीला पहाड़ी पर छिपा हुआ है।+  तब शाऊल ने इसराएल के 3,000 चुने हुए आदमी लिए और दाविद को ढूँढ़ने नीचे ज़ीफ वीराने की तरफ निकल पड़ा।+  शाऊल ने यशीमोन के सामने हकीला पहाड़ी पर सड़क किनारे छावनी डाली। उस समय दाविद वीराने में रह रहा था और उसे पता चला कि शाऊल उसे पकड़ने के लिए इस वीराने में पहुँच गया है।  दाविद ने अपने जासूस भेजे ताकि वे पता लगाएँ कि क्या शाऊल सचमुच वहाँ आया है।  बाद में दाविद उस जगह गया जहाँ शाऊल ने छावनी डाली थी। दाविद ने वह जगह देखी जहाँ शाऊल और उसका सेनापति अब्नेर+ (जो नेर का बेटा था) सो रहे थे। शाऊल छावनी के बीचों-बीच सो रहा था और उसकी सेना की सारी टुकड़ियाँ उसके चारों तरफ थीं।  इसके बाद दाविद ने अहीमेलेक से जो हित्ती+ था और अबीशै+ से जो सरूयाह+ का बेटा और योआब का भाई था, पूछा, “मेरे साथ शाऊल की छावनी में कौन चलेगा?” अबीशै ने कहा, “मैं तेरे साथ चलूँगा।”  तब दाविद और अबीशै रात के वक्‍त शाऊल की छावनी में गए और उन्होंने देखा कि शाऊल छावनी के बीचों-बीच सो रहा है और उसका भाला उसके सिर के पास ज़मीन में गड़ा हुआ है। अब्नेर और सारे सैनिक शाऊल के चारों तरफ सो रहे थे।  अबीशै ने दाविद से कहा, “देख, आज परमेश्‍वर ने तेरे दुश्‍मन को तेरे हाथ में कर दिया है।+ अब मुझे इजाज़त दे कि मैं भाले से उसे ज़मीन में ठोंक दूँ। मैं एक ही वार में उसे मार डालूँगा, मुझे दोबारा वार करने की ज़रूरत नहीं होगी।”  मगर दाविद ने अबीशै से कहा, “नहीं, नहीं, तू उसे कुछ मत कर। क्या कोई यहोवा के अभिषिक्‍त जन+ पर हाथ उठाकर निर्दोष रह सकता है?”+ 10  फिर दाविद ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, यहोवा खुद उसे मार डालेगा+ या फिर वह युद्ध में मारा जाएगा।+ अगर नहीं तो जैसे सब मरते हैं, वैसे ही एक दिन उस पर भी मौत आ जाएगी।+ 11  लेकिन मैं यहोवा के अभिषिक्‍त जन पर हाथ उठाने की सोच भी नहीं सकता क्योंकि ऐसा करना यहोवा की नज़र में गलत होगा।+ अब चल, हम उसके सिरहाने से भाला और पानी की सुराही उठा लें और यहाँ से निकल जाएँ।” 12  दाविद ने शाऊल के सिरहाने से भाला और सुराही उठा ली और दोनों वहाँ से चले गए। किसी ने भी उन्हें नहीं देखा,+ न किसी को पता चला, न ही कोई जागा। सब लोग सो रहे थे क्योंकि यहोवा ने उन्हें गहरी नींद सुला दिया था। 13  फिर दाविद दूसरी तरफ गया और दूर जाकर पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ। शाऊल की छावनी और दाविद के बीच काफी दूरी थी। 14  दाविद ने वहाँ से शाऊल की सेना को और नेर के बेटे अब्नेर+ को ज़ोर से आवाज़ दी, “अब्नेर! अब्नेर! क्या तू सुन रहा है?” अब्नेर ने कहा, “तू कौन है? कौन राजा को आवाज़ दे रहा है?” 15  दाविद ने अब्नेर से कहा, “तू एक बड़ा योद्धा है, पूरे इसराएल में तेरी टक्कर का कोई नहीं है। फिर तूने क्यों अपने मालिक की, अपने राजा की हिफाज़त नहीं की? एक सैनिक तेरे राजा की जान लेने आया था।+ 16  ऐसी लापरवाही दिखाकर तूने ठीक नहीं किया। यहोवा के जीवन की शपथ, तुझे मौत की सज़ा मिलनी चाहिए क्योंकि तूने अपने मालिक यहोवा के अभिषिक्‍त जन की हिफाज़त नहीं की।+ अब चारों तरफ नज़र दौड़ाकर देख! राजा के सिरहाने जो भाला और पानी की सुराही+ थी वह कहाँ है?” 17  तब शाऊल ने दाविद की आवाज़ पहचान ली और कहा, “बेटे दाविद, क्या यह तेरी आवाज़ है?”+ दाविद ने कहा, “हाँ मेरे मालिक राजा, मैं ही बोल रहा हूँ।” 18  फिर दाविद ने कहा, “मालिक, तू क्यों अपने इस दास का पीछा कर रहा है?+ आखिर मैंने किया क्या है? मेरा दोष क्या है?+ 19  मेरे मालिक, ज़रा अपने दास की बात सुन। अगर यहोवा ने तुझे मेरे खिलाफ भड़काया है, तो वह मेरा अनाज का चढ़ावा स्वीकार करे।* लेकिन अगर इंसानों ने तुझे भड़काया है+ तो वे यहोवा के सामने शापित हैं, क्योंकि उन्होंने मुझे वह देश छोड़ने पर मजबूर किया है जो यहोवा ने विरासत+ में दिया है, मानो मेरा उसमें कोई हिस्सा नहीं। वे एक तरह से कह रहे हैं, ‘जा, जाकर दूसरे देवताओं की सेवा कर!’ 20  यहोवा की मौजूदगी से दूर ज़मीन पर मेरा खून न बहाया जाए। इसराएल का राजा जिसे पकड़ने निकला है वह बस एक पिस्सू है,+ राजा जिसके पीछे भाग रहा है वह पहाड़ों पर छिपता-फिरता तीतर है।” 21  तब शाऊल ने कहा, “मैंने पाप किया है।+ मेरे बेटे दाविद, मेरे पास वापस आ जा। मैं तुझे कुछ नहीं करूँगा क्योंकि आज तूने दिखा दिया कि तू मेरी जान को अनमोल समझता है।+ मैंने सचमुच बेवकूफी की है, बहुत बड़ी गलती की है।” 22  तब दाविद ने कहा, “यह रहा राजा का भाला। तेरा एक जवान आकर इसे ले जाए। 23  यहोवा हर किसी को उसकी नेकी और वफादारी का इनाम देगा।+ आज यहोवा ने तुझे मेरे हाथ में कर दिया था, मगर मैंने यहोवा के अभिषिक्‍त जन पर हाथ उठाने से इनकार कर दिया।+ 24  और जैसे आज मैंने तेरी जान को अनमोल समझा वैसे ही यहोवा मेरी जान को अनमोल समझे और मुझे सारी मुसीबतों से बचाए।”+ 25  शाऊल ने दाविद से कहा, “मेरे बेटे दाविद, तुझे आशीष मिले। तू सचमुच बड़े-बड़े काम करेगा और हर काम में कामयाब होगा।”+ इसके बाद दाविद अपने रास्ते चला गया और शाऊल अपनी जगह लौट गया।+

कई फुटनोट

या शायद, “रेगिस्तान; वीराना।”
शा., “सूँघे।”