पहला शमूएल 7:1-17

  • संदूक किरयत-यारीम में (1)

  • शमूएल ने बढ़ावा दिया, ‘सिर्फ यहोवा की सेवा करो’ (2-6)

  • मिसपा में इसराएल की जीत (7-14)

  • शमूएल, इसराएल का न्यायी (15-17)

7  तब किरयत-यारीम के आदमी आए और यहोवा का संदूक ले गए। उन्होंने उसे ले जाकर पहाड़ी पर अबीनादाब के घर+ में रखा और उसके बेटे एलिआज़र को यहोवा के संदूक की रखवाली के लिए पवित्र ठहराया।  किरयत-यारीम में परमेश्‍वर के संदूक को आए पूरे 20 साल गुज़र गए। इतने लंबे समय बाद इसराएल का पूरा घराना यहोवा की खोज करने लगा।*+  तब शमूएल ने इसराएल के पूरे घराने से कहा, “अगर तुम वाकई पूरे दिल से यहोवा के पास लौट रहे हो,+ तो अपने बीच से पराए देवताओं की मूरतें+ और अशतोरेत देवी की मूरतें निकाल दो।+ और अपना दिल पूरी तरह यहोवा पर लगाओ और सिर्फ उसकी सेवा करो,+ तब वह तुम्हें पलिश्‍तियों के हाथ से छुड़ाएगा।”+  तब इसराएलियों ने बाल देवताओं और अशतोरेत की मूरतें निकाल दीं और वे सिर्फ यहोवा की सेवा करने लगे।+  फिर शमूएल ने उनसे कहा, “पूरे इसराएल को मिसपा+ में इकट्ठा करो, मैं तुम सबकी खातिर यहोवा से प्रार्थना करूँगा।”+  इसलिए वे सब मिसपा में इकट्ठा हुए और पानी भरकर लाए और यहोवा के सामने उसे उँडेला और उस दिन सबने उपवास किया।+ वहाँ उन सबने कबूल किया, “हमने यहोवा के खिलाफ पाप किया है।”+ और शमूएल वहाँ मिसपा में इसराएलियों का न्याय करने लगा।+  जब पलिश्‍तियों ने सुना कि इसराएली मिसपा में इकट्ठा हुए हैं, तो उनके सरदार+ इसराएलियों पर हमला करने निकल पड़े। जब यह बात इसराएलियों को पता चली तो वे बहुत डर गए।  उन्होंने शमूएल से कहा, “तू हमारे परमेश्‍वर यहोवा की दुहाई देता रह कि वह हमारी मदद करे+ और हमें पलिश्‍तियों के हाथ से बचाए।”  तब शमूएल ने एक दूध-पीता मेम्ना लिया और यहोवा के लिए उसकी पूरी होम-बलि चढ़ायी।+ फिर शमूएल ने इसराएल की तरफ से यहोवा को मदद के लिए पुकारा और यहोवा ने उसकी सुनी।+ 10  शमूएल होम-बलि चढ़ा ही रहा था कि तभी पलिश्‍ती इसराएल से लड़ने उनकी तरफ बढ़ने लगे। तब उस दिन यहोवा ने आकाश से पलिश्‍तियों पर ज़ोर का गरजन करवाया+ और उन्हें उलझन में डाल दिया।+ और वे इसराएल से हार गए।+ 11  तब इसराएल के आदमियों ने मिसपा से निकलकर पलिश्‍तियों का पीछा किया और वे उन्हें दूर बेतकर के दक्षिण तक घात करते गए। 12  इसके बाद शमूएल ने एक पत्थर लिया+ और मिसपा और यशाना के बीच रखा। उसने उस पत्थर को एबनेज़ेर* नाम दिया क्योंकि उसने कहा, “यहोवा ने अब तक हमारी मदद की है।”+ 13  इस तरह पलिश्‍तियों की हार हुई और वे फिर कभी इसराएल के इलाके में नहीं आए।+ जब तक शमूएल ज़िंदा था तब तक यहोवा का हाथ पलिश्‍तियों के खिलाफ उठा रहा।+ 14  इसके अलावा, इसराएलियों को एक्रोन से गत तक के सभी शहर वापस मिल गए जो पलिश्‍तियों ने ले लिए थे। इसराएल ने अपना इलाका पलिश्‍तियों से वापस ले लिया। इसराएलियों और एमोरियों के बीच भी शांति थी।+ 15  शमूएल ने पूरी ज़िंदगी इसराएल का न्याय किया।+ 16  हर साल वह बेतेल,+ गिलगाल+ और मिसपा+ का दौरा करता था और इन जगहों में इसराएल का न्याय करता था। 17  फिर वह रामाह+ लौट जाता था क्योंकि वहाँ उसका घर था। वह रामाह में भी इसराएल का न्याय करता था। वहाँ उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनायी थी।+

कई फुटनोट

या “मातम मनाते हुए यहोवा के पीछे जाने लगा।”
मतलब “मदद का पत्थर।”