पहला शमूएल 9:1-27

  • शमूएल, शाऊल से मिला (1-27)

9  बिन्यामीन गोत्र में कीश+ नाम का एक आदमी था जो अबीएल का बेटा था। अबीएल सरोर का बेटा था, सरोर बकोरत का और बकोरत अपीह का बेटा था। बिन्यामीन गोत्र का यह आदमी+ कीश बहुत अमीर था।  उसका एक जवान बेटा था शाऊल।+ शाऊल बड़ा ही सुंदर और सजीला था, उसके जैसा पूरे इसराएल में कोई नहीं था। वह इतना लंबा था कि सब लोग उसके कंधे तक ही आते थे।  एक बार जब कीश की गधियाँ गुम हो गयीं तो उसने अपने बेटे शाऊल से कहा, “बेटा, तू अपने साथ एक सेवक लेकर जा और गधियों को ढूँढ़ ला।”  वे एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में गए और वहाँ ढूँढ़ने लगे। इसके बाद वे शालीशा के इलाके में गए, मगर उन्हें गधियाँ कहीं नहीं मिलीं। फिर वे आगे शालीम के इलाके में गए, मगर वहाँ भी नहीं मिलीं। उन्होंने बिन्यामीन का पूरा इलाका छान मारा, मगर जानवर कहीं भी दिखायी नहीं दिए।  फिर वे ज़ूफ के इलाके में आए और वहाँ शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “चल हम वापस चलते हैं, वरना मेरा पिता जानवरों की चिंता छोड़कर हमारी चिंता करने लगेगा।”+  मगर सेवक ने उससे कहा, “सुन, इस शहर में सच्चे परमेश्‍वर का एक सेवक रहता है जिसका लोग बहुत सम्मान करते हैं। वह जो कुछ कहता है सच साबित होता है।+ चलो, हम उसके पास चलते हैं, हो सकता है वह हमें बता दे कि हम किस रास्ते जाएँ।”  तब शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “अगर हम सच्चे परमेश्‍वर के उस सेवक के पास जाएँगे, तो हम उसे तोहफे में क्या देंगे? हमारे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं है। हमारे थैलों में एक रोटी तक नहीं रही। बता हम क्या करें?”  सेवक ने शाऊल से कहा, “देख, मेरे पास चाँदी का एक छोटा-सा टुकड़ा* है। यह मैं सच्चे परमेश्‍वर के सेवक को दूँगा और वह हमें बताएगा कि हमें किस रास्ते जाना है।”  (पुराने समय में इसराएल में जब किसी को परमेश्‍वर की मरज़ी जाननी होती तो वह कहता, “चलो, हम दर्शी के पास चलते हैं।”+ आज जिन्हें भविष्यवक्‍ता कहा जाता है, वे पहले दर्शी कहलाते थे।) 10  तब शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “ठीक है, चलते हैं।” वे दोनों उस शहर में गए जहाँ सच्चे परमेश्‍वर का सेवक रहता था। 11  जब वे ऊपर शहर जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें कुछ लड़कियाँ मिलीं जो पानी भरने जा रही थीं। उन्होंने लड़कियों से पूछा, “क्या दर्शी यहीं है?”+ 12  लड़कियों ने कहा, “हाँ, वह यहीं है। वह अभी-अभी यहाँ से गया है। आज ही वह शहर आया है और आज लोग उपासना की ऊँची जगह+ पर बलिदान चढ़ानेवाले हैं।+ जल्दी जाओ, 13  जैसे ही तुम शहर पहुँचोगे तुम्हें वह मिल जाएगा। जल्दी जाओ, वरना वह ऊँची जगह पर भोज करने चला जाएगा। क्योंकि जब तक वह जाकर बलिदान पर आशीष नहीं माँगेगा, तब तक लोग खा नहीं सकते। जब वह दुआ कर लेगा तब न्यौते में बुलाए गए लोग भोज करेंगे। इसलिए तुम फौरन जाओ ताकि तुम उससे शहर में मिल सको।” 14  तब वे ऊपर शहर की तरफ गए। जब वे शहर में घुस रहे थे तो शमूएल उनसे मिलने आ रहा था ताकि वह उन्हें अपने साथ ऊँची जगह ले जाए। 15  शाऊल के यहाँ आने से एक दिन पहले यहोवा ने शमूएल को यह बताया था, 16  “कल इसी समय मैं बिन्यामीन के इलाके के रहनेवाले एक आदमी को तेरे पास भेजूँगा।+ तू उसका अभिषेक करके उसे मेरी प्रजा इसराएल का अगुवा ठहराना।+ वह मेरे लोगों को पलिश्‍तियों के हाथ से बचाएगा। मैंने देखा है कि मेरे लोग कैसी दुख-तकलीफें झेल रहे हैं और मैंने उनका रोना-बिलखना सुना है।”+ 17  जब शमूएल ने शाऊल को देखा तो यहोवा ने शमूएल से कहा, “देख, यही वह आदमी है जिसके बारे में मैंने तुझसे कहा था कि वह मेरे लोगों पर राज करेगा।”*+ 18  तब शाऊल शहर के फाटक पर शमूएल के पास गया और उसने पूछा, “क्या तू मुझे बता सकता है कि दर्शी का घर कहाँ है?” 19  शमूएल ने कहा, “मैं ही दर्शी हूँ। तू मेरे आगे-आगे ऊँची जगह तक चल। आज वहाँ तुम दोनों मेरे साथ भोज करोगे।+ और तू जो भी जानना चाहता है, वह सब* मैं तुझे बताऊँगा और कल सुबह तुझे भेज दूँगा। 20  रही बात तेरे जानवरों की जो तीन दिन पहले खो गए थे,+ उनकी तू फिक्र मत कर क्योंकि वे मिल गए हैं। और फिर इसराएल में जितनी मनभावनी चीज़ें हैं, वे सब किसकी हैं? क्या वे तेरी और तेरे पिता के घराने की नहीं?”+ 21  तब शाऊल ने कहा, “यह तू क्या कह रहा है? मैं तो इसराएल के सबसे छोटे गोत्र बिन्यामीन से हूँ+ और मेरे कुल की तो बिन्यामीन के कुलों में कोई गिनती ही नहीं।” 22  फिर शमूएल, शाऊल और उसके सेवक को भोजन के कमरे में लाया, जहाँ करीब 30 आदमी बैठे थे। उसने शाऊल और उसके सेवक को सबसे खास जगह पर बिठाया। 23  शमूएल ने रसोइए से कहा, “गोश्‍त का वह हिस्सा ले आ जो मैंने तुझे दिया था और अलग रखने के लिए कहा था।” 24  तब रसोइया गया और बलिदान के गोश्‍त में से पाया उठाकर लाया और उसे शाऊल के सामने परोसा। शमूएल ने शाऊल से कहा, “तेरे सामने जो परोसा गया है वह तेरे लिए ही रखा गया था। इसे खा क्योंकि उन्होंने यह हिस्सा इस मौके पर खास तेरे लिए रखा था। मैंने उन्हें बताया था कि मैंने कुछ मेहमान बुलाए हैं।” तब शाऊल ने शमूएल के साथ बैठकर खाया। 25  फिर वे ऊँची जगह+ से नीचे शहर गए। घर पहुँचने पर शमूएल शाऊल से घर की छत पर बातें करता रहा। 26  अगले दिन वे सुबह तड़के उठे। छत पर शमूएल ने शाऊल को आवाज़ देकर कहा, “तैयार हो जा ताकि मैं तुझे विदा करूँ।” शाऊल तैयार हो गया और वे दोनों बाहर चले गए। 27  जब वे शहर से नीचे जा रहे थे तो शमूएल ने शाऊल से कहा, “अपने सेवक+ से कह कि वह आगे चलता रहे। मगर तू यहीं खड़ा रह। मैं तुझे बताऊँगा कि परमेश्‍वर ने तेरे लिए क्या संदेश दिया है।” तब वह सेवक आगे निकल गया।

कई फुटनोट

शा., “एक शेकेल चाँदी की चौथाई।” एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
या “को हदों में रखेगा।”
शा., “और तेरे दिल की सारी बातें।”