दूसरा इतिहास 18:1-34

  • यहोशापात की अहाब से रिश्‍तेदारी (1-11)

  • मीकायाह ने हार की भविष्यवाणी की (12-27)

  • रामोत-गिलाद में अहाब की मौत (28-34)

18  यहोशापात ने खूब दौलत और शोहरत हासिल की थी,+ मगर उसने अहाब से रिश्‍तेदारी कर ली।+  इसलिए कुछ साल बाद यहोशापात, अहाब से मिलने सामरिया गया।+ अहाब ने उसके लिए और उसके साथ आए लोगों के लिए बहुत-सी भेड़ों और गाय-बैलों का बलिदान किया। और उसने यहोशापात को रामोत-गिलाद+ पर हमला करने के लिए कायल कर दिया।  फिर इसराएल के राजा अहाब ने यहूदा के राजा यहोशापात से कहा, “क्या तू युद्ध करने मेरे साथ रामोत-गिलाद चलेगा?” यहोशापात ने उससे कहा, “हम दोनों एक हैं और मेरे लोग तेरे ही लोग हैं। हम युद्ध में ज़रूर तेरा साथ देंगे।”  मगर यहोशापात ने इसराएल के राजा से कहा, “क्यों न हम पहले यहोवा से पूछें कि उसकी क्या सलाह है?”+  इसलिए इसराएल के राजा ने सभी भविष्यवक्‍ताओं को इकट्ठा किया जो 400 थे। उसने उनसे पूछा, “क्या हम रामोत-गिलाद पर हमला करने जाएँ?” उन्होंने कहा, “जा, तू हमला कर, सच्चा परमेश्‍वर उसे तेरे हाथ में कर देगा।”  फिर यहोशापात ने कहा, “क्या यहाँ यहोवा का कोई भविष्यवक्‍ता नहीं है?+ चलो हम उसके ज़रिए भी पूछते हैं।”+  तब इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “एक और आदमी है+ जिसके ज़रिए हम यहोवा से सलाह माँग सकते हैं, मगर मुझे उस आदमी से नफरत है। वह मेरे बारे में कभी अच्छी बातों की भविष्यवाणी नहीं करता, हमेशा बुरी बातें कहता है।+ वह यिम्ला का बेटा मीकायाह है।” मगर यहोशापात ने कहा, “राजा को ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए।”  तब इसराएल के राजा ने अपने एक दरबारी को बुलाया और उससे कहा, “यिम्ला के बेटे मीकायाह को फौरन यहाँ ले आ।”+  इसराएल का राजा अहाब और यहूदा का राजा यहोशापात, शाही कपड़े पहने सामरिया के फाटक के पास एक खलिहान में अपनी-अपनी राजगद्दी पर बैठे थे। सारे भविष्यवक्‍ता उन दोनों के सामने भविष्यवाणी कर रहे थे। 10  तब कनाना के बेटे सिदकियाह ने अपने लिए लोहे के सींग बनवाए और कहा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘तू सीरिया के लोगों को इनसे तब तक मारता* रहेगा जब तक कि वे मिट नहीं जाते।’” 11  बाकी भविष्यवक्‍ता भी यही भविष्यवाणी कर रहे थे। वे कह रहे थे, “जा, तू रामोत-गिलाद पर हमला कर। तू ज़रूर कामयाब होगा,+ यहोवा उसे तेरे हाथ में कर देगा।” 12  मीकायाह को बुलाने के लिए जो दूत गया था, उसने मीकायाह से कहा, “देख, सारे भविष्यवक्‍ता राजा को एक ही बात बता रहे हैं। वे उसे अच्छी बातों की भविष्यवाणी सुना रहे हैं। इसलिए मेहरबानी करके तू भी उनकी तरह कोई अच्छी बात सुना।”+ 13  मगर मीकायाह ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, मैं वही बात बताऊँगा जो मेरा परमेश्‍वर मुझे बताएगा।”+ 14  फिर मीकायाह राजा के पास आया और राजा ने उससे पूछा, “मीकायाह, तू क्या कहता है, हम रामोत-गिलाद पर हमला करें या न करें?” उसने फौरन जवाब दिया, “जा, तू रामोत-गिलाद पर हमला कर। तू ज़रूर कामयाब होगा, वे तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएँगे।” 15  राजा ने उससे कहा, “मैं तुझे कितनी बार शपथ धराकर कहूँ कि तू यहोवा के नाम से मुझे सिर्फ सच बताएगा?” 16  तब मीकायाह ने कहा, “मैं देख रहा हूँ कि सारे इसराएली पहाड़ों पर तितर-बितर हो गए हैं, उन भेड़ों की तरह जिनका कोई चरवाहा नहीं होता।+ यहोवा कहता है, ‘इनका कोई मालिक नहीं है। इनमें से हर कोई शांति से अपने घर लौट जाए।’” 17  तब इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “देखा, मैंने कहा था न, यह आदमी मेरे बारे में अच्छी बातों की भविष्यवाणी नहीं करेगा, सिर्फ बुरी बातें कहेगा।”+ 18  फिर मीकायाह ने कहा, “इसलिए अब यहोवा का संदेश सुनो। मैंने देखा है कि यहोवा अपनी राजगद्दी पर बैठा है+ और उसके दायीं और बायीं तरफ स्वर्ग की सारी सेना खड़ी है।+ 19  फिर यहोवा ने कहा, ‘इसराएल के राजा अहाब को कौन बेवकूफ बनाएगा ताकि वह रामोत-गिलाद जाए और वहाँ मारा जाए?’ तब सेना में से किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ। 20  फिर एक स्वर्गदूत+ यहोवा के सामने आकर खड़ा हुआ और उसने कहा, ‘मैं अहाब को बेवकूफ बनाऊँगा।’ यहोवा ने पूछा, ‘तू यह कैसे करेगा?’ 21  उसने कहा, ‘मैं जाकर उसके सभी भविष्यवक्‍ताओं के मुँह से झूठ बुलवाऊँगा।’ परमेश्‍वर ने कहा, ‘तू उसे बेवकूफ बना लेगा, तू ज़रूर कामयाब होगा। जा, तूने जैसा कहा है वैसा ही कर।’ 22  इसलिए यहोवा ने तेरे इन भविष्यवक्‍ताओं के मुँह से झूठ बुलवाया है,+ मगर यहोवा ने ऐलान किया है कि तुझ पर संकट आएगा।” 23  तब कनाना का बेटा सिदकियाह,+ मीकायाह+ के पास गया और उसके गाल पर ज़ोर से थप्पड़ मारा+ और कहा, “यहोवा का स्वर्गदूत कब से मुझे छोड़कर तुझसे बात करने लगा है?”+ 24  मीकायाह ने कहा, “इसका जवाब तुझे उस दिन मिलेगा जब तू भागकर अंदर के कमरे में जा छिपेगा।” 25  तब इसराएल के राजा ने हुक्म दिया, “ले जाओ इस मीकायाह को। इसे शहर के प्रधान आमोन और राजा के बेटे योआश के हवाले कर दो। 26  उनसे कहना, ‘राजा ने आदेश दिया है कि इसे जेल में बंद कर दो+ और जब तक मैं सही-सलामत लौट नहीं आता तब तक इसे नाम के लिए खाना-पानी देते रहना।’” 27  मगर मीकायाह ने कहा, “अगर तू सही-सलामत लौटा तो इसका मतलब यह होगा कि यहोवा ने मेरे ज़रिए बात नहीं की है।”+ फिर उसने कहा, “लोगो, तुम सब यह बात याद रखना।” 28  इसके बाद इसराएल का राजा अहाब और यहूदा का राजा यहोशापात रामोत-गिलाद गए।+ 29  इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “मैं अपना भेस बदलकर युद्ध में जाऊँगा, मगर तू अपने शाही कपड़े पहने रहना।” इसराएल के राजा ने भेस बदला और वे दोनों युद्ध में गए। 30  वहाँ सीरिया के राजा ने अपनी रथ-सेना के सेनापतियों को यह हुक्म दिया था, “तुम लोग सीधे इसराएल के राजा से युद्ध करना, उसके सिवा किसी और से मत लड़ना, फिर चाहे वह कोई मामूली सैनिक हो या बड़ा अधिकारी।” 31  जैसे ही रथ-सेना के सेनापतियों ने यहोशापात को देखा उन्होंने सोचा, “यही इसराएल का राजा होगा।” इसलिए वे सब यहोशापात पर हमला करने लगे और वह मदद के लिए पुकारने लगा।+ यहोवा ने उसकी मदद की और दुश्‍मनों को फौरन उससे दूर ले गया। 32  जैसे ही सेनापतियों को पता चला कि वह इसराएल का राजा नहीं है, उन्होंने उसका पीछा करना छोड़ दिया। 33  तब किसी सैनिक ने यूँ ही एक तीर चलाया और वह तीर इसराएल के राजा को वहाँ जा लगा जहाँ कवच और बख्तर का दूसरा हिस्सा जुड़ा हुआ था। राजा ने अपने सारथी से कहा, “रथ घुमाकर मुझे युद्ध के मैदान* से बाहर ले जा, मैं बुरी तरह घायल हो गया हूँ।”+ 34  पूरे दिन घमासान लड़ाई चलती रही और इसराएल के राजा को सहारा देकर शाम तक सीरिया के लोगों के सामने रथ पर खड़ा रखना पड़ा। और सूरज ढलते-ढलते वह मर गया।+

कई फुटनोट

या “धकेलता।”
शा., “मुझे छावनी।”