दूसरा इतिहास 32:1-33

  • सनहेरीब की धमकी (1-8)

  • उसने यहोवा को कुछ नहीं समझा (9-19)

  • स्वर्गदूत ने अश्‍शूरियों को नाश किया (20-23)

  • हिजकियाह की बीमारी; उसका घमंड (24-26)

  • उसकी कामयाबियाँ और मौत (27-33)

32  हिजकियाह ने जब विश्‍वासयोग्य रहकर ये सारे काम किए,+ तो इसके बाद अश्‍शूर के राजा सनहेरीब ने आकर यहूदा पर धावा बोल दिया। उसने वहाँ किलेबंद शहरों में घुसकर उन पर कब्ज़ा करने के लिए घेराबंदी की।+  जब हिजकियाह ने देखा कि सनहेरीब आ गया है और उसने यरूशलेम से युद्ध करने की ठान ली है  तो उसने अपने हाकिमों और योद्धाओं से सलाह-मशविरा किया और फैसला किया कि वह शहर के बाहर के सोतों का पानी+ बंद कर देगा। उन सबने उसका साथ दिया।  बहुत-से लोगों को इकट्ठा किया गया और उन्होंने सभी सोते बंद कर दिए और नदी की वह धारा रोक दी जो उस पूरे इलाके में बहती थी। उन्होंने कहा, “हम नहीं चाहते कि जब अश्‍शूर के राजा यहाँ आएँ तो उन्हें भरपूर पानी मिले।”  इसके अलावा, हिजकियाह ने मज़बूत इरादे के साथ शहरपनाह का टूटा हुआ पूरा हिस्सा बनाया, उस पर मीनारें खड़ी कीं और बाहर एक और शहरपनाह बनायी। उसने दाविदपुर के टीले* की मरम्मत की+ और बहुत सारे हथियार और ढालें बनायीं।  फिर उसने लोगों पर सेनापति ठहराए और उन्हें शहर के फाटक के पासवाले चौक में इकट्ठा किया। उसने यह कहकर उन सबकी हिम्मत बँधायी:  “तुम सब हिम्मत से काम लो और हौसला रखो। तुम अश्‍शूर के राजा और उसकी विशाल सेना से मत डरना, न ही खौफ खाना+ क्योंकि उसके साथ जितने हैं उनसे कहीं ज़्यादा हमारे साथ हैं।+  उसे इंसानी ताकत पर भरोसा है, मगर हमारे साथ हमारा परमेश्‍वर यहोवा है। वह हमारी मदद करेगा और हमारी तरफ से युद्ध करेगा।”+ यहूदा के राजा हिजकियाह के इन शब्दों से लोगों को बहुत हौसला मिला।+  इसके बाद, जब अश्‍शूर का राजा सनहेरीब अपनी ताकतवर सेना* के साथ लाकीश+ में था तो उसने अपने सेवकों को यरूशलेम भेजा ताकि वे यहूदा के राजा हिजकियाह से और यहूदिया के उन सभी लोगों से जो यरूशलेम में थे,+ यह कहें: 10  “अश्‍शूर के राजा सनहेरीब ने कहा है, ‘तुम्हें किस बात पर इतना भरोसा है जो तुम अब भी यरूशलेम में हो, जबकि इसे घेर लिया गया है?+ 11  हिजकियाह तुमसे कहता है, “हमारा परमेश्‍वर यहोवा हमें अश्‍शूर के राजा के हाथ से छुड़ाएगा।” क्या ऐसा कहकर वह तुम्हें गुमराह नहीं कर रहा है और भूखा-प्यासा नहीं मारना चाहता?+ 12  क्योंकि उसी ने तो तुम्हारे परमेश्‍वर की* ऊँची जगह और वेदियाँ ढा दीं+ और यहूदा और यरूशलेम के लोगों से कहा, “तुम्हें सिर्फ एक ही वेदी के आगे दंडवत करना चाहिए और उसी पर बलिदान चढ़ाना चाहिए ताकि उसका धुआँ उठे।”+ 13  क्या तुम नहीं जानते कि मैंने और मेरे पुरखों ने दूसरे देशों का क्या हश्र किया है?+ क्या उन राष्ट्रों के देवता उनके देशों को मेरे हाथ से छुड़ा पाए?+ 14  जिन राष्ट्रों को मेरे पुरखों ने नाश कर डाला, क्या उनके देवताओं में से कोई भी अपने लोगों को मेरे हाथ से छुड़ा पाया था? तो फिर तुम्हारा परमेश्‍वर तुम लोगों को मेरे हाथ से कैसे छुड़ा लेगा?+ 15  तुम लोग हिजकियाह की बातों में मत आओ, वह तुम्हें गुमराह कर रहा है!+ उस पर विश्‍वास मत करो क्योंकि किसी भी राष्ट्र या राज्य का कोई भी देवता अपने लोगों को मेरे और मेरे पुरखों के हाथ से नहीं छुड़ा पाया। फिर तुम्हारे परमेश्‍वर की हस्ती ही क्या है कि वह तुम्हें मेरे हाथ से छुड़ाए!’”+ 16  सनहेरीब के सेवकों ने सच्चे परमेश्‍वर यहोवा और उसके सेवक हिजकियाह के खिलाफ और भी बहुत कुछ कहा। 17  सनहेरीब ने कुछ चिट्ठियाँ भी लिखीं+ जिनमें उसने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के बारे में अपमान की बातें कहीं।+ उसने चिट्ठियों में परमेश्‍वर के खिलाफ यह लिखा, “जैसे दूसरे राष्ट्रों के देवता अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं छुड़ा पाए,+ उसी तरह हिजकियाह का परमेश्‍वर भी अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं छुड़ा पाएगा।” 18  यरूशलेम के जो लोग शहरपनाह पर खड़े थे, उनसे सनहेरीब के सेवक ऊँची आवाज़ में यहूदियों की भाषा में बात करते रहे ताकि उनके अंदर डर और खौफ पैदा करके शहर पर कब्ज़ा कर लें।+ 19  उन्होंने यरूशलेम के परमेश्‍वर के खिलाफ वही बातें कहीं जो उन्होंने दुनिया के बाकी देशों के उन देवताओं के खिलाफ कही थीं जो इंसान के हाथ के बने हैं। 20  मगर राजा हिजकियाह और आमोज का बेटा, भविष्यवक्‍ता यशायाह+ इस बारे में प्रार्थना करते रहे और मदद के लिए स्वर्ग की तरफ पुकारते रहे।+ 21  फिर यहोवा ने एक स्वर्गदूत को भेजा जिसने अश्‍शूर के राजा की छावनी में जाकर हर वीर योद्धा,+ अगुवे और सेनापति को मार डाला। नतीजा यह हुआ कि सनहेरीब को अपमानित होकर अपने देश लौटना पड़ा। बाद में वह अपने देवता के मंदिर में गया और वहाँ उसके अपने ही कुछ बेटों ने उसे तलवार से मार डाला।+ 22  इस तरह यहोवा ने हिजकियाह और यरूशलेम के निवासियों को अश्‍शूर के राजा सनहेरीब और बाकी सबके हाथ से बचाया और चारों तरफ के दुश्‍मनों से उन्हें राहत दिलायी। 23  फिर कई लोग यहोवा के लिए भेंट लेकर यरूशलेम आए और यहूदा के राजा हिजकियाह को तोहफे में बढ़िया-बढ़िया चीज़ें दीं।+ इसके बाद से सब राष्ट्र हिजकियाह का बहुत आदर करने लगे। 24  उन दिनों हिजकियाह बीमार हो गया। उसकी हालत इतनी खराब हो गयी कि वह मरनेवाला था। उसने यहोवा से प्रार्थना की+ और परमेश्‍वर ने उसकी सुनी और उसे एक निशानी दी।+ 25  मगर हिजकियाह के साथ जो भलाई की गयी थी, उसकी उसने कदर नहीं की क्योंकि उसका मन घमंड से फूल गया था। इसलिए परमेश्‍वर का क्रोध उस पर और यहूदा और यरूशलेम पर भड़क उठा। 26  मगर हिजकियाह ने अपने मन का घमंड दूर करके खुद को नम्र किया+ और यरूशलेम के लोगों ने भी खुद को नम्र किया, इसलिए हिजकियाह के दिनों में यहोवा का क्रोध उन पर नहीं भड़का।+ 27  हिजकियाह ने खूब सारी दौलत और शोहरत हासिल की।+ उसने अपने लिए भंडार-घर बनाए+ ताकि उनमें सोना, चाँदी, कीमती पत्थर, बलसाँ का तेल, ढालें और बाकी सभी मनभावनी चीज़ें रखे। 28  उसने अनाज, नयी दाख-मदिरा और तेल जमा करने के लिए भी भंडार-घर बनाए, साथ ही सब किस्म के मवेशियों और भेड़-बकरियों के लिए बाड़े बनाए। 29  उसने कई शहर भी बनाए और बड़ी तादाद में भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल इकट्ठा किए क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे बहुत दौलत दी थी। 30  हिजकियाह ने ही गीहोन+ नदी का ऊपरी सोता बंद कर दिया+ और उसके पानी का रुख ऐसा मोड़ दिया कि वह सीधे दाविदपुर+ के पश्‍चिम की तरफ बहे। हिजकियाह अपने हर काम में कामयाब रहा था। 31  मगर जब बैबिलोन के हाकिमों के दूतों को हिजकियाह के देश में देखी गयी निशानी+ के बारे में पूछने के लिए उसके पास भेजा गया,+ तो सच्चे परमेश्‍वर ने उसे छोड़ दिया ताकि उसे परखकर जाने कि उसके दिल में क्या है।+ 32  हिजकियाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी और उसने अटल प्यार का सबूत देते हुए जो काम किए,+ उनका ब्यौरा आमोज के बेटे यशायाह भविष्यवक्‍ता के दर्शन के लेखनों में+ और यहूदा और इसराएल के राजाओं की किताब में लिखा है।+ 33  फिर हिजकियाह की मौत हो गयी* और उसे उस चढ़ाई पर दफनाया गया जो दाविद के बेटों के कब्रिस्तान की तरफ जाती है।+ उसकी मौत पर पूरे यहूदा और यरूशलेम के लोगों ने उसका सम्मान किया। उसकी जगह उसका बेटा मनश्‍शे राजा बना।

कई फुटनोट

या “मिल्लो।” इस इब्रानी शब्द का मतलब “भरना” है।
या “अपनी सेना की पूरी ताकत और शान।”
शा., “उसकी।”
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”