दूसरा इतिहास 9:1-31

  • शीबा की रानी मिलने आयी (1-12)

  • सुलैमान की दौलत (13-28)

  • सुलैमान की मौत (29-31)

9  शीबा की रानी+ ने सुलैमान की शोहरत के बारे में सुना, इसलिए वह यरूशलेम आयी ताकि बेहद मुश्‍किल और पेचीदा सवालों से* उसे परखे। उसके साथ एक बहुत बड़ा और शानदार कारवाँ आया। वह अपने साथ बलसाँ के तेल, भारी तादाद में सोने+ और अनमोल रत्नों से लदे ऊँट लायी। जब वह सुलैमान के पास आयी तो उसके मन में जितने भी सवाल थे, वे सब उसने राजा से पूछे।+  और सुलैमान ने उसके सभी सवालों के जवाब दिए। ऐसी कोई बात नहीं थी* जिसके बारे में उसे समझाना सुलैमान के लिए मुश्‍किल रहा हो।  जब शीबा की रानी ने सुलैमान की बुद्धि,+ उसका बनाया राजमहल,+  मेज़ पर लगा शाही खाना,+ उसके अधिकारियों के बैठने के लिए किया गया इंतज़ाम, खाना परोसनेवालों की सेवाएँ और उनकी खास पोशाक, उसके साकी और उनकी खास पोशाक और वे होम-बलियाँ देखीं जिन्हें वह नियमित तौर पर यहोवा के भवन में चढ़ाया करता था,+ तो वह ऐसी दंग रह गयी कि उसकी साँस ऊपर-की-ऊपर और नीचे-की-नीचे रह गयी।  उसने राजा से कहा, “मैंने अपने देश में तेरी कामयाबियों* के बारे में और तेरी बुद्धि के बारे में जो चर्चे सुने थे, वे बिलकुल सही थे।  लेकिन मैंने तब तक यकीन नहीं किया जब तक मैंने यहाँ आकर खुद अपनी आँखों से नहीं देखा।+ अब मैं देख सकती हूँ कि तेरी बुद्धि वाकई लाजवाब है। मुझे लगता है कि मुझे इसका आधा भी नहीं बताया गया था।+ मैंने तेरे बारे में जो सुना था, तू उससे कहीं ज़्यादा महान है।+  तेरे इन आदमियों और सेवकों को कितना बड़ा सम्मान मिला है कि वे हर समय तेरे सामने रहकर तेरे मुँह से बुद्धि की बातें सुनते हैं!  तेरे परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई हो, जिसने तुझसे खुश होकर तुझे अपनी राजगद्दी पर बिठाया ताकि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से राज करे। तेरा परमेश्‍वर इसराएल से प्यार करता है+ और उसे सदा तक कायम रखना चाहता है, इसीलिए उसने तुझे इसराएल का राजा ठहराया ताकि तू न्याय और नेकी करे।”  इसके बाद शीबा की रानी ने राजा को 120 तोड़े* सोना, बहुत सारा बलसाँ का तेल और अनमोल रत्न तोहफे में दिए।+ उसने राजा सुलैमान को जितना बलसाँ का तेल दिया था उतना फिर कभी किसी ने नहीं दिया।+ 10  इसके अलावा, हीराम के सेवक और सुलैमान के सेवक, जो ओपीर से सोना लाया करते थे,+ वहाँ से अनमोल रत्न और लाल-चंदन की लकड़ी भी लाते थे।+ 11  राजा ने लाल-चंदन की लकड़ी से यहोवा के भवन के लिए और राजमहल+ के लिए सीढ़ियाँ बनायीं,+ साथ ही उस लकड़ी से गायकों के लिए सुरमंडल और तारोंवाले दूसरे बाजे बनाए।+ इतनी उम्दा चीज़ें यहूदा देश में पहले कभी नहीं देखी गयी थीं। 12  राजा सुलैमान ने भी शीबा की रानी को वह सब दिया जो उसने माँगा। रानी उसके लिए जितने तोहफे लायी थी उससे कई गुना ज़्यादा चीज़ें राजा ने उसे दीं।* फिर रानी अपने सेवकों के साथ अपने देश लौट गयी।+ 13  सुलैमान को हर साल करीब 666 तोड़े सोना मिलता था।+  14  इसके अलावा उसे सौदागरों, लेन-देन करनेवाले व्यापारियों और अरब के सब राजाओं और देश के राज्यपालों से भी सोना मिलता था क्योंकि वे सोना-चाँदी लाकर उसे देते थे।+ 15  राजा सुलैमान ने मिश्रित सोने की 200 बड़ी-बड़ी ढालें+ (हर ढाल में 600 शेकेल* सोना लगा था)+ 16  और 300 छोटी-छोटी ढालें* बनायीं (हर छोटी ढाल में तीन मीना* सोना लगा था)। राजा ने ये ढालें ‘लबानोन के वन भवन’ में रखीं।+ 17  राजा ने हाथी-दाँत की एक बड़ी राजगद्दी भी बनायी और उस पर शुद्ध सोना मढ़ा।+ 18  राजगद्दी तक जाने के लिए छ: सीढ़ियाँ थीं और राजगद्दी से पाँवों की चौकी लगी थी जो सोने की थी। राजगद्दी के दोनों तरफ हाथ रखने के लिए टेक बनी थी और दोनों तरफ टेक के पास एक-एक शेर+ खड़ा हुआ बना था। 19  राजगद्दी तक जानेवाली छ: सीढ़ियों में से हर सीढ़ी के दोनों तरफ भी एक-एक शेर खड़ा हुआ बना था यानी कुल मिलाकर 12 शेर थे।+ ऐसी राजगद्दी किसी और राज्य में नहीं थी। 20  राजा सुलैमान के सभी प्याले सोने के थे और ‘लबानोन के वन भवन’ के सारे बरतन भी शुद्ध सोने के थे। एक भी चीज़ चाँदी की नहीं थी क्योंकि सुलैमान के दिनों में चाँदी का कोई मोल नहीं था।+ 21  राजा के जहाज़ हीराम के सेवकों के साथ तरशीश+ जाते थे।+ हर तीन साल में एक बार तरशीश के जहाज़ों का लशकर सोना, चाँदी, हाथी-दाँत,+ बंदर और मोर लाता था। 22  राजा सुलैमान इतना बुद्धिमान था और उसके पास दौलत का ऐसा अंबार था कि दुनिया का कोई भी राजा उसकी बराबरी नहीं कर सकता था।+ 23  सच्चे परमेश्‍वर ने उसे बहुत बुद्धि दी थी और उसकी बुद्धि की बातें सुनने धरती के कोने-कोने से राजा उसके पास आया करते थे।*+ 24  जब भी कोई सुलैमान के पास आता तो वह तोहफे में राजा को सोने-चाँदी की चीज़ें, कपड़े,+ हथियार, बलसाँ का तेल, घोड़े और खच्चर देता था। ऐसा साल-दर-साल चलता रहा। 25  सुलैमान के पास घोड़ों और रथों के लिए 4,000 अस्तबल थे और उसके 12,000 घोड़े* थे।+ उसने इन्हें रथों के शहरों में और यरूशलेम में अपने पास रखा था।+ 26  वह महानदी* से लेकर पलिश्‍तियों के देश और मिस्र की सरहद तक के सभी राजाओं पर राज करता था।+ 27  राजा ने यरूशलेम में इतनी तादाद में चाँदी इकट्ठी की कि वह पत्थर जितनी आम हो गयी थी और उसने देवदार की इतनी सारी लकड़ी इकट्ठी की कि उसकी तादाद शफेलाह के गूलर पेड़ों जितनी हो गयी थी।+ 28  सुलैमान के लिए मिस्र और दूसरे देशों से घोड़े लाए जाते थे।+ 29  सुलैमान की ज़िंदगी की बाकी कहानी+ यानी शुरू से लेकर आखिर तक का इतिहास भविष्यवक्‍ता नातान के लेखनों में,+ शीलो के रहनेवाले अहियाह की भविष्यवाणी की किताब में+ और दर्शी इद्दो की उस किताब में लिखा है+ जिसमें नबात के बेटे यारोबाम+ के बारे में दर्शन लिखे हैं। 30  सुलैमान ने यरूशलेम में रहकर पूरे इसराएल पर 40 साल राज किया। 31  फिर उसकी मौत हो गयी* और उसे उसके पिता दाविद के शहर दाविदपुर में दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा रहूबियाम राजा बना।+

कई फुटनोट

या “ताकि पहेलियाँ पूछकर।”
शा., “कोई बात उससे छिपी न थी।”
या “बातों।”
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या शायद, “उसके बराबर की कीमत के तोहफे भी राजा ने उसे दिए।”
एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
ये ढालें अकसर तीरंदाज़ ढोते थे।
इब्रानी शास्त्र में बताए एक मीना का वज़न 570 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
शा., “उसका मुँह देखना चाहते थे।”
या “घुड़सवार।”
यानी फरात नदी।
शा., “वह अपने पुरखों के साथ सो गया।”