कुरिंथियों के नाम दूसरी चिट्ठी 1:1-24
1 मैं पौलुस जो परमेश्वर की मरज़ी से मसीह यीशु का एक प्रेषित हूँ, हमारे भाई तीमुथियुस+ के साथ कुरिंथ के तुम भाइयों को लिख रहा हूँ जो परमेश्वर की मंडली हो। यह चिट्ठी उन सभी पवित्र जनों के लिए भी है जो पूरे अखाया+ में हैं।
2 हमारे पिता यानी परमेश्वर की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से तुम्हें महा-कृपा और शांति मिले।
3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता+ की तारीफ हो। वह कोमल दया का पिता है+ और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है।+
4 वह हमारी सब परीक्षाओं में हमें दिलासा* देता है+ ताकि हम किसी भी तरह की परीक्षा का सामना करनेवालों को वही दिलासा दे सकें+ जो हमें परमेश्वर से मिलता है।+
5 इसलिए कि जैसे मसीह की खातिर हम बहुत दुख झेलते हैं,+ वैसे मसीह के ज़रिए हम बहुत दिलासा भी पाते हैं।
6 चाहे हम परीक्षाओं का सामना करें, तो भी यह तुम्हारे दिलासे और उद्धार के लिए है। और जब हम दिलासा पाते हैं तो इससे तुम्हें भी दिलासा मिलता है। यह दिलासा तुम्हें वे सारे दुख सहने में मदद देगा जो हम भी सह रहे हैं।
7 तुम्हारे बारे में हमारी आशा अटल है क्योंकि हम जानते हैं कि जैसे तुम हमारी तरह दुख झेलते हो वैसे ही तुम हमारी तरह दिलासा भी पाओगे।+
8 भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम इस बात से अनजान रहो कि हमने एशिया प्रांत में कैसी मुसीबत झेली थी।+ हम इतनी तकलीफों से गुज़रे कि उन्हें सहना हमारी बरदाश्त से बाहर था। हमें तो लगा कि हम शायद ज़िंदा ही नहीं बचेंगे।+
9 हमें तो यहाँ तक लगा कि हमें मौत की सज़ा सुना दी गयी है। यह इसलिए हुआ ताकि हम खुद पर नहीं बल्कि उस परमेश्वर पर भरोसा रखें+ जो मरे हुओं को ज़िंदा करता है।
10 उसने हमें मौत के बहुत बड़े खतरे से बचाया है और बचाएगा। हमारी आशा है कि वह हमें आगे भी बचाता रहेगा।+
11 तुम भी हमारे लिए मिन्नतें करके हमारी मदद कर सकते हो+ ताकि बहुतों की प्रार्थनाओं की वजह से हम पर कृपा की जाए और बदले में बहुत-से लोग हमारी तरफ से धन्यवाद दे सकें।+
12 हमें इस बात का गर्व है और हमारा ज़मीर भी गवाही देता है कि हम दुनिया में और खासकर तुम्हारे बीच ऐसी पवित्रता और सीधाई से रहे हैं जो परमेश्वर सिखाता है और हम दुनियावी बुद्धि पर नहीं+ बल्कि परमेश्वर की महा-कृपा पर निर्भर रहे हैं।
13 दरअसल, हम उन बातों को छोड़ तुम्हें और कुछ नहीं लिख रहे जिन्हें तुम पढ़कर* समझ सकते हो। और मैं आशा करता हूँ कि तुम इन बातों को पूरी तरह* समझोगे
14 ठीक जैसे कुछ हद तक तुम समझते भी हो कि हम तुम्हारे लिए गर्व करने की वजह हैं और तुम भी हमारे प्रभु यीशु के दिन हमारे लिए गर्व करने की वजह ठहरोगे।
15 इसी भरोसे के साथ मैंने सोचा था कि तुम्हारे पास दूसरी बार आऊँ ताकि तुम्हें खुशी का एक और मौका मिले।*
16 क्योंकि मैंने सोचा था कि मकिदुनिया जाते वक्त और वहाँ से लौटते वक्त रास्ते में तुमसे मिलूँगा और फिर तुम कुछ दूर आकर मुझे यहूदिया के लिए विदा करोगे।+
17 जब मैंने यह इरादा किया था तो क्या मैंने बिना सोचे-समझे ऐसा किया था? जब मैं कुछ इरादा करता हूँ तो क्या सिर्फ अपनी मन-मरज़ी करने के लिए ऐसा करता हूँ कि पहले तो “हाँ-हाँ” कहूँ मगर फिर “न-न”?
18 मगर जैसे परमेश्वर पर भरोसा किया जा सकता है, वैसे ही तुम हम पर भी भरोसा कर सकते हो कि जब हम तुमसे “हाँ” कहते हैं, तो उसका मतलब “न” नहीं होता।
19 इसलिए कि परमेश्वर का बेटा मसीह यीशु, जिसका हमने यानी मैंने, सिलवानुस* और तीमुथियुस+ ने तुम्हारे बीच प्रचार किया था, वह पहले “हाँ” और फिर “न” नहीं हुआ बल्कि उसके मामले में “हाँ” का मतलब हमेशा “हाँ” हुआ है।
20 इसलिए कि परमेश्वर के चाहे कितने ही वादे हों, वे सब उसी के ज़रिए “हाँ” हुए हैं।+ इसलिए उसी के ज़रिए हम परमेश्वर से “आमीन” कहते हैं+ और इससे परमेश्वर की महिमा होती है।
21 मगर जो इस बात का पक्का यकीन दिलाता है कि तुम और हम मसीह के हैं और जिसने हमारा अभिषेक किया है, वह परमेश्वर है।+
22 उसने हम पर अपनी मुहर भी लगायी है+ और जो आनेवाला है उसका बयाना दिया* है यानी पवित्र शक्ति,+ जो उसने हमारे दिलों में दी है।
23 मैं अब तक कुरिंथ सिर्फ इसलिए नहीं आया क्योंकि मैं तुम्हें और ज़्यादा दुखी नहीं करना चाहता था। अगर यह बात झूठ है तो परमेश्वर मेरे खिलाफ गवाही दे।
24 ऐसी बात नहीं कि हम तुम्हारे विश्वास के मालिक हैं+ बल्कि हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं, क्योंकि तुम अपने ही विश्वास की वजह से खड़े हो।
कई फुटनोट
^ या “हौसला।”
^ या शायद, “जिन्हें तुम पहले से अच्छी तरह जानते हो।”
^ शा., “आखिर तक।”
^ या शायद, “ताकि तुम्हें दो बार फायदा हो।”
^ सीलास भी कहलाता था।
^ या “निशानी दी; पक्का सबूत दिया।”