कुरिंथियों के नाम दूसरी चिट्ठी 8:1-24

  • यहूदिया के मसीहियों के लिए दान जमा करना (1-15)

  • तीतुस को कुरिंथ भेजा गया (16-24)

8  भाइयो, अब हम चाहते हैं कि तुम परमेश्‍वर की उस महा-कृपा के बारे में जानो जो मकिदुनिया की मंडलियों पर हुई है।+  जब वे बड़ी परीक्षा के दौरान दुख झेल रहे थे, तब अपनी घोर गरीबी के बावजूद उन्होंने खुशी-खुशी दान देकर अपनी दरियादिली का सबूत दिया।  उन्होंने अपनी हैसियत के हिसाब से दिया,+ बल्कि उससे भी ज़्यादा दिया+ और मैं खुद इस बात का गवाह हूँ।  उन्होंने खुद आगे बढ़कर हमसे गुज़ारिश की, यहाँ तक कि वे हमसे मिन्‍नतें करते रहे कि उन्हें भी पवित्र जनों को राहत पहुँचाने के लिए दान देने का सम्मान दिया जाए।+  उन्होंने हमारी उम्मीद से भी बढ़कर किया, क्योंकि उन्होंने परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक खुद को पहले प्रभु के लिए और फिर हमारे लिए दे दिया।  इसलिए हमने तीतुस को बढ़ावा दिया+ कि वह प्यार से दिया हुआ तुम्हारा दान इकट्ठा करने का काम पूरा करे, जो उसने शुरू किया था।  इसलिए जैसे तुम हर बात में यानी विश्‍वास और बोलने की काबिलीयत में, ज्ञान और जोश में और हम तुमसे जैसा प्यार करते हैं वैसा ही प्यार करने में धनी हो, वैसे ही दान देने में दरियादिल बनो।+  यह कहकर मैं तुम्हें कोई हुक्म नहीं दे रहा हूँ, बल्कि इस बात पर तुम्हारा ध्यान खींच रहा हूँ कि दूसरे कितनी खुशी-खुशी दान दे रहे हैं और मैं यह परखना चाहता हूँ कि तुम्हारा प्यार कितना सच्चा है।  इसलिए कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा को जानते हो कि वह अमीर होते हुए भी तुम्हारी खातिर गरीब बना+ ताकि तुम उसकी गरीबी से अमीर बन सको। 10  इस मामले में मेरी यह राय है:+ यह काम पूरा करना तुम्हारे ही फायदे के लिए है, क्योंकि एक साल बीत चुका है जब तुमने यह काम शुरू किया था और तुमने ऐसा करने की बहुत इच्छा भी दिखायी थी। 11  तुमने यह काम जितने जोश के साथ शुरू किया था, उतने ही जोश के साथ इसे पूरा भी करो। तुम्हारे पास जो कुछ है उसके हिसाब से देकर तुम यह काम पूरा करो। 12  इसलिए कि अगर एक इंसान कुछ देने की इच्छा रखता है, तो उसके पास देने के लिए जो कुछ है उसे स्वीकार किया जाता है।+ उससे कुछ ऐसा देने की उम्मीद नहीं की जाती जो उसके पास नहीं है। 13  मैं यह इसलिए नहीं कह रहा कि दूसरे चैन से रहें और तुम बोझ से दब जाओ। 14  बल्कि मैं चाहता हूँ कि इस वक्‍त तुम्हारी बहुतायत उनकी घटी को पूरा करे और उनकी बहुतायत भी तुम्हारी घटी को पूरा करने के काम आए ताकि बराबरी हो जाए। 15  ठीक जैसा लिखा भी है, “जिसके पास ज़्यादा था उसके पास बहुत ज़्यादा नहीं हुआ और जिसके पास कम था उसे कम नहीं पड़ा।”+ 16  परमेश्‍वर का धन्यवाद हो कि उसकी बदौलत तीतुस भी दिल से तुम्हारी उतनी ही फिक्र करता है जितनी हम करते हैं,+ 17  क्योंकि वह न सिर्फ हमारे कहने पर तुम्हारे पास आने को राज़ी हुआ है, बल्कि वह उत्सुक होकर खुद अपनी मरज़ी से तुम्हारे पास आ रहा है। 18  हम उसके साथ उस भाई को भी भेज रहे हैं जिसने खुशखबरी सुनाने के काम में जो किया है, उसके लिए सारी मंडलियों में उसकी तारीफ हो रही है। 19  इतना ही नहीं, मंडलियों ने इस भाई को हमारे साथ सफर पर जाने के लिए ठहराया है ताकि वह हमारे साथ प्यार से दिए गए इस तोहफे को ले जाने का काम करे। यह दान हम प्रभु की महिमा के लिए बाँटेंगे, जो इस बात का भी सबूत होगा कि हम दूसरों की मदद करना चाहते हैं। 20  उदारता से दिया गया दान पहुँचाने के मामले में हम यह एहतियात इसलिए बरतते हैं ताकि कोई आदमी हम पर दोष न लगा सके।+ 21  इसलिए कि हम “न सिर्फ यहोवा* की नज़र में बल्कि इंसानों की नज़र में भी हर काम ईमानदारी से करने के लिए सावधानी बरतते हैं।”+ 22  इसके अलावा, हम उनके साथ अपने उस भाई को भी भेज रहे हैं जिसे हमने कई बार परखा और पाया कि वह बहुत-सी बातों में मेहनती है। उसे भी तुम पर बहुत भरोसा है इसलिए वह और ज़्यादा मेहनत करेगा। 23  अगर तीतुस के बारे में कोई भी सवाल है, तो मैं तुम्हें बता दूँ कि वह मेरा साथी* और मेरा सहकर्मी है जो तुम्हारे भले के लिए काम करता है। और अगर दूसरे भाइयों के बारे में कोई सवाल है तो याद रखो कि वे मंडलियों के भेजे गए प्रेषित हैं और मसीह की महिमा करते हैं। 24  इसलिए उन्हें अपने प्यार का सबूत दो+ और मंडलियों के सामने दिखाओ कि हम तुम पर क्यों गर्व करते हैं।

कई फुटनोट

अति. क5 देखें।
शा., “साझेदार।”