थिस्सलुनीकियों के नाम दूसरी चिट्ठी 3:1-18

  • प्रार्थना करते रहो (1-5)

  • बेकायदा चलनेवालों से खबरदार (6-15)

  • आखिर में नमस्कार (16-18)

3  भाइयो, मैं आखिर में यह कहता हूँ कि हमारे लिए प्रार्थना करते रहो+ ताकि यहोवा* का वचन तेज़ी से फैलता जाए+ और महिमा पाता जाए, ठीक जैसे तुम्हारे बीच हो रहा है।  यह भी प्रार्थना करो कि हम ऐसे लोगों से बचाए जाएँ जो खतरनाक और दुष्ट हैं,+ क्योंकि विश्‍वास हर किसी में नहीं होता।+  मगर प्रभु विश्‍वासयोग्य है और वह तुम्हें मज़बूत करेगा और शैतान* से बचाए रखेगा।  और हमें प्रभु में तुम्हारे बारे में भरोसा है कि हमने तुम्हें जो हिदायतें दी हैं उन्हें तुम मान रहे हो और आगे भी मानते रहोगे।  हमारी दुआ है कि प्रभु तुम्हारे दिलों को सही राह दिखाता रहे ताकि तुम परमेश्‍वर से प्यार करो+ और मसीह की खातिर धीरज धरो।+  भाइयो, हम प्रभु यीशु मसीह के नाम से तुम्हें हिदायत देते हैं कि ऐसे हर भाई से दूर हो जाओ जो कायदे से नहीं चलता+ और उन हिदायतों* के मुताबिक नहीं चलता जो हमने तुम्हें* बतायी थीं।+  तुम खुद जानते हो कि तुम्हें कैसे हमारी मिसाल पर चलना चाहिए,+ क्योंकि हम तुम्हारे बीच रहते वक्‍त बेकायदा नहीं चले,  न ही हमने मुफ्त की* रोटी तोड़ी।+ इसके बजाय, हम रात-दिन कड़ी मेहनत और संघर्ष करते थे ताकि तुममें से किसी पर भी खर्चीला बोझ न बनें।+  ऐसा नहीं कि हमें अधिकार नहीं है,+ बल्कि हम चाहते थे कि हम तुम्हारे लिए ऐसी मिसाल रखें जिस पर तुम चलो।+ 10  सच तो यह है कि जब हम तुम्हारे साथ थे, तो हम तुम्हें यह आदेश दिया करते थे: “अगर कोई काम नहीं करना चाहता, तो उसे खाने का भी हक नहीं है।”+ 11  हमने सुना है कि तुम्हारे बीच कुछ लोग कायदे से नहीं चल रहे हैं।+ वे कोई काम-धंधा नहीं करते बल्कि उन बातों में दखल देते फिरते हैं जिनसे उनका कोई लेना-देना नहीं।+ 12  ऐसे लोगों को हम प्रभु यीशु मसीह में आदेश देते और समझाते हैं कि वे शांति से अपना काम-धंधा करें और अपनी कमाई की रोटी खाएँ।+ 13  भाइयो, जहाँ तक तुम्हारी बात है, भले काम करने में हार मत मानो। 14  लेकिन अगर कोई उन बातों को नहीं मानता जो हमने इस चिट्ठी में बतायी हैं, तो ऐसे आदमी पर नज़र रखो* और उसके साथ मिलना-जुलना छोड़ दो+ ताकि वह शर्मिंदा हो। 15  फिर भी उसे दुश्‍मन मत समझो, मगर उसे एक भाई जानकर समझाते-बुझाते रहो।+ 16  हमारी दुआ है कि शांति का प्रभु तुम्हें हर तरह से शांति देता रहे।+ प्रभु तुम सबके साथ हो। 17  मैं पौलुस खुद अपने हाथ से तुम्हें नमस्कार लिख रहा हूँ,+ जो मेरी हर चिट्ठी की पहचान है। मेरे लिखने का तरीका यही है। 18  हमारे प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा तुम पर होती रहे।

कई फुटनोट

अति. क5 देखें।
शा., “उस दुष्ट।”
या “दस्तूरों।”
या शायद, “उन्हें।”
या “बिना पैसे दिए।”
शा., “पर निशान लगाओ।”