दूसरा राजा 4:1-44

  • एलीशा ने विधवा का तेल बढ़ाया (1-7)

  • शूनेमी औरत की मेहमान-नवाज़ी (8-16)

  • बदले में बेटा मिला; बेटे की मौत (17-31)

  • एलीशा ने उसे ज़िंदा किया (32-37)

  • शोरबा खाने लायक बनाया (38-41)

  • रोटी की गिनती बढ़ायी (42-44)

4  भविष्यवक्‍ताओं के बेटों+ में से एक आदमी की मौत हो गयी थी और उसकी विधवा एलीशा के पास आकर अपना दुखड़ा रोने लगी, “मेरे पति की मौत हो गयी है। तू अच्छी तरह जानता है कि तेरा सेवक हमेशा यहोवा का डर मानता था।+ उसने एक आदमी से कर्ज़ लिया था और अब वह आदमी मेरे दोनों बच्चों को दास बनाकर ले जाने आया है।”  एलीशा ने कहा, “मैं तेरी क्या मदद कर सकता हूँ? तेरे घर में क्या है?” उसने कहा, “तेरी दासी के घर में सुराही-भर* तेल के सिवा कुछ नहीं है।”+  एलीशा ने कहा, “अपने सभी पड़ोसियों के पास जा और उनसे खाली बरतन माँगकर ला। जितने ज़्यादा बरतन माँग सकती है माँगकर ला।  इसके बाद तू अपने बेटों के साथ घर के अंदर जाना और दरवाज़ा बंद कर लेना। तू सभी बरतनों में तेल भरती जाना और भरे हुए बरतनों को एक तरफ रखती जाना।”  तब वह औरत वहाँ से चली गयी। उसने अपने बेटों के साथ घर के अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया। उसके बेटे उसे बरतन ला-लाकर देते रहे और वह उन्हें भरती रही।+  जब सारे बरतन भर गए तो उसने अपने एक बेटे से कहा, “एक और बरतन ला।”+ मगर बेटे ने कहा, “और बरतन नहीं है।” तब उसकी सुराही से तेल निकलना बंद हो गया।+  फिर उस औरत ने सच्चे परमेश्‍वर के सेवक को यह सब बताया। उसने औरत से कहा, “अब जा और तेल बेचकर अपना सारा कर्ज़ चुका दे। जो पैसा बचेगा उससे तू अपना और अपने बेटों का गुज़ारा करना।”  एक दिन एलीशा शूनेम+ गया और वहाँ की एक नामी औरत उसे बहुत मनाने लगी कि वह उसके घर आकर खाना खाए।+ उसके बाद से जब भी वह वहाँ से गुज़रता उसके घर रुककर खाना खाता था।  एक बार उस औरत ने अपने पति से कहा, “परमेश्‍वर का यह खास सेवक अकसर यहाँ से गुज़रता है। 10  क्यों न हम अपने घर की छत पर उसके लिए एक छोटा-सा कमरा+ बनाएँ? हम उसके लिए एक पलंग, मेज़, कुर्सी और दीवट रख सकते हैं ताकि वह जब भी हमारे घर आए तो उस कमरे में रह सके।”+ 11  एक दिन एलीशा उनके घर आया और लेटने के लिए छतवाले कमरे में गया। 12  उसने अपने सेवक गेहजी+ से कहा, “शूनेमी+ औरत को बुला।” गेहजी ने उस औरत को बुलाया और वह आकर एलीशा के सामने खड़ी हो गयी। 13  एलीशा ने गेहजी से कहा, “उससे कह, ‘तू हमारे लिए बहुत तकलीफ उठाती है।+ बता मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ?+ तू चाहे तो मैं राजा या उसके सेनापति से बात करके तेरी खातिर कुछ कर सकता हूँ।’”+ औरत ने कहा, “नहीं, मुझे कोई परेशानी नहीं है, मैं तो अपने लोगों के बीच चैन से रह रही हूँ।” 14  एलीशा ने गेहजी से पूछा, “तो फिर उसके लिए क्या किया जा सकता है?” गेहजी ने कहा, “उसका कोई बेटा नहीं है+ और उसका पति बूढ़ा हो चुका है।” 15  एलीशा ने फौरन कहा, “जा, उसे बुला।” गेहजी उस औरत को बुला लाया और वह आकर दरवाज़े के पास खड़ी हो गयी। 16  एलीशा ने औरत से कहा, “अगले साल इस समय तक तेरी गोद में एक बेटा होगा।”+ लेकिन औरत ने कहा, “मालिक, तू सच्चे परमेश्‍वर का सेवक है। अपनी दासी से झूठ मत बोल।” 17  मगर एलीशा की बात सच निकली। वह औरत गर्भवती हुई और अगले साल उसी समय के दौरान उसने एक बेटे को जन्म दिया, ठीक जैसे एलीशा ने कहा था। 18  जब बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तब एक दिन वह अपने पिता के पास गया जो खेत में कटाई करनेवालों के साथ था। 19  वहाँ वह अपने पिता से बार-बार कहने लगा, “मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है!” पिता ने अपने सेवक से कहा, “इसे उठाकर इसकी माँ के पास ले जा।” 20  तब सेवक उसे उठाकर उसकी माँ के पास ले गया। वह लड़का अपनी माँ की गोद में दोपहर तक बैठा रहा और फिर उसकी मौत हो गयी।+ 21  वह औरत अपने बेटे को उठाकर ऊपर ले गयी और उसे सच्चे परमेश्‍वर के सेवक के पलंग पर लिटा दिया।+ फिर वह दरवाज़ा बंद करके नीचे आयी। 22  उसने अपने पति को बुलवाया और कहा, “मैं अभी सच्चे परमेश्‍वर के सेवक के पास जाना चाहती हूँ। मेरे साथ एक सेवक को भेज और सफर के लिए एक गधा भी दे। मैं जल्दी जाकर लौट आऊँगी।” 23  मगर उसके पति ने कहा, “आज तो कोई नए चाँद+ या सब्त का दिन नहीं है। फिर तू क्यों उसके पास जाना चाहती है?” उसने कहा, “चिंता मत कर, सब ठीक है।” 24  औरत ने गधे पर काठी कसी और उस पर बैठकर अपने सेवक से कहा, “जल्दी-जल्दी हाँक। जब तक मैं न बोलूँ तब तक हाँकने में ढिलाई मत करना।” 25  वह औरत सच्चे परमेश्‍वर के सेवक से मिलने करमेल पहाड़ पर गयी। जैसे ही सच्चे परमेश्‍वर के सेवक ने उसे दूर से देखा, उसने अपने सेवक गेहजी से कहा, “देख, शूनेमी औरत आ रही है। 26  तू दौड़कर उसके पास जा और उसकी खैरियत पूछ और यह भी पूछ कि उसका पति और बच्चा ठीक तो है।” गेहजी के पूछने पर औरत ने कहा, “सब ठीक है।” 27  वह सच्चे परमेश्‍वर के सेवक एलीशा के पास गयी और उसने झट-से उसके पैर पकड़ लिए।+ तब गेहजी उसके पास आया कि उसे धक्का देकर हटा दे, मगर सच्चे परमेश्‍वर के सेवक ने कहा, “इसे छोड़ दे क्योंकि इस वक्‍त इसका मन बहुत दुखी है। यहोवा ने मुझे नहीं बताया है कि बात क्या है।” 28  तब औरत ने कहा, “मालिक, क्या मैंने तुझसे कभी बेटे के लिए मिन्‍नत की थी? क्या मैंने तुझसे नहीं कहा था, ‘मुझे झूठी आशा मत दे’?”+ 29  एलीशा ने फौरन गेहजी से कहा, “अपनी पोशाक कमर पर कस+ और मेरी लाठी लेकर जल्दी से इस औरत के घर जा। रास्ते में अगर कोई मिले तो उसे दुआ-सलाम मत करना। अगर कोई तुझे दुआ-सलाम करे, तो उसे जवाब मत देना। जाकर मेरी यह लाठी लड़के के चेहरे पर रखना।” 30  इस पर लड़के की माँ ने एलीशा से कहा, “तुझे भी आना होगा। यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, मैं ऐसे नहीं जाऊँगी।”+ इसलिए एलीशा भी उस औरत के साथ गया। 31  गेहजी उन दोनों से पहले चला गया था। उसने जाकर एलीशा की लाठी लड़के के चेहरे पर रखी, मगर लड़का हिला नहीं और न ही उसके मुँह से कोई आवाज़ आयी।+ गेहजी वापस एलीशा से मिलने निकल पड़ा और उससे मिलकर उसे बताया कि लड़का नहीं उठा। 32  जब एलीशा उस औरत के घर आया तो उसने देखा कि लड़के की लाश उसके पलंग पर पड़ी है।+ 33  एलीशा कमरे के अंदर गया और उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। वहाँ उन दोनों के सिवा और कोई न था। फिर वह यहोवा से प्रार्थना करने लगा।+ 34  इसके बाद वह बिस्तर पर जाकर लड़के के ऊपर लेट गया। उसने अपना मुँह लड़के के मुँह पर रखा, अपनी आँखें उसकी आँखों पर और अपनी हथेलियाँ उसकी हथेलियों पर रखीं। वह कुछ देर तक इसी तरह उसके ऊपर लेटा रहा। तब बच्चे का शरीर गरमाने लगा।+ 35  एलीशा उठा और कमरे में एक बार इधर से उधर चला। वह फिर से बिस्तर पर जाकर लड़के पर लेट गया। तब लड़के ने सात बार छींका और उसके बाद अपनी आँखें खोलीं।+ 36  एलीशा ने गेहजी को बुलाया और उससे कहा, “शूनेमी औरत को बुला।” गेहजी ने औरत को बुलाया और वह कमरे में एलीशा के पास गयी। एलीशा ने उससे कहा, “अपने बेटे को गोद में उठा ले।”+ 37  तब वह औरत एलीशा के पैरों पर गिर पड़ी और ज़मीन पर झुककर उसे प्रणाम किया। इसके बाद वह अपने बेटे को उठाकर ले गयी। 38  जब एलीशा गिलगाल लौटा तो वहाँ अकाल पड़ा हुआ था।+ जब भविष्यवक्‍ताओं के बेटे+ उसके सामने बैठे हुए थे तो एलीशा ने अपने सेवक से कहा,+ “हंडा चढ़ा दे और भविष्यवक्‍ताओं के बेटों के लिए शोरबा बना।” 39  उनमें से एक सब्ज़ियाँ लेने खेत गया। मगर जब उसे एक जंगली बेल दिखायी दी, तो उसने उसका फल तोड़ लिया और अपने कपड़े में भरकर ले आया। वह नहीं जानता था कि वह असल में क्या है। उसने उन्हें काटा और हंडे में डाल दिया। 40  बाद में शोरबा भविष्यवक्‍ताओं को परोसा गया। मगर जैसे ही उन्होंने मुँह में डाला वे चिल्ला पड़े, “यह तो ज़हर है ज़हर! सच्चे परमेश्‍वर के सेवक, यह ज़हर है!” वे उसे नहीं खा पाए। 41  तब एलीशा ने कहा, “थोड़ा आटा ले आओ।” उसने आटा हंडे में डाला और कहा, “अब यह सब लोगों को परोसो।” तब हंडे के शोरबे से कोई नुकसान नहीं हुआ।+ 42  बाल-शालीशा+ से एक आदमी आया और उसने सच्चे परमेश्‍वर के सेवक को जौ की 20 रोटियाँ+ लाकर दीं। ये रोटियाँ जौ की पहली फसल से बनी थीं। वह एक थैला-भर नया अनाज भी लाया।+ एलीशा ने अपने सेवक से कहा, “यह सब लोगों को खाने के लिए दे।” 43  मगर सेवक ने कहा, “मैं यह 100 लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ?”+ एलीशा ने कहा, “तू यह लोगों को खाने के लिए दे क्योंकि यहोवा ने कहा है, ‘वे सब खाएँगे और उसके बाद कुछ बच भी जाएगा।’”+ 44  तब सेवक ने खाना सबको दिया और जैसे यहोवा ने कहा था, सबने खाया और खाने के बाद कुछ बच भी गया।+

कई फुटनोट

या “टोंटीदार सुराही।”