दूसरा शमूएल 10:1-19

  • अम्मोन और सीरिया पर जीत (1-19)

10  बाद में अम्मोनियों+ के राजा की मौत हो गयी और उसकी जगह उसका बेटा हानून राजा बना।+  तब दाविद ने कहा, “हानून का पिता नाहाश जिस तरह मेरे साथ कृपा* से पेश आया था, उसी तरह मैं भी हानून के साथ पेश आऊँगा।” इसलिए दाविद ने हानून को दिलासा देने के लिए उसके पास अपने सेवक भेजे। मगर जब दाविद के सेवक अम्मोनियों के देश गए  तो अम्मोनियों के हाकिमों ने अपने मालिक हानून से कहा, “तुझे क्या लगता है, क्या दाविद ने वाकई तेरे पिता का सम्मान करने और तुझे दिलासा देने के लिए अपने सेवक भेजे हैं? नहीं। उसने तो हमारे शहर को देख आने और उसकी जासूसी करने के लिए अपने आदमी भेजे हैं ताकि बाद में आकर इसका तख्ता उलट दे।”  तब हानून ने दाविद के सेवकों को पकड़कर उन सबकी एक तरफ की दाढ़ी मुँड़वा दी+ और कमर से नीचे के उनके कपड़े कटवा दिए और फिर उन्हें भेज दिया।  जब दाविद को बताया गया कि उनके साथ कैसा सलूक किया गया है तो उसने फौरन अपने आदमियों को उन सेवकों से मिलने भेजा क्योंकि उनका घोर अपमान हुआ था। राजा ने उनके पास यह संदेश भेजा: “जब तक तुम्हारी दाढ़ी फिर नहीं बढ़ जाती तब तक तुम यरीहो+ में ही रहना। उसके बाद तुम यहाँ लौट आना।”  कुछ समय बाद अम्मोनी लोग समझ गए कि उन्होंने दाविद से दुश्‍मनी मोल ली है। इसलिए अम्मोनियों ने दूसरे देशों में अपने दूत भेजे और वहाँ से किराए पर आदमी मँगाए। बेत-रहोब+ और सोबा से 20,000 सीरियाई आदमी+ आए जो पैदल सैनिक थे। माका+ का राजा अपने 1,000 आदमियों के साथ आया और इशतोब* से 12,000 आदमी आए।+  जब दाविद ने इस बारे में सुना तो उसने योआब के साथ अपनी पूरी सेना को और बड़े-बड़े सूरमाओं को भेजा।+  अम्मोनी लोग दल बाँधकर शहर के फाटक पर तैनात हो गए, जबकि सोबा और रहोब के सीरियाई लोग और इशतोब* और माका के आदमी उनसे अलग खुले मैदान में थे।  जब योआब ने देखा कि दुश्‍मन की सेनाएँ उस पर आगे-पीछे दोनों तरफ से हमला करने के लिए खड़ी हैं, तो उसने इसराएल के सबसे बढ़िया सैनिक चुने और उन्हें दल बाँधकर सीरियाई लोगों का मुकाबला करने के लिए तैनात किया।+ 10  उसने बाकी सैनिकों को अपने भाई अबीशै की कमान* के नीचे तैनात किया+ और उन्हें दल बाँधकर अम्मोनियों+ का मुकाबला करने भेजा। 11  उसने अबीशै से कहा, “अगर सीरियाई सेना मुझ पर भारी पड़े तो तू मुझे बचाने आना और अगर अम्मोनी लोग तुझ पर भारी पड़े तो मैं तुझे बचाने आऊँगा। 12  हमें अपने लोगों की खातिर और अपने परमेश्‍वर के शहरों की खातिर मज़बूत बने रहना होगा और हिम्मत से लड़ना होगा+ और यहोवा वही करेगा जो उसे सही लगता है।”+ 13  फिर योआब और उसके आदमी सीरियाई लोगों का मुकाबला करने आगे बढ़े और सीरियाई लोग उसके सामने से भाग गए।+ 14  जब अम्मोनियों ने देखा कि सीरियाई लोग भाग गए हैं तो वे अबीशै के सामने से भाग गए और अपने शहर के अंदर चले गए। इसके बाद योआब अम्मोनियों के यहाँ से यरूशलेम लौट आया। 15  जब सीरियाई लोगों ने देखा कि वे इसराएल से हार गए हैं तो उन्होंने फिर से युद्ध के लिए अपनी सेना इकट्ठी की।+ 16  हदद-एजेर+ ने महानदी*+ के इलाके के सीरियाई लोगों को बुलवाया और वे हदद-एजेर की सेना के सेनापति शोबक की अगुवाई में हेलाम आए। 17  जब दाविद को इसकी खबर दी गयी तो उसने फौरन पूरी इसराएली सेना को इकट्ठा किया और यरदन पार करके हेलाम गया। तब सीरियाई लोगों ने दाविद से मुकाबला करने के लिए दल बाँधा और उससे युद्ध किया।+ 18  मगर सीरियाई लोग इसराएल से हारकर भाग गए और दाविद ने उनके 700 सारथियों और 40,000 घुड़सवारों को मार डाला। उसने उनके सेनापति शोबक पर वार किया और वह वहीं मर गया।+ 19  जब हदद-एजेर के अधीन सब राजाओं ने देखा कि वे इसराएल से हार गए हैं तो उन्होंने बिना देर किए इसराएल के साथ सुलह कर ली और वे उसकी प्रजा बन गए।+ इसके बाद फिर कभी सीरियाई लोगों ने अम्मोनियों की मदद करने की हिम्मत नहीं की।

कई फुटनोट

या “अटल प्यार।”
या “तोब के आदमियों।”
या “तोब के आदमी।”
शा., “के हाथ।”
यानी फरात नदी।