दूसरा शमूएल 14:1-33

  • योआब और तकोआ की औरत (1-17)

  • दाविद ने योआब की तरकीब भाँपी (18-20)

  • अबशालोम को लौटने की इजाज़त (21-33)

14  अब सरूयाह के बेटे योआब+ को पता चला कि राजा का मन अबशालोम के लिए तरस रहा है।+  इसलिए योआब ने तकोआ+ से एक औरत को बुलवाया जो बहुत होशियार थी। उसने उस औरत से गुज़ारिश की, “तू शोक मनाने का ढोंग करना। मातम के कपड़े पहनना और शरीर पर तेल मत मलना।+ तू ऐसे पेश आना जैसे तू लंबे समय से किसी की मौत का मातम मना रही हो।  तू राजा के पास जाना और उससे ये-ये कहना।” फिर योआब ने औरत को बताया कि उसे क्या-क्या कहना है।  तकोआ की वह औरत राजा के पास गयी और उसने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर राजा को प्रणाम किया और कहा, “हे राजा, मेरी मदद कर!”  राजा ने उससे पूछा, “तेरी क्या समस्या है?” उसने कहा, “तेरी यह दासी विधवा है, मेरा पति मर चुका है।  तेरी दासी के दो बेटे थे। वे मैदान में एक-दूसरे से लड़ने लगे। उनका बीच-बचाव करनेवाला कोई न था, इसलिए एक ने दूसरे को मार डाला।  अब मेरे परिवार के सब लोग मेरे खिलाफ हो गए हैं और कह रहे हैं, ‘तेरे जिस लड़के ने अपने भाई को मार डाला, उसे हमारे हवाले कर दे ताकि हम उसे मार डालें और उसके भाई के खून का बदला उससे लें,+ भले ही इससे तेरे खानदान का वारिस क्यों न मिट जाए!’ वे मेरे बचे हुए अंगारे* को बुझा देंगे और धरती से मेरे पति का नाम और उसकी आखिरी निशानी भी मिटा देंगे।”  राजा ने औरत से कहा, “तू अपने घर जा, तुझे ज़रूर इंसाफ मिलेगा। मैं तेरे बारे में एक आदेश दूँगा।”  तब तकोआ की उस औरत ने राजा से कहा, “हे राजा, मेरे मालिक, मेरे बेटे के पाप का दोष मुझे और मेरे घराने को लगे। तब राजा और उसका शाही खानदान निर्दोष ठहरेगा।” 10  राजा ने कहा, “अगर इसके बाद भी कोई तुझसे कुछ कहे तो उसे मेरे पास लाना। वह तुझे फिर कभी परेशान नहीं करेगा।” 11  तब औरत ने कहा, “हे राजा, तेरी बड़ी कृपा होगी अगर तू अपने परमेश्‍वर यहोवा को याद करे ताकि खून का बदला लेनेवाला+ मेरे बेटे की जान लेकर मेरा दुख और न बढ़ा दे।” राजा ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ,+ तेरे बेटे का बाल भी बाँका नहीं होगा।” 12  उस औरत ने कहा, “मेरे मालिक, राजा, तेरी इजाज़त हो तो तेरी दासी एक और बात कहना चाहती है।” राजा ने कहा, “इजाज़त है!” 13  उस औरत ने कहा, “फिर तूने ऐसा काम करने की क्यों सोची जिससे परमेश्‍वर के लोगों का नुकसान हो?+ राजा ने अभी-अभी जो फैसला सुनाया वह खुद उसे दोषी ठहराता है क्योंकि राजा ने अपने बेटे को देश-निकाला दे दिया और उसे वापस नहीं लाया।+ 14  यह सच है कि मौत हम सब पर आती है और हम उस पानी की तरह बन जाते हैं जिसे ज़मीन पर एक बार उँडेल दिया जाए तो वापस इकट्ठा नहीं किया जा सकता। फिर भी परमेश्‍वर यूँ ही किसी की जान नहीं लेता बल्कि देखता है कि जिसे देश-निकाला दिया गया है उसे वापस लाने की क्या कोई गुंजाइश है। 15  मैं अपने मालिक राजा को यह बात इसलिए बताने आयी हूँ क्योंकि लोगों ने मुझे डरा दिया था। इसलिए तेरी दासी ने सोचा कि मैं राजा से इस मामले पर भी बात करके देखती हूँ। हो सकता है वह अपनी दासी की गुज़ारिश मान ले। 16  क्योंकि मेरे मामले में राजा ने मेरी बिनती सुन ली और वह मुझे उस आदमी से बचाने के लिए राज़ी हो गया, जो मुझसे और मेरे इकलौते बेटे से परमेश्‍वर की दी हुई विरासत छीनने पर तुला है।+ 17  तेरी दासी ने सोचा, हो सकता है राजा मेरी यह गुज़ारिश भी मानकर मेरे मन को राहत दे, क्योंकि मेरा मालिक राजा अच्छे-बुरे में फर्क करने में बिलकुल सच्चे परमेश्‍वर के स्वर्गदूत जैसा है। मेरी दुआ है कि तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे साथ रहे।” 18  तब राजा ने औरत से कहा, “अब मैं तुझसे जो पूछूँगा, सच-सच बताना। कुछ छिपाना मत।” औरत ने कहा, “मेरे मालिक राजा, तुझे जो भी पूछना है पूछ।” 19  राजा ने पूछा, “क्या यह सब कहने के लिए तुझे योआब ने मेरे पास भेजा है?”+ औरत ने कहा, “मेरे मालिक, राजा। तेरे जीवन की शपथ, तूने बिलकुल सही कहा।* तेरे सेवक योआब ने ही मुझे यह सब सिखाकर भेजा और यह सब कहने के लिए कहा। 20  तेरे सेवक योआब ने यह सब इसलिए किया ताकि इस मामले के बारे में तेरा नज़रिया बदले। मेरे मालिक के पास सच्चे परमेश्‍वर के स्वर्गदूत जैसी बुद्धि है और वह जानता है कि देश में क्या-क्या हो रहा है।” 21  फिर राजा ने योआब से कहा, “ठीक है, मैं अबशालोम के साथ ऐसा ही करूँगा।+ तू जा और उस जवान को ले आ।”+ 22  तब योआब ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर राजा को प्रणाम किया और उसकी तारीफ की। योआब ने कहा, “मेरे मालिक राजा, आज तेरा यह सेवक जान गया है कि तूने मुझ पर कृपा की है क्योंकि राजा ने अपने सेवक की गुज़ारिश पूरी की है।” 23  तब योआब उठा और गशूर गया+ और अबशालोम को यरूशलेम ले आया। 24  मगर राजा ने कहा, “वह अपने घर लौट सकता है, पर वह मुझे अपना मुँह न दिखाए।” इसलिए अबशालोम अपने घर लौट गया, लेकिन राजा के सामने नहीं आया। 25  अबशालोम एक सुंदर-सजीला जवान था। सिर से पाँव तक उसमें कोई ऐब नहीं था और पूरे देश में उसके जैसा खूबसूरत आदमी कोई न था। हर कहीं उसके रंग-रूप के चर्चे होते थे। 26  उसे अपने बालों का वज़न ढोना भारी पड़ता था इसलिए हर साल के आखिर में उसे अपने बाल कटवाने पड़ते थे। जब वह बाल कटवाता तो उनका वज़न शाही बाट-पत्थर* के हिसाब से 200 शेकेल* होता था। 27  अबशालोम के तीन बेटे+ और एक बेटी थी। उसकी बेटी का नाम तामार था और वह बहुत खूबसूरत थी। 28  अबशालोम को यरूशलेम में रहते पूरे दो साल बीत गए, मगर वह कभी राजा के सामने नहीं गया।+ 29  इसलिए अबशालोम ने योआब को बुलवाया ताकि वह उसे राजा के पास भेजे। मगर योआब अबशालोम के पास नहीं आया। अबशालोम ने उसे दूसरी बार बुलवाया फिर भी उसने आने से इनकार कर दिया। 30  आखिर में, अबशालोम ने अपने सेवकों से कहा, “योआब की ज़मीन मेरी ज़मीन के पास ही है। और अभी उसकी ज़मीन में जौ की फसल खड़ी है। तुम जाओ और उसकी फसल में आग लगा दो।” अबशालोम के सेवकों ने जाकर उसके खेत में आग लगा दी। 31  तब योआब ने अबशालोम के घर आकर उससे कहा, “तेरे सेवकों ने क्यों मेरे खेत में आग लगा दी?” 32  अबशालोम ने कहा, “देख, मैंने तेरे पास संदेश भेजा था कि मेरे पास आ ताकि मैं तुझे राजा के पास यह पूछने के लिए भेजूँ, ‘मैं गशूर से क्यों वापस आया?+ यहाँ आने से तो अच्छा होता कि मैं वहीं रह जाता। मुझे राजा के सामने हाज़िर होने की इजाज़त दी जाए। अगर मैंने कोई अपराध किया है तो वह मुझे मौत की सज़ा दे दे।’” 33  तब योआब ने राजा के पास जाकर उसे यह बात बतायी। राजा ने अबशालोम को बुलवाया। अबशालोम राजा के पास आया और उसने राजा के सामने मुँह के बल गिरकर उसे प्रणाम किया। फिर राजा ने अबशालोम को चूमा।+

कई फुटनोट

यानी वंशजों के लिए आखिरी आशा।
या “तूने जो कहा है उससे कोई भी दाएँ या बाएँ नहीं जा सकता।”
यह शायद राजमहल में रखा गया बाट था या एक “शाही” शेकेल था जो आम शेकेल से अलग था।
करीब 2.3 किलो। अति. ख14 देखें।