दूसरा शमूएल 17:1-29

  • अहीतोपेल की सलाह नाकाम (1-14)

  • दाविद अबशालोम से भागा (15-29)

    • बरजिल्लै और दूसरों ने मदद की (27-29)

17  फिर अहीतोपेल ने अबशालोम से कहा, “मुझे इजाज़त दे कि मैं 12,000 आदमी चुनकर आज रात ही दाविद का पीछा करूँ।  मैं ऐसे वक्‍त पर उस पर टूट पड़ूँगा जब वह थका-माँदा और कमज़ोर होगा।*+ मैं उसे डरा दूँगा, तब उसके साथ जितने लोग हैं वे सब भाग जाएँगे। और राजा जब अकेला रह जाएगा तो मैं उसे मार डालूँगा।+  इसके बाद मैं बाकी सब लोगों को तेरे पास ले आऊँगा। तू जिसकी तलाश कर रहा है, उसे हटाने पर ही सब लोग तेरे पास वापस आएँगे। तब सब लोग शांति से रहेंगे।”  अहीतोपेल का यह सुझाव अबशालोम और इसराएल के सभी मुखियाओं को एकदम सही लगा।  फिर भी अबशालोम ने कहा, “ज़रा एरेकी हूशै को भी बुलाओ,+ देखते हैं वह क्या सलाह देता है।”  तब हूशै अबशालोम के पास आया। अबशालोम ने उससे कहा, “अहीतोपेल ने हमें यह सलाह दी है। तुझे क्या लगता है, हमें उसकी बात माननी चाहिए या नहीं? अगर नहीं, तो तू कोई सलाह दे।”  हूशै ने अबशालोम से कहा, “अहीतोपेल ने इस बार जो सलाह दी, वह सही नहीं है!”+  इसके बाद हूशै ने कहा, “तू अच्छी तरह जानता है कि तेरा पिता और उसके आदमी कितने ताकतवर हैं+ और इस समय वे भड़के हुए हैं, ऐसी रीछनी की तरह जिसके बच्चे खो गए हों।+ और तू यह भी मत भूल कि तेरा पिता एक वीर योद्धा है।+ वह आज रात लोगों के साथ नहीं रहेगा।  वह तो इस वक्‍त किसी गुफा* में या किसी और जगह छिपा होगा।+ अगर उसने पहले हमारे लोगों पर हमला कर दिया, तो यह अफवाह फैल जाएगी कि ‘अबशालोम के पक्षवाले हार गए हैं!’ 10  ऐसे में तो शेरदिल सैनिकों+ की भी हिम्मत टूट जाएगी, क्योंकि पूरा इसराएल जानता है कि तेरा पिता कितना बड़ा सूरमा है+ और उसके साथवाले आदमी भी बड़े दिलेर हैं। 11  इसलिए मेरी सलाह है कि दान से बेरशेबा+ तक के सभी इसराएली तेरे पास इकट्ठा हो जाएँ ताकि उनकी तादाद समुंदर किनारे की बालू के किनकों जैसी हो।+ फिर तू खुद उन सबको लेकर युद्ध में जा। 12  वह जहाँ भी मिले हम उस पर ऐसे हमला करेंगे, जैसे ज़मीन पर ओस की बूँदें छा जाती हैं। तब उनमें से कोई बच नहीं पाएगा, न तो वह और न ही उसका कोई आदमी। 13  अगर वह किसी शहर में भाग जाएगा, तो हम पूरे इसराएल को लेकर जाएँगे और उस शहर को नाश कर देंगे। और हम शहर को रस्सों से घसीटकर घाटी में फेंक देंगे ताकि वहाँ एक पत्थर भी न बचे।” 14  तब अबशालोम और इसराएल के सभी आदमियों ने कहा, “एरेकी हूशै की सलाह अहीतोपेल की सलाह से ज़्यादा अच्छी है!”+ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यहोवा ने ठान लिया था* कि वह अहीतोपेल की बढ़िया सलाह को नाकाम कर देगा+ ताकि यहोवा अबशालोम पर कहर ढा सके।+ 15  फिर हूशै ने याजक सादोक और याजक अबियातार को बताया,+ “अहीतोपेल ने अबशालोम और इसराएल के मुखियाओं को यह सलाह दी थी जबकि मैंने यह सलाह दी है। 16  इसलिए तुम जल्दी से दाविद के पास यह संदेश भेजो और उसे खबरदार करो कि आज रात वह वीराने के घाटों* के पास न रहे, बल्कि हर हाल में नदी के उस पार चला जाए, वरना राजा और उसके साथ जितने लोग हैं वे सब मिटा दिए जाएँगे।”+ 17  योनातान+ और अहीमास+ एन-रोगेल+ में ठहरे हुए थे क्योंकि अगर लोग उन्हें शहर के अंदर जाते देख लेते तो उन्हें खतरा हो सकता था। इसलिए एक दासी ने जाकर उन्हें यह खबर दी। फिर वे दोनों राजा दाविद को यह बात बताने के लिए निकल पड़े। 18  मगर एक जवान आदमी ने उन दोनों को देख लिया और जाकर अबशालोम को बता दिया। इसलिए वे दोनों फौरन वहाँ से भाग निकले और बहूरीम+ में एक आदमी के घर पहुँचे। उस घर के आँगन में एक कुआँ था। वे उसमें उतरकर छिप गए। 19  उस आदमी की पत्नी ने कुएँ का मुँह एक कपड़े से ढाँप दिया और उस पर दला हुआ अनाज फैला दिया, इसलिए किसी को कुछ पता नहीं चला। 20  अबशालोम के सेवक उस औरत के घर आए और उन्होंने उससे पूछा, “अहीमास और योनातान कहाँ हैं?” औरत ने कहा, “वे नदी की तरफ चले गए।”+ अबशालोम के आदमियों ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा, मगर वे कहीं नहीं मिले। इसलिए वे यरूशलेम लौट गए। 21  उन आदमियों के जाने के बाद वे दोनों कुएँ से निकलकर ऊपर आए। फिर उन्होंने जाकर राजा दाविद को खबर दी। उन्होंने उससे कहा, “तू जल्दी से नदी के पार चला जा क्योंकि अहीतोपेल ने तेरा बुरा करने के लिए यह सलाह दी है।”+ 22  यह खबर सुनते ही दाविद और उसके सभी लोग वहाँ से निकल पड़े और यरदन नदी के पार चले गए। सुबह होने तक यरदन के इस पार एक भी आदमी नहीं बचा था। 23  जब अहीतोपेल ने देखा कि उसकी सलाह नहीं मानी गयी, तो वह एक गधे पर सवार होकर अपने शहर लौट गया।+ उसने अपने घराने को ज़रूरी हिदायतें दीं+ और फिर फाँसी लगा ली* और मर गया।+ उसे उसके पुरखों के कब्रिस्तान में दफनाया गया। 24  इस बीच दाविद महनैम+ चला गया। उधर अबशालोम ने इसराएल के सभी आदमियों के साथ यरदन पार की। 25  अबशालोम ने योआब की जगह अमासा+ को सेनापति बनाया था।+ अमासा, यित्रा नाम के एक इसराएली आदमी का बेटा था जिसने नाहाश की बेटी अबीगैल के साथ संबंध रखे थे।+ अबीगैल, योआब की माँ सरूयाह की बहन थी। 26  अबशालोम और उसके साथवाले सभी इसराएलियों ने गिलाद के इलाके+ में छावनी डाली। 27  जैसे ही दाविद महनैम पहुँचा, शोबी (जो अम्मोनियों के शहर रब्बाह+ के रहनेवाले नाहाश का बेटा था), माकीर+ (जो लो-देबार के रहनेवाले अम्मीएल का बेटा था) और बरजिल्लै+ (जो रोगलीम का रहनेवाला गिलादी था) उसके पास आए। 28  वे अपने साथ बिस्तर, कटोरे, मिट्टी के बरतन, गेहूँ, जौ, आटा, भुना हुआ अनाज, बाकला, दाल, सूखा अनाज, 29  शहद, मक्खन, पनीर* और भेड़ें ले आए थे। वे ये सारी चीज़ें दाविद और उसके लोगों के लिए लाए थे+ क्योंकि उन्होंने सोचा, “लोग वीराने में भूखे-प्यासे और थके-माँदे होंगे।”+

कई फुटनोट

या “थका-माँदा होगा और उसके दोनों हाथ कमज़ोर होंगे।”
या “गड्‌ढे; तंग घाटी।”
या “आज्ञा दी थी।”
या शायद, “रेगिस्तानी मैदान।”
या “अपना गला घोंट लिया।”
शा., “गाय की दही।”