दूसरा शमूएल 19:1-43

  • दाविद ने मातम मनाया (1-4)

  • योआब ने दाविद को फटकारा (5-8क)

  • दाविद यरूशलेम लौटा (8ख-15)

  • शिमी ने माफी माँगी (16-23)

  • मपीबोशेत बेगुनाह साबित हुआ (24-30)

  • बरजिल्लै को सम्मान दिया गया (31-40)

  • गोत्रों के बीच बहस (41-43)

19  योआब को बताया गया कि अबशालोम के लिए राजा बहुत रो रहा है और मातम मना रहा है।+  जब लोगों ने सुना कि राजा शोक मना रहा है तो वे भी जीत* का जश्‍न मनाने के बजाय मातम मनाने लगे।  उस दिन वे सब चुपचाप शहर+ में ऐसे लौट गए जैसे युद्ध से भागे हुए सैनिक मारे शर्म के चले जाते हैं।  राजा अपना मुँह ढाँपे, ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कह रहा था, “हाय, मेरे बेटे अबशालोम, मेरे बेटे! हाय, मेरे बेटे अबशालोम!”+  तब योआब राजा से मिलने घर पर गया। उसने राजा से कहा, “आज तूने अपने सभी सेवकों को शर्मिंदा किया है जिन्होंने आज के दिन तेरी, तेरे बेटे-बेटियों की,+ तेरी पत्नियों और उप-पत्नियों की जान बचायी है।+  तू उन लोगों से प्यार करता है जो तुझसे नफरत करते हैं और उन लोगों से नफरत करता है जो तुझसे प्यार करते हैं। आज तूने दिखा दिया कि तेरे सेनापति और सेवक तेरी नज़रों में कुछ भी नहीं हैं। अब मैं जान गया हूँ कि आज अगर हम सब-के-सब मर जाते और सिर्फ अबशालोम ज़िंदा रहता तो तू खुश होता।  अब उठ और अपने सेवकों के पास जा और उनकी हिम्मत बँधा क्योंकि मैं यहोवा की शपथ खाकर कहता हूँ, अगर तू उनके पास नहीं गया तो आज रात तेरे साथ एक भी आदमी नहीं रहेगा। और तेरे लिए यह दुख उन सारे दुखों से कहीं ज़्यादा होगा जो तूने बचपन से लेकर आज तक झेले हैं।”  तब राजा उठा और जाकर शहर के फाटक पर बैठा। सब लोगों को खबर दी गयी कि राजा फाटक पर बैठा है। तब वे सब राजा के सामने आए। मगर जो इसराएली युद्ध में हार गए थे, वे अपने-अपने घर भाग गए।+  इसराएल के सभी गोत्रों के लोगों में बहस छिड़ गयी और वे एक-दूसरे से कहने लगे, “राजा ने हमें दुश्‍मनों से बचाया था+ और पलिश्‍तियों के हाथों से छुड़ाया था, मगर अब उसे अबशालोम की वजह से देश छोड़ना पड़ा।+ 10  हमने अबशालोम का अभिषेक करके उसे अपना राजा ठहराया था,+ मगर वह युद्ध में मारा गया है।+ इसलिए अब तुम कुछ करते क्यों नहीं? जाकर राजा को वापस क्यों नहीं लाते?” 11  राजा दाविद ने याजक सादोक+ और याजक अबियातार+ के पास यह संदेश भेजा: “यहूदा के मुखियाओं से बात करो+ और उनसे कहो, ‘इसराएल के बाकी सभी गोत्रों के यहाँ से राजा के पास संदेश पहुँचा है कि राजा को वापस महल लाया जाए। मगर तुम लोग उसे लाने में पीछे क्यों रह गए हो? 12  तुम तो मेरे भाई हो। तुम्हारे साथ मेरा खून का रिश्‍ता है।* तुम्हें तो राजा को वापस ले जाने के लिए सबसे पहले आना चाहिए था। फिर तुम लोग क्यों पीछे रह गए हो?’ 13  और अमासा+ से तुम कहना, ‘तेरे साथ मेरा खून का रिश्‍ता है। इसलिए अब से योआब के बदले तू मेरा सेनापति होगा। अगर मैंने तुझे अपना सेनापति नहीं ठहराया तो परमेश्‍वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे।’”+ 14  इस तरह दाविद ने यहूदा के सभी आदमियों का दिल जीत लिया और उन्होंने एकमत होकर राजा को यह संदेश भेजा: “तू अपने सभी सेवकों को लेकर वापस आ जा।” 15  राजा वापस जाने के लिए निकल पड़ा। जब वह यरदन नदी पहुँचा तो यहूदा के लोग गिलगाल आए+ ताकि राजा से मिलें और उसे सही-सलामत यरदन पार करा सकें। 16  राजा से मिलने के लिए उनके साथ गेरा का बेटा शिमी+ भी जल्दी-जल्दी आया। शिमी बिन्यामीन गोत्र का था और बहूरीम का रहनेवाला था। 17  उसके साथ बिन्यामीन गोत्र के 1,000 आदमी आए थे। इन सबके अलावा शाऊल के घराने का सेवक सीबा+ भी आया। वह हड़बड़ाता हुआ राजा से पहले ही यरदन के पास पहुँच गया था। सीबा अपने 15 बेटों और 20 दासों को साथ लेकर आया था। 18  वह* घाट उतरकर नदी के उस पार गया ताकि राजा के घराने को नदी पार करा सके और राजा उससे जो भी कहे वह करे। जब राजा यरदन पार करने ही वाला था तो गेरा के बेटे शिमी ने उसके सामने गिरकर 19  कहा, “मेरे मालिक, मेरा गुनाह माफ कर दे। जिस दिन तू यरूशलेम छोड़कर जा रहा था उस दिन मैंने तेरे साथ जो किया उसे भुला दे।+ उस बात को दिल पर मत ले। 20  तेरे दास को एहसास हो गया है कि उसने कितना बड़ा पाप किया है। तभी आज मैं यूसुफ के पूरे घराने में से सबसे पहले अपने मालिक राजा से मिलने आया हूँ।” 21  सरूयाह के बेटे अबीशै+ ने फौरन दाविद से कहा, “शिमी को तो मार डालना चाहिए क्योंकि उसने यहोवा के अभिषिक्‍त जन को शाप दिया था!”+ 22  मगर दाविद ने कहा, “सरूयाह के बेटो, इस मामले से तुम्हारा क्या लेना-देना?+ तुम क्यों मेरी मरज़ी के खिलाफ काम करना चाहते हो? आज मैं पूरे इसराएल का राजा हूँ, इसलिए क्या आज के दिन इसराएल में किसी को मार डालना सही होगा?” 23  फिर राजा ने शिमी से कहा, “तू मारा नहीं जाएगा।” और राजा ने उससे शपथ खायी।+ 24  शाऊल का पोता मपीबोशेत+ भी राजा से मिलने आया। जिस दिन राजा शहर छोड़कर गया था तब से लेकर उसके सही-सलामत लौटने तक मपीबोशेत ने न अपने पैर धोए,* न अपनी मूँछें काटीं और न ही कपड़े धोए थे। 25  जब वह यरूशलेम में* राजा से मिलने गया तो राजा ने उससे पूछा, “मपीबोशेत, तू मेरे साथ क्यों नहीं आया था?” 26  उसने कहा, “मेरे मालिक राजा, मेरे सेवक+ ने मुझे धोखा दिया। तू जानता है कि मैं पैरों से लाचार हूँ+ इसलिए मैंने कहा, ‘मैं अपने गधे पर काठी कसता हूँ ताकि उस पर सवार होकर राजा के साथ-साथ जाऊँ।’ 27  मगर उसने मेरे बारे में मालिक से झूठ बोलकर मुझे बदनाम कर दिया।+ लेकिन मेरे मालिक राजा, तू सच्चे परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत जैसा है, इसलिए तुझे जो सही लगे वह कर। 28  तू चाहता तो मेरे पिता के पूरे घराने को मिटा सकता था। लेकिन तूने ऐसा नहीं किया बल्कि अपने इस दास को अपनी मेज़ से खाने का सम्मान दिया।+ इसलिए मेरा क्या हक बनता है कि मैं राजा की और दुहाई दूँ?” 29  लेकिन राजा ने उससे कहा, “बस, अब मुझे और कुछ नहीं सुनना। मैंने फैसला कर लिया है, तेरी ज़मीन पर तेरा और सीबा, दोनों का बराबर का हिस्सा होगा।”+ 30  मपीबोशेत ने राजा से कहा, “वह चाहे तो पूरी ज़मीन ले ले। मेरा मालिक राजा सही-सलामत महल लौट आया है, मेरे लिए यही बहुत है।” 31  गिलाद का रहनेवाला बरजिल्लै+ भी राजा को यरदन पार कराने रोगलीम से आया। 32  बरजिल्लै बहुत बूढ़ा था, उसकी उम्र 80 साल थी। वह एक अमीर आदमी था इसलिए जब राजा महनैम में ठहरा हुआ था तब बरजिल्लै ने उसकी खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी कीं।+ 33  इसलिए राजा ने बरजिल्लै से कहा, “तू यरदन पार करके मेरे साथ यरूशलेम चल। तू मेरे साथ भोजन किया करना।”+ 34  मगर बरजिल्लै ने राजा से कहा, “मेरी ज़िंदगी के दिन ही कितने रह गए हैं कि मैं राजा के साथ यरूशलेम जाऊँ? 35  तेरा यह दास 80 साल का हो गया है।+ क्या अब मैं अच्छे-बुरे में फर्क कर सकता हूँ? क्या मैं खाने-पीने का मज़ा ले सकता हूँ? क्या मैं गायक-गायिकाओं के सुरीले गीत सुन सकता हूँ?+ तो फिर मैं इस उम्र में अपने मालिक राजा पर क्यों बोझ बनूँ? 36  मुझे राजा को यरदन तक लाने का जो सम्मान मिला है, यही मेरे लिए बहुत है। बदले में राजा मुझे इतना बड़ा इनाम क्यों दे? 37  अब मेहरबानी करके अपने सेवक को लौट जाने की इजाज़त दे ताकि मेरी मौत मेरे अपने शहर में हो जहाँ मेरे माँ-बाप की कब्र है।+ लेकिन मैं तेरे सेवक किमहाम को पेश करता हूँ।+ मेरा मालिक राजा इसे अपने साथ यरदन पार ले जाए और इसके साथ जो भी भला करना चाहे करे।” 38  राजा ने कहा, “ठीक है, किमहाम मेरे साथ नदी पार जाएगा और मैं उसके लिए वही करूँगा जो तू चाहता है। तू मुझसे जो भी कहे, मैं तेरे लिए करूँगा।” 39  इसके बाद सभी लोग यरदन पार करने लगे। राजा ने नदी पार करने से पहले बरजिल्लै को चूमा+ और उसे आशीर्वाद दिया। फिर बरजिल्लै अपने घर लौट गया। 40  जब राजा उस पार गिलगाल गया+ तो किमहाम भी उसके साथ गया। यहूदा के सभी लोगों ने और इसराएल के आधे लोगों ने राजा को यरदन पार कराया।+ 41  फिर इसराएल के सभी आदमी राजा के पास आए और उससे कहने लगे, “हे राजा, यहूदा के हमारे भाई क्यों हमें बताए बिना चोरी से तुझे और तेरे घराने और तेरे सभी आदमियों को यरदन पार ले आए?”+ 42  जवाब में यहूदा के सभी आदमियों ने कहा, “क्योंकि राजा हमारा रिश्‍तेदार है।+ तुम क्यों गुस्सा हो रहे हो? क्या हमने राजा का दिया कुछ खाया है या हमें कुछ तोहफे दिए गए हैं?” 43  मगर इसराएल के लोगों ने यहूदा के लोगों से कहा, “इस राज्य के दस हिस्से हमारे हैं, इसलिए दाविद पर तुमसे ज़्यादा हमारा हक बनता है। तो फिर तुमने क्यों हमें तुच्छ समझा? क्या यह सही नहीं होता कि राजा को लाने के लिए पहले हम जाते?” फिर भी, इसराएल के आदमी यहूदा के आदमियों से बहस जीत न सके।*

कई फुटनोट

या “उद्धार।”
शा., “तुम मेरा हाड़-माँस हो।”
या शायद, “वे।”
यहाँ इस्तेमाल हुए इब्रानी शब्दों का यह मतलब भी हो सकता है कि उसने पैरों के नाखून नहीं काटे थे।
या शायद, “से।”
या “यहूदा के आदमियों ने इसराएल के आदमियों से ज़्यादा कड़ी बातें कहीं।”