दूसरा शमूएल 22:1-51

  • दाविद ने परमेश्‍वर की तारीफ की (1-51)

    • ‘यहोवा मेरे लिए बड़ी चट्टान है’ (2)

    • यहोवा, वफादार लोगों का वफादार (26)

22  यह गीत दाविद ने यहोवा के लिए तब गाया+ जब यहोवा ने उसे सभी दुश्‍मनों से और शाऊल के हाथ से छुड़ाया।+  दाविद ने कहा, “यहोवा मेरे लिए बड़ी चट्टान और मज़बूत गढ़ है,+ वही मेरा छुड़ानेवाला है।+   मेरा परमेश्‍वर मेरी चट्टान है+ जिसकी मैं पनाह लेता हूँ,वह मेरी ढाल+ और मेरा उद्धार* का सींग* है, मेरा ऊँचा गढ़ है,+वह मेरे लिए ऐसी जगह है जहाँ मैं भागकर जा सकता हूँ,+ वह मेरा उद्धारकर्ता है।+तू ही मुझे ज़ुल्म से बचाता है।   मैं यहोवा को पुकारता हूँ जो तारीफ के काबिल हैऔर मुझे दुश्‍मनों से बचाया जाएगा।   मौत की लहरों ने मुझे चारों तरफ से आ घेरा,+निकम्मे आदमियों ने अचानक आनेवाली बाढ़ की तरह मुझे डरा दिया।+   कब्र के रस्सों ने मुझे घेर लिया,+मेरे सामने मौत के फंदे बिछाए गए।+   मुसीबत में मैंने यहोवा को पुकारा,+अपने परमेश्‍वर को मैं पुकारता रहा। तब अपने मंदिर से उसने मेरी सुनी,मेरी मदद की पुकार उसके कानों तक पहुँची।+   धरती काँपने लगी, बुरी तरह डोलने लगी,+आकाश की नींव हिल गयी,+उसमें भयानक हलचल हुई क्योंकि उसका क्रोध भड़क उठा था।+   उसके नथनों से धुआँ उठने लगा,मुँह से भस्म करनेवाली आग निकलने लगी,+उसके पास से दहकते अंगारे बरसने लगे। 10  नीचे उतरते वक्‍त उसने आसमान झुका दिया,+काली घटाएँ उसके पैरों तले आ गयीं।+ 11  वह एक करूब पर सवार होकर+ उड़ता हुआ आया। वह एक स्वर्गदूत*+ के पंखों पर दिखायी दिया। 12  फिर उसने काली घनघोर घटाओं को,उनके अंधकार को अपना मंडप बनाया।+ 13  उसके सामने ऐसा तेज था कि धधकते अंगारे निकल रहे थे। 14  फिर स्वर्ग से यहोवा गरजने लगा,+परम-प्रधान ने अपनी बुलंद आवाज़ सुनायी।+ 15  उसने तीर चलाकर+ उन्हें तितर-बितर कर दिया,बिजली चमकाकर उनमें खलबली मचा दी।+ 16  जब यहोवा ने डाँट लगायी और उसके नथनों से फुंकार निकली,+तो समुंदर का तल नज़र आने लगा,+धरती की बुनियाद तक दिखने लगी। 17  उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया,गहरे पानी से खींचकर बाहर निकाल लिया।+ 18  उसने मुझे ताकतवर दुश्‍मन से छुड़ाया,+उन लोगों से जो मुझसे नफरत करते थे, मुझसे ज़्यादा ताकतवर थे। 19  वे मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर टूट पड़े,+लेकिन यहोवा मेरा सहारा था। 20  वह मुझे निकालकर एक महफूज़* जगह ले आया,+उसने मुझे दुश्‍मनों से छुड़ाया क्योंकि वह मुझसे खुश था।+ 21  यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल देता है,+मेरी बेगुनाही* के मुताबिक इनाम देता है।+ 22  क्योंकि मैं हमेशा यहोवा की राहों पर चलता रहा,मैंने अपने परमेश्‍वर से दूर जाने की दुष्टता नहीं की। 23  उसके सभी न्याय-सिद्धांत+ मेरे सामने हैं,मैं कभी उसकी विधियों से हटकर दूर नहीं जाऊँगा।+ 24  मैं उसकी नज़रों में निर्दोष बना रहूँगा,+मैं हमेशा खुद को बुराई से दूर रखूँगा।+ 25  यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल दे,+मेरी बेगुनाही के मुताबिक इनाम दे जो उसने अपनी आँखों से देखी है।+ 26  जो वफादार रहता है उसके साथ तू वफादारी निभाता है+जो सीधा है उसके साथ तू सीधाई से पेश आता है,+ 27  जो खुद को शुद्ध बनाए रखता है उसे तू दिखाएगा कि तू शुद्ध है,+मगर जो टेढ़ी चाल चलता है उसके साथ तू होशियारी* से काम लेता है।+ 28  तू नम्र लोगों को बचाता है,+लेकिन मगरूरों से तू अपनी आँखें फेर लेता है, उन्हें नीचे गिराता है।+ 29  हे यहोवा, तू मेरा दीपक है,+यहोवा ही मेरे अँधेरे को उजाला करता है।+ 30  तेरी मदद से मैं लुटेरे-दल का मुकाबला कर सकता हूँ,परमेश्‍वर की ताकत से मैं दीवार लाँघ सकता हूँ।+ 31  सच्चे परमेश्‍वर का काम खरा* है,+यहोवा का वचन पूरी तरह शुद्ध है।+ वह उसकी पनाह लेनेवालों के लिए एक ढाल है।+ 32  यहोवा को छोड़ और कौन परमेश्‍वर है?+ हमारे परमेश्‍वर के सिवा और कौन चट्टान है?+ 33  सच्चा परमेश्‍वर मेरा मज़बूत किला है,+वह मेरे लिए सीधी* राह निकालेगा।+ 34  वह मेरे पैरों को हिरन के पैरों जैसा बनाता है,मुझे ऊँची-ऊँची जगहों पर खड़ा करता है।+ 35  वह मेरे हाथों को युद्ध का कौशल सिखाता है,मेरे बाज़ू ताँबे की कमान मोड़ सकते हैं। 36  तू मुझे अपनी उद्धार की ढाल देता है,तेरी नम्रता मुझे ऊँचा उठाती है।+ 37  तू मेरे कदमों के लिए रास्ता चौड़ा करता है,मेरे पैर* नहीं फिसलेंगे।+ 38  मैं अपने दुश्‍मनों का पीछा करूँगा और उन्हें नाश कर दूँगा,मैं उन्हें मिटाकर ही लौटूँगा। 39  मैं उन्हें मिटा दूँगा, उन्हें कुचल दूँगा ताकि वे उठ न सकें,+वे मेरे पैरों तले गिर जाएँगे। 40  तू मुझे ताकत देकर युद्ध के काबिल बनाएगा,+मेरे दुश्‍मनों को मेरे कदमों के नीचे कर देगा।+ 41  तू मेरे दुश्‍मनों को मुझसे दूर भागने पर मजबूर करेगा,*+मुझसे नफरत करनेवालों का मैं अंत कर दूँगा।+ 42  वे मदद के लिए पुकारते हैं, मगर उन्हें बचानेवाला कोई नहीं,वे यहोवा को भी पुकारते हैं, मगर वह उन्हें जवाब नहीं देता।+ 43  मैं उन्हें कूटकर ज़मीन की धूल बना दूँगा,उन्हें चूर-चूर कर दूँगा और रौंदकर गलियों का कीचड़ बना दूँगा। 44  तू मुझे मेरे अपने लोगों के विरोध से भी बचाएगा,+ तू मेरी हिफाज़त करेगा ताकि मैं राष्ट्रों का मुखिया बनूँ,+जिन लोगों को मैं जानता तक नहीं वे मेरी सेवा करेंगे।+ 45  परदेसी डरते-काँपते मेरे सामने आएँगे,+वे मेरे बारे में जो सुनते हैं, वह उन्हें उभारेगा कि मेरी आज्ञा मानें। 46  परदेसी हिम्मत हार जाएँगे,*अपने किलों से थरथराते हुए बाहर निकलेंगे। 47  यहोवा जीवित परमेश्‍वर है! मेरी चट्टान की तारीफ हो!+ परमेश्‍वर जो मेरे उद्धार की चट्टान है, उसकी बड़ाई हो!+ 48  सच्चा परमेश्‍वर मेरी तरफ से बदला लेता है,+देश-देश के लोगों को मेरे अधीन कर देता है,+ 49  वह मुझे दुश्‍मनों से छुड़ाता है। तू मुझे मेरे हमलावरों से ऊँचा उठाता है,+मुझे ज़ुल्मी के हाथ से बचाता है।+ 50  इसीलिए हे यहोवा, मैं राष्ट्रों के बीच तेरा शुक्रिया अदा करूँगा,+तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा:*+ 51  परमेश्‍वर शानदार तरीके से अपने राजा का उद्धार करता है,*+वह अपने अभिषिक्‍त जन से,दाविद और उसके वंश से सदा प्यार* करता है।”+

कई फुटनोट

या “मेरे ताकतवर उद्धारकर्ता।”
शब्दावली देखें।
या “हवा।”
या “खुली।”
शा., “शुद्धता।”
या शायद, “नासमझी।”
या “परिपूर्ण।”
या “परिपूर्ण।”
या “टखने।”
या “तू मुझे मेरे दुश्‍मनों की पीठ दे देगा।”
या “मुरझा जाएँगे।”
या “संगीत बजाऊँगा।”
या “परमेश्‍वर अपने राजा के लिए बड़ी-बड़ी जीत दिलाता है।”
या “अटल प्यार।”