दूसरा शमूएल 5:1-25

  • दाविद, पूरे इसराएल का राजा (1-5)

  • यरूशलेम पर कब्ज़ा (6-16)

    • सिय्योन, दाविदपुर (7)

  • दाविद ने पलिश्‍तियों को हराया (17-25)

5  कुछ समय बाद इसराएल के सभी गोत्र हेब्रोन में दाविद के पास आए+ और कहने लगे, “देख, तेरे साथ हमारा खून का रिश्‍ता है।*+  बीते समय में जब शाऊल हमारा राजा था, तब तू ही लड़ाइयों में इसराएल की अगुवाई करता था।+ यहोवा ने तुझसे कहा था, ‘तू एक चरवाहे की तरह मेरी प्रजा इसराएल की देखभाल करेगा और इसराएल का अगुवा बनेगा।’”+  इस तरह इसराएल के सभी मुखिया हेब्रोन में राजा के पास आए और राजा दाविद ने हेब्रोन में यहोवा के सामने उनके साथ एक करार किया।+ फिर उन्होंने दाविद का अभिषेक करके उसे इसराएल का राजा ठहराया।+  जब दाविद राजा बना तब वह 30 साल का था और उसने 40 साल राज किया।+  साढ़े सात साल उसने हेब्रोन में रहकर यहूदा पर राज किया और 33 साल यरूशलेम+ में रहकर पूरे इसराएल और यहूदा पर राज किया।  एक बार राजा दाविद और उसके आदमी यबूसियों पर हमला करने यरूशलेम के लिए निकल पड़े+ जो वहाँ रहते थे। यबूसियों ने दाविद का मज़ाक बनाते हुए कहा, “तू हमारे इलाके में कभी कदम नहीं रख पाएगा! तुझे भगाने के लिए हमारे अंधे और लूले-लँगड़े ही काफी हैं।” उन्होंने सोचा कि दाविद उनके इलाके में कभी नहीं घुस पाएगा।+  मगर दाविद ने सिय्योन के गढ़वाले शहर पर कब्ज़ा कर लिया जो आज दाविदपुर कहलाता है।+  दाविद ने उस दिन कहा, “यबूसियों पर हमला करनेवालों को पानी की सुरंग से जाना चाहिए और ‘उन अंधों और लूले-लँगड़ों’ को मार डालना चाहिए जिनसे दाविद को नफरत है।” इसी घटना से यह बात चली है, “अंधे और लूले-लँगड़े इस जगह में कभी कदम नहीं रख पाएँगे।”  सिय्योन का किला जीतने के बाद दाविद वहाँ जाकर बस गया और उस जगह का नाम दाविदपुर रखा गया।* दाविद टीले*+ पर और शहर की दूसरी जगहों में दीवारें और इमारतें बनवाने लगा।+ 10  इस तरह दाविद दिनों-दिन महान होता गया+ और सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा उसके साथ था।+ 11  सोर के राजा हीराम+ ने दाविद के पास अपने दूत भेजे। साथ ही, उसने देवदार की लकड़ी और कुछ बढ़ई और दीवार बनाने के लिए राजमिस्त्री भेजे।+ ये कारीगर दाविद के लिए महल बनाने लगे।+ 12  और दाविद को एहसास हो गया कि यहोवा ने इसराएल पर उसका राज मज़बूती से कायम किया है+ और अपनी प्रजा इसराएल की खातिर+ उसका राज ऊँचा किया है।+ 13  दाविद ने हेब्रोन से यरूशलेम आने के बाद और भी कुछ औरतों से शादी की और कुछ उप-पत्नियाँ रखीं+ और उनसे दाविद के और भी बेटे-बेटियाँ हुए।+ 14  यरूशलेम में उसके जो बेटे हुए उनके नाम ये हैं: शम्मू, शोबाब, नातान,+ सुलैमान,+ 15  यिभार, एलीशू, नेपेग, यापी, 16  एलीशामा, एल्यादा और एलीपेलेत। 17  जब पलिश्‍तियों ने सुना कि दाविद का अभिषेक करके उसे इसराएल का राजा बनाया गया है,+ तो वे सब दाविद की खोज में निकल पड़े।+ जब दाविद को इसका पता चला तो वह एक महफूज़ जगह चला गया।+ 18  फिर पलिश्‍ती लोग आए और रपाई घाटी+ में फैल गए। 19  तब दाविद ने यहोवा से सलाह की,+ “क्या मैं जाकर पलिश्‍तियों पर हमला करूँ? क्या तू उन्हें मेरे हाथ में कर देगा?” यहोवा ने दाविद से कहा, “तू जाकर पलिश्‍तियों पर हमला कर। मैं उन्हें ज़रूर तेरे हाथ में कर दूँगा।”+ 20  तब दाविद बाल-परासीम गया और वहाँ उसने पलिश्‍तियों को मार गिराया। दाविद ने कहा, “यहोवा मेरे आगे-आगे जाकर पानी की तेज़ धारा की तरह मेरे दुश्‍मनों पर टूट पड़ा और उनका नाश कर दिया।”+ इसीलिए दाविद ने उस जगह का नाम बाल-परासीम* रखा।+ 21  पलिश्‍तियों ने अपनी मूर्तियाँ वहीं छोड़ दी थीं और दाविद और उसके आदमी उन्हें उठा ले गए। 22  बाद में पलिश्‍ती एक बार फिर आए और रपाई घाटी में फैल गए।+ 23  दाविद ने यहोवा से सलाह की, मगर उसने दाविद से कहा, “तू उन पर सामने से हमला मत करना। इसके बजाय, तू पीछे से जाना और बाका झाड़ियों के सामने से उन पर हमला करना। 24  जब तुझे झाड़ियों के ऊपर सेना के चलने की आवाज़ सुनायी दे, तो तू फौरन कदम उठाना क्योंकि यहोवा पलिश्‍ती सेना को मार गिराने के लिए तेरे आगे-आगे जा चुका होगा।” 25  दाविद ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी और वह गेबा+ से लेकर गेजेर+ तक पूरे रास्ते पलिश्‍तियों को मारता गया।+

कई फुटनोट

शा., “हम तेरा हाड़-माँस हैं।”
या शायद, “उसने उस जगह का नाम दाविदपुर रखा।”
या “मिल्लो।” इस इब्रानी शब्द का मतलब “भरना” है।
मतलब “टूट पड़नेवाला मालिक।”