दूसरा शमूएल 6:1-23

  • संदूक यरूशलेम लाया गया (1-23)

    • उज्जाह ने संदूक पकड़ा; उसकी मौत (6-8)

    • मीकल ने दाविद को तुच्छ समझा (16, 20-23)

6  दाविद ने एक बार फिर इसराएल की सेना से सभी अच्छे-अच्छे सैनिकों की टुकड़ियाँ इकट्ठी कीं। उन आदमियों की गिनती 30,000 थी।  फिर दाविद और वे सभी आदमी बाले-यहूदा की तरफ निकल पड़े ताकि वहाँ से सच्चे परमेश्‍वर का संदूक ले आएँ,+ जो करूबों पर* विराजमान है। उसी संदूक के सामने लोग सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का नाम पुकारते हैं।+  मगर दाविद और उसके आदमियों ने वहाँ से संदूक लाने के लिए उसे एक नयी बैल-गाड़ी पर रखा।+ संदूक पहाड़ी पर अबीनादाब के घर में था।+ जब संदूक ले जाया जा रहा था तो अबीनादाब के बेटे उज्जाह और अहयो गाड़ी के आगे-आगे चल रहे थे।  इस तरह वे पहाड़ी पर अबीनादाब के घर गए और वहाँ से सच्चे परमेश्‍वर का संदूक लेकर चल दिए। अहयो संदूक के आगे-आगे चल रहा था।  दाविद और इसराएल का पूरा घराना यहोवा के सामने जश्‍न मना रहा था। वे सनोवर की लकड़ी से बने तरह-तरह के साज़, सुरमंडल, तारोंवाले दूसरे बाजे,+ डफली,+ झीका और झाँझ बजाते हुए खुशियाँ मना रहे थे।+  मगर जब वे नाकोन नाम के खलिहान पहुँचे तो ऐसा हुआ कि बैल-गाड़ी पलटने पर हो गयी। तभी उज्जाह ने हाथ बढ़ाकर सच्चे परमेश्‍वर का संदूक पकड़ लिया।+  इस पर यहोवा का क्रोध उज्जाह पर भड़क उठा और सच्चे परमेश्‍वर ने उसे वहीं मार डाला+ क्योंकि उसने परमेश्‍वर के कानून का अनादर किया था।+ उज्जाह सच्चे परमेश्‍वर के संदूक के पास ही मर गया।  मगर यह देखकर कि यहोवा का क्रोध उज्जाह पर भड़क उठा, दाविद बहुत गुस्सा* हुआ। इसी घटना की वजह से वह जगह आज तक पेरेस-उज्जाह* के नाम से जानी जाती है।  फिर उस दिन दाविद यहोवा से बहुत डर गया+ और उसने कहा, “यहोवा का संदूक मेरे यहाँ कैसे आ पाएगा?”+ 10  दाविद यहोवा के संदूक को अपने शहर दाविदपुर लाने से झिझक रहा था।+ इसलिए उसने वह संदूक गत के रहनेवाले ओबेद-एदोम के घर पहुँचा दिया।+ 11  यहोवा का संदूक तीन महीने तक गत के रहनेवाले ओबेद-एदोम के घर में ही रहा। इस दौरान यहोवा ओबेद-एदोम और उसके पूरे घराने को आशीषें देता रहा।+ 12  राजा दाविद को बताया गया कि यहोवा ने ओबेद-एदोम के घर पर और उसका जो कुछ है उस पर आशीष दी है क्योंकि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक उसके घर में है। इसलिए दाविद ओबेद-एदोम के घर गया ताकि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक खुशियाँ मनाते हुए दाविदपुर ले आए।+ 13  जब यहोवा का संदूक ढोनेवालों+ ने छ: कदम आगे बढ़ाए तो दाविद ने एक बैल और एक मोटे किए हुए जानवर की बलि चढ़ायी। 14  दाविद मलमल का एपोद पहने* यहोवा के सामने पूरे जोश और उमंग से नाच रहा था।+ 15  वह और इसराएल के घराने के सब लोग जयजयकार करते हुए+ और नरसिंगा फूँकते हुए+ यहोवा का संदूक+ ला रहे थे। 16  मगर जब यहोवा का संदूक दाविदपुर पहुँचा और शाऊल की बेटी मीकल+ ने खिड़की से नीचे झाँककर देखा कि राजा दाविद यहोवा के सामने झूम-झूमकर नाच रहा है तो वह मन-ही-मन दाविद को तुच्छ समझने लगी।+ 17  फिर वे यहोवा का संदूक उस तंबू में ले आए जो दाविद ने उसके लिए खड़ा किया था। उन्होंने उसे तंबू के अंदर ठहरायी गयी जगह पर रख दिया।+ इसके बाद दाविद ने यहोवा के सामने होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ायीं।+ 18  जब दाविद ये बलियाँ चढ़ा चुका, तो उसने सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से लोगों को आशीर्वाद दिया। 19  और उसने पूरे इसराएल में से हर आदमी और हर औरत को एक छल्ले जैसी रोटी, एक खजूर की टिकिया और एक किशमिश की टिकिया दी। फिर सब लोग अपने-अपने घर लौट गए। 20  जब दाविद अपने घराने को आशीर्वाद देने लौटा तो शाऊल की बेटी मीकल+ उससे मिलने बाहर आयी। वह कहने लगी, “वाह! आज इसराएल के राजा ने क्या शान दिखायी! अपने सेवकों की दासियों के सामने अधनंगा होकर वह ऐसे नाच रहा था जैसे कोई निकम्मा आदमी खुलेआम अधनंगा घूमता है।”+ 21  दाविद ने मीकल से कहा, “मैं यहोवा के सामने जश्‍न मना रहा था, जिसने तेरे पिता और उसके पूरे घराने के बदले मुझे चुना। यहोवा ने मुझे अपनी प्रजा इसराएल का अगुवा ठहराया है।+ इसलिए मैं यहोवा के सामने ज़रूर जश्‍न मनाऊँगा 22  और मैं खुद को इससे भी नीचा करूँगा और अपनी नज़रों में खुद को और भी दीन करूँगा। मैं चाहे दीन हो जाऊँ, फिर भी वे दासियाँ जिनके बारे में तूने कहा है, मेरी शान की बड़ाई करेंगी।” 23  इसलिए शाऊल की बेटी मीकल+ सारी ज़िंदगी बेऔलाद रही।

कई फुटनोट

या शायद, “के बीच।”
या “नाराज़।”
मतलब “उज्जाह पर भड़क उठा।”
शा., “कमर में कसे हुए।”