जीएँ मसीहियों की तरह
मसीह के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलिए
यीशु ने हमारे लिए एक आदर्श रखा कि हम किस तरह मुश्किलों का सामना कर सकते हैं या ज़ुल्म सह सकते हैं। (1पत 2:21-23) यीशु की बेइज़्ज़ती की गयी, लेकिन उसने कभी पलटकर जवाब नहीं दिया। जब वह तकलीफ झेल रहा था, तब भी उसने किसी को बुरा-भला नहीं कहा। (मर 15:29-32) वह यह सब इसलिए कर पाया, क्योंकि वह यहोवा की मरज़ी पूरी करना चाहता था। (यूह 6:38) इसके अलावा उसने अपना पूरा ध्यान उस “खुशी” पर लगाया, “जो उसके सामने थी।”—इब्र 12:2.
हम जो विश्वास करते हैं, उस वजह से अगर हमारे साथ बुरा व्यवहार किया जाता है, तो हम क्या करेंगे? हम मसीही “बुराई का बदला बुराई से” नहीं देंगे। (रोम 12:14, 17) तकलीफें आने पर अगर हम यीशु की तरह धीरज धरें, तो हम इस बात से खुशी पा सकते हैं कि यहोवा हमसे खुश है।—मत 5:10-12; 1पत 4:12-14.
यहोवा का नाम सबसे ज़्यादा मायने रखता है नाम का वीडियो देखिए। फिर इन सवालों के जवाब दीजिए:
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काल-कोठरी में सज़ा काटते वक्त बहन पोएट्ज़िंगर ने समय का अच्छा इस्तेमाल कैसे किया?
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भाई और बहन पोएट्ज़िंगर ने अलग-अलग यातना शिविरों में कौन-कौन-सी तकलीफें सहीं?
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वे कैसे धीरज धर पाएँ?