जीएँ मसीहियों की तरह
सोच-समझकर दोस्ती कीजिए
मोआब के मैदानों में इसराएलियों के साथ जो हुआ, उससे हमें एक सबक मिलता है। (1कुर 10:6, 8, 11) कुछ इसराएली आदमी मोआब की औरतों से मेल-जोल रखने लगे जो बदचलन थीं और मूर्ति-पूजा करती थीं। ये आदमी इन औरतों के बहकावे में आकर पाप कर बैठे। इस वजह से इसराएलियों पर मुसीबत टूट पड़ी। (गि 25:9) हम जिनके साथ काम करते हैं, स्कूल में पढ़ते हैं, हमारे पड़ोसी, रिश्तेदार और जान-पहचानवाले, उनमें से ज़्यादातर लोग यहोवा की उपासना नहीं करते। ऐसे लोगों के साथ ज़्यादा मेल-जोल रखने से हम भी इसराएलियों की तरह खतरे में पड़ सकते हैं।
इसराएलियों की कहानी, हमें देती चेतावनी—एक झलक वीडियो देखिए। फिर सवालों के जवाब दीजिए।
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फिनेहास ने यामीन को क्या समझाया?
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एक अविश्वासी के साथ दोस्ताना व्यवहार करने और उसके दोस्त होने में क्या फर्क है?
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मंडली में भी हमें क्यों सोच-समझकर दोस्त बनाने चाहिए?
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सोशल मीडिया पर हमें ऐसे लोगों से क्यों बात नहीं करनी चाहिए जिन्हें हम नहीं जानते?