गीत 114
“सब्र रखो”
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1. यहोवा का ही नाम है
जहाँ में जो है सबसे पाक।
चाहता वो पूरे दिल से
मिटाना अपने नाम से दाग।
युगों से था सहनशील,
किया प्यार इंसानों से;
कभी भी ना थका वो,
लिया काम सब्र से।
यहोवा की है मरज़ी
सभी इंसाँ पाएँ उद्-धार;
रखा जो सब्र प्यार से,
कभी ना जाए वो बेकार।
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2. इस नेक राह पे हमारी,
गुण सब्र का मदद करे।
नाराज़गी से बचाके
हिफाज़त मन की ये करे।
अच्छाई देखे सब में
या उम्मीद करे इसकी;
तकलीफों से लड़ने की
ये दे समझदारी।
बढ़ती हैं खूबियाँ जो
हम में पवित्र शक्-ति से,
है सब्र उनमें से खास,
बनाए याह जैसा हमें।
(निर्ग. 34:14; यशा. 40:28; 1 कुरिं. 13:4, 7; 1 तीमु. 2:4 भी देखें।)