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दो पल रुकें, ताज़गी पाएँ!

दो पल रुकें, ताज़गी पाएँ!
  1. 1. आओ ना, रुक लें दो पल, सुकूँ से बैठने, यार!

    चलो, फोन बंद करें, और खयाल दिल के करें शेयर एक-दूजे से।

    रुकके देखें याह के काम, खूबसूरत हैं कितने!

    ये हैं ज़्यादा अहम — टाइम निकालके अब हम — “थैंक यू” कहें उसे!

    (कोरस)

    अपनी सोच को बदलने एक पल है काफी,

    देखें हम याह की कारीगरी;

    जब हमारी सोच याह जैसी हो, तो धीरे

    मन शांत हो अपना,

    पाएँ हम ताज़गी!

  2. 2. रातें जब हों मखमली-सी, खिली चाँदनी में टहलें;

    खुशी से मन अपना तरोताज़ा होता, याह की दर्‌-या-दिली से!

    रखें आशीषें हम मन में जब घेरे मुश्‌-कि-लें;

    आगे मंज़िल देखें, हरदम याद ये रखें, हम हैं याह की बाहों में!

    (कोरस)

    अपनी सोच को बदलने एक पल है काफी,

    देखें हम याह की कारीगरी;

    जब हमारी सोच याह जैसी हो, तो धीरे

    मन शांत हो अपना,

    पाएँ हम ताज़गी!

    पा-एँ ताज़गी!

    पा-एँ ताज़गी!

    (कोरस)

    अपनी सोच को बदलने एक पल है काफी,

    देखें हम याह की कारीगरी;

    जब हमारी सोच याह जैसी हो, तो धीरे

    मन शांत हो अपना,

    पाएँ हम ताज़गी! 

    (आखिरी पंक्‍तियाँ)

    हाँ, टाइम निकालके गौर से सोचें!

    मन शांत हो अपना!

    फोकस बदलके लाइफ को देखें!

    अपनी सोच बदलें जब भी,

    पाएँ हम ताज़गी!