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मुझ पे ऐतबार करना

मुझ पे ऐतबार करना
  1. 1. जैसा चाहते हम

    होता नहीं हमेशा वो।

    बदले हालात, मगर ये ना सोचो

    कि सब कुछ हुआ है खतम।

    के याह तो जाने सब

    हम से बेहतर जाने हम को

    हैं कितने हम काबिल और कर सकते क्या

    बस चलते चलो याह की राह।

    (प्री-कोरस)

    याह प्यार सबको करे

    हम जो भी हों, बंदे हम याह के ही हैं।

    वो चाहता हमसे ये

    करें परवाह हम सभी की।

    (कोरस)

    तो सुन ऐ दोस्त, नहीं दोस्त तुझ-सा

    तू ने साथ दिया, हर कदम पे हाँ।

    गर कभी

    हो मुश्‍किल डगर, ना डर, दूँगा मैं साथ।

    तू मुझ पे ऐतबार

    करना मेरे यार।

  2. 2. जो होते हादसे

    रोते हैं हम भी संग उनके

    और कह ना पाते ज़ुबाँ से हम जो भी

    वो आँसू करते हैं बयाँ।

    (प्री-कोरस)

    तोड़ देती हिम्मत ये

    यहोवा लेकिन है सँभालता हमें।

    याह की तरह हम भी

    सहारा दें, हाँ दोस्त बन के।

    (कोरस)

    तो सुन ऐ दोस्त, नहीं दोस्त तुझ-सा

    तू ने साथ दिया, हर कदम पे हाँ।

    गर कभी

    हो मुश्‍किल डगर, ना डर, दूँगा मैं साथ।

    तू मुझ पे ऐतबार

    करना मेरे यार।

    (कोरस)

    तो सुन ऐ दोस्त, नहीं दोस्त तुझ-सा

    तू ने साथ दिया, हर कदम पे हाँ।

    गर कभी

    हो मुश्‍किल डगर, ना डर, दूँगा मैं साथ।

    तू मुझ पे ऐतबार

    करना मेरे यार।