उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
उसने अंत तक धीरज रखा
एलियाह भविष्यवक्ता की उम्र ढल चुकी है। उसे खबर मिलती है कि राजा अहाब की मौत हो गयी है। वह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरने लगता है और खयालों में खो जाता है। वह वे दिन याद करने लगता है, जब उसका सामना दुष्ट राजा अहाब से होता था। उसे राजा अहाब और उसकी रानी इज़ेबेल के हाथों कई ज़ुल्म सहने पड़े! उन्होंने कितनी बार उसे धमकाया, उसे पकड़ने के लिए आदमी भेजे, यहाँ तक कि उसकी जान लेने की भी कोशिश की। जब इज़ेबेल ने यहोवा के बहुत-से भविष्यवक्ताओं का खून करने का आदेश दिया, तो राजा ने उसे नहीं रोका। एक बार तो राजा और रानी, दोनों ने मिलकर एक नेक और बेकसूर आदमी नाबोत और उसके बेटों का कत्ल करने की साज़िश की। आखिर क्यों? क्योंकि वे लालची थे, वे नाबोत की ज़मीन हड़पना चाहते थे। जब उन्होंने नाबोत और उसके बेटों का कत्ल करवा दिया, तब एलियाह ने यहोवा की तरफ से अहाब और उसके पूरे खानदान को सज़ा सुनायी। परमेश्वर की यह बात पूरी हुई। अहाब का वही हश्र हुआ, जिसके बारे में यहोवा ने भविष्यवाणी की थी।—1 राजा 18:4; 21:1-26; 22:37, 38; 2 राजा 9:26.
लेकिन एलियाह जानता है कि उसे आगे भी धीरज रखने की ज़रूरत होगी। भले ही अहाब मर गया है, मगर इज़ेबेल ज़िंदा है और वह अब भी अपने परिवार और देश पर बुरा असर कर रही है। एलियाह को आगे और भी मुश्किलों का सामना करना होगा, साथ ही उसे एलीशा को भी बहुत कुछ सिखाने की ज़रूरत है, जो न सिर्फ उसका साथी है बल्कि उसकी जगह भी लेनेवाला है। आइए चर्चा करें कि एलियाह को आखिर में कौन-से तीन काम करने पड़े। इससे हम जान पाएँगे कि विश्वास की वजह से वह कैसे धीरज रख पाया। तब हम सीख पाएँगे कि हम जिस मुश्किल वक्त में जी रहे हैं, उसमें हम अपना विश्वास कैसे मज़बूत कर सकते हैं।
उसने अहज्याह को सज़ा सुनायी
अब अहाब और इज़ेबेल का जवान बेटा अहज्याह इसराएल का राजा है। अपने माँ-बाप की गलतियों से सबक सीखने के बजाय वह उन्हीं के नक्शे-कदम पर चलने लगता है। (1 राजा 22:52) उनकी तरह अहज्याह बाल की उपासना करता है। बाल की उपासना करनेवाले सभी लोग बुरे-बुरे काम करते हैं। वे मंदिर में अनैतिक काम करते हैं, यहाँ तक कि अपने बच्चों की बलि चढ़ाते हैं। क्या अहज्याह बदलेगा? क्या वह अपने लोगों को यहोवा से विश्वासघात करने से रोकेगा?
एक दिन अचानक इस मगरूर राजा के साथ एक हादसा होता है। वह महल की छत के जंगले से गिर पड़ता है और बुरी तरह घायल हो जाता है। उसकी जान पर बन आती है, फिर भी वह यहोवा से मदद नहीं माँगता। इसके बजाय वह अपने दूतों को दुश्मनों के इलाके यानी पलिश्तियों के शहर एक्रोन भेजता है, ताकि वे बाल-जबूब देवता से पूछ सकें कि वह ठीक होगा या नहीं। वह ऐसे पेश आया मानो इसराएल में कोई परमेश्वर है ही नहीं। यह कितना बड़ा पाप है! अहज्याह पर यहोवा को बहुत गुस्सा आता है। वह अपने एक स्वर्गदूत को एलियाह के पास भेजता है। स्वर्गदूत उससे कहता है कि वह दूतों को रास्ते में ही रोक ले। तब भविष्यवक्ता एलियाह उन दूतों को कड़ा संदेश सुनाकर राजा के पास वापस भेजता है। यहोवा सज़ा सुनाता है कि अहज्याह अपने बिस्तर से कभी नहीं उठेगा।—2 राजा 1:2-4.
दूतों का संदेश सुनने के बाद भी अहज्याह पश्चाताप नहीं करता। इसके बजाय वह पूछता है, “जिस आदमी ने आकर तुमसे यह बात कही, वह दिखने में कैसा था?” दूत उसे बताते हैं कि भविष्यवक्ता सादी पोशाक पहने था। इससे अहज्याह तुरंत समझ जाता है और कहता है, ‘वह एलियाह है।’ (2 राजा 1:7, 8) गौर कीजिए कि एलियाह को उसके पहनावे से आसानी से पहचान लिया गया। वह सादी पोशाक इसलिए पहनता था क्योंकि वह सादा जीवन जीता था और उसका पूरा ध्यान परमेश्वर की सेवा पर लगा था। लेकिन अहज्याह या उसके माता-पिता के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे बहुत लालची थे। एलियाह की मिसाल आज हमें यीशु की यह सलाह याद दिलाती है कि हमें सादा जीवन जीना चाहिए और अपना पूरा ध्यान अहम बातों पर लगाए रखना चाहिए।—मत्ती 6:22-24.
अब अहज्याह ठान लेता है कि वह एलियाह से बदला लेकर ही रहेगा। वह एलियाह को पकड़ने के लिए एक सेना-अधिकारी को उसके 50 सैनिकों के साथ भेजता है। जब वे एलियाह के पास पहुँचते हैं, तो देखते हैं कि वह “एक पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ” है। * वह अधिकारी बड़ी रुखाई से एलियाह को आदेश देता है कि राजा ने कहा है, “नीचे उतर आ।” मुमकिन है कि वह कह रहा है कि मौत की सज़ा के लिए तैयार हो जा। सैनिकों की जुर्रत तो देखो! वे जानते हैं कि वह सच्चे परमेश्वर का सेवक है, फिर भी उसे डरा-धमका रहे हैं। एलियाह अधिकारी से कहता है, “अगर मैं परमेश्वर का सेवक हूँ, तो आसमान से आग बरसे और तुझे और तेरे 50 आदमियों को भस्म कर दे।” तब परमेश्वर फौरन कदम उठाता है! ‘आसमान से आग बरसती है और वह अधिकारी और उसके 50 आदमी भस्म हो’ जाते हैं। (2 राजा 1:9, 10) उन सैनिकों का क्या ही भयानक अंत होता है! यह घटना दिखाती है कि जब लोग यहोवा के सेवकों का अपमान करते हैं, तो वह उसे हलके में नहीं लेता।—1 इतिहास 16:21, 22.
इसके बाद अहज्याह एक और अधिकारी को उसके 50 आदमियों के साथ भेजता है। यह अधिकारी पहले अधिकारी से ज़्यादा गुस्ताखी करता है। कैसे? पहली बात, वह उन 51 सैनिकों की मौत से कोई सबक नहीं सीखता, जबकि शायद वह पहाड़ के एक तरफ उनकी राख पड़ी हुई देख सकता है। दूसरी बात, वह न सिर्फ पहले अधिकारी की तरह एलियाह को यह हुक्म देता है कि “नीचे आ” बल्कि “जल्दी” आने को भी कहता है। वह कितना बड़ा बेवकूफ है! आखिरकार उसका और उसके आदमियों का भी वही अंत होता है। उससे भी बड़ा बेवकूफ राजा अहज्याह है। इतना सबकुछ होने के बाद भी वह तीसरी बार सैनिकों का दल भेजता है। लेकिन शुक्र है कि इस दल का अधिकारी बुद्धिमान है। वह नम्र होकर एलियाह के पास जाता है और उससे बिनती करता है कि वह उसकी और उसके आदमियों की जान बख्श दे। सच्चे परमेश्वर का सेवक एलियाह उसकी बिनती सुन लेता है और इस तरह यहोवा के जैसी दया करता है। फिर यहोवा का एक स्वर्गदूत एलियाह से कहता है कि वह उन सैनिकों के साथ जाए। एलियाह उनके साथ जाता है और दुष्ट राजा को यहोवा का वही न्यायदंड सुनाता है, जो उसने पहले भी सुनाया था। परमेश्वर की बात पूरी होती है और अहज्याह की मौत हो जाती है। वह सिर्फ दो साल तक राज कर पाता है।—2 राजा 1:11-17.
हालाँकि एलियाह ऐसे लोगों के बीच रहता था, जो ढीठ थे और यहोवा से बगावत करते थे, फिर भी वह धीरज रख पाया। वह यह कैसे कर पाया? यह सवाल आज हमारे लिए बहुत मायने रखता है। हो सकता है कि जिस व्यक्ति की हमें बहुत परवाह है, वह अच्छी सलाह ठुकरा दे और ढीठ होकर उस राह पर चलने लगे, जिससे उसी का नुकसान होता है। यह देखकर हमें बहुत दुख होता है। ऐसे में हम धीरज कैसे रख सकते हैं? याद कीजिए कि जब सैनिक एलियाह के पास गए, तो वह “एक पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ था।” हम पक्के तौर पर तो नहीं कह सकते, मगर हो सकता है कि वह हमेशा की तरह वहाँ प्रार्थना कर रहा हो। वह एक एकांत जगह थी, इसलिए उसे लगा होगा कि वहाँ प्रार्थना के ज़रिए वह अपने प्यारे परमेश्वर के करीब आ सकता है। (याकूब 5:16-18) उसी तरह, हमें भी रोज़ समय निकालकर परमेश्वर से अकेले में बात करनी चाहिए। हमें उसका नाम लेकर उससे बिनती करनी चाहिए, अपनी समस्याओं और चिंताओं के बारे में उसे बताना चाहिए। इससे हम धीरज रख पाएँगे, भले ही हमारे आस-पास के लोग ढीठ हों या ऐसे काम करते हों जिनसे उन्हीं का नुकसान होता है।
एलियाह ने एलीशा को अपनी पोशाक दी
अब वक्त आ गया है कि एलियाह अपनी ज़िम्मेदारी एलीशा को सौंपे। ध्यान दीजिए कि एलियाह क्या करता है। जब वह और एलीशा गिलगाल नगर से निकलकर जाते हैं, तो वह एलीशा से वहीं ठहर जाने के लिए कहता है, क्योंकि वह अकेले बेतेल जाएगा। बेतेल गिलगाल से करीब 11 किलोमीटर दूर है। मगर एलीशा कहता है, “यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, मैं तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा।” जब वे दोनों बेतेल पहुँचते हैं, तो एलियाह एलीशा से कहता है कि वह अकेले यरीहो जाएगा, जो कुछ 22 किलोमीटर दूर है। एलीशा फिर से उसके साथ चलने के लिए कहता है। यरीहो पहुँचने पर तीसरी बार एलियाह वही बात कहता है। वह बताता है कि वह अकेले यरदन नदी के पास जाएगा, जो करीब 8 किलोमीटर दूर है। पर इस बार भी एलीशा वही जवाब देता है। वह एलियाह का साथ नहीं छोड़ता!—2 राजा 2:1-6.
इस तरह एलीशा अटल प्यार ज़ाहिर कर रहा था, जो बहुत ज़रूरी गुण है। ऐसा ही प्यार रूत को नाओमी से था। इस प्यार की वजह से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से दृढ़ता से जुड़ा रहता है और किसी भी हाल में उसका साथ नहीं छोड़ता। (रूत 1:15, 16) पहले से कहीं ज़्यादा आज परमेश्वर के सभी सेवकों में यह गुण होना चाहिए। क्या एलीशा की तरह हम भी समझते हैं कि यह गुण ज़ाहिर करना ज़रूरी है?
अपने जवान साथी का अटल प्यार एलियाह के दिल को छू जाता है। यह प्यार ज़ाहिर करने की वजह से एलीशा को एलियाह का आखिरी चमत्कार देखने का मौका मिलता है। वे दोनों यरदन नदी के पास पहुँचते हैं, जो कहीं-कहीं पर काफी गहरी और बहुत तेज़ बहती है। नदी किनारे खड़े होकर एलियाह अपनी भविष्यवक्ता की पोशाक पानी पर मारता है। पानी दो हिस्सों में बँट जाता है! एलीशा के अलावा “भविष्यवक्ताओं के बेटों में से 50 आदमी भी” यह चमत्कार देखते हैं। ज़ाहिर है कि ये आदमी उस संघ के हैं, जिसमें आदमियों को सच्ची उपासना में अगुवाई करने की तालीम दी जाती है। (2 राजा 2:7, 8) मुमकिन है कि एलियाह उस संघ की निगरानी करता है। कुछ साल पहले एलियाह को लग रहा था कि पूरे देश में सिर्फ वही एक वफादार आदमी रह गया है, फिर भी उसने धीरज रखा। इस वजह से यहोवा ने उसे आशीष दी। तब से एलियाह को यह देखने का सम्मान मिला कि कैसे यहोवा के उपासकों की गिनती बढ़ती जा रही है।—1 राजा 19:10.
इसके बाद एलियाह और एलीशा यरदन नदी के पार जाते हैं। फिर एलियाह उससे कहता है, “इससे पहले कि परमेश्वर मुझे तुझसे दूर ले जाए, तू जो चाहे मुझसे माँग ले।” एलियाह जानता है कि उसके जाने का वक्त आ गया है। वह इस बात से नाराज़ नहीं है कि अब उसका जवान साथी उसकी जगह लेनेवाला है और भविष्य में उसी का नाम होगा। इसके बजाय, वह खुशी-खुशी एलीशा की मदद करना चाहता है, ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारी निभा सके। एलीशा सिर्फ यह गुज़ारिश करता है, “परमेश्वर ने तुझे जो शक्ति दी है क्या उसके दो हिस्से मुझे मिल सकते हैं?” (2 राजा 2:9; फुटनोट) उसका यह मतलब नहीं था कि एलियाह को जितनी पवित्र शक्ति मिली थी, उससे दुगनी उसे मिले। इसके बजाय वह पहलौठे बेटे की तरह विरासत का हिस्सा माँग रहा था। कानून के मुताबिक पहलौठे बेटे को पिता की विरासत का सबसे ज़्यादा या दुगना हिस्सा मिलता था, क्योंकि परिवार का मुखिया बनने से उसकी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाती थीं। (व्यवस्थाविवरण 21:17) एलीशा लाक्षणिक तौर पर एलियाह का वारिस था, इसलिए ज़ाहिर है कि वह एलियाह के जैसी हिम्मत पाना चाहता था, ताकि वह परमेश्वर का काम पूरा कर सके।
एलियाह नम्र होकर एलीशा की गुज़ारिश यहोवा पर छोड़ देता है। वह कहता है कि अगर यहोवा उसे यह देखने का मौका देगा कि वह बुज़ुर्ग भविष्यवक्ता को उठाकर ले जा रहा है, तो इसका मतलब परमेश्वर उसकी गुज़ारिश पूरी करेगा। फिर दोनों लंबे समय के दोस्त “बातें करते हुए साथ-साथ” चलने लगते हैं। तभी अचानक एक अनोखी घटना घटती है!—2 राजा 2:10, 11.
एक-दूसरे के दोस्त होने की वजह से एलियाह और एलीशा मुश्किल हालात में धीरज रख पाए
आसमान में उन्हें अजीब-सी रौशनी दिखायी देती है और वह रौशनी फैलती जा रही है। तभी एक आँधी उठती है और उसकी गड़गड़ाहट उन्हें सुनायी देती है। साथ ही, तेज़ चमकती हुई कोई चीज़ बड़ी रफ्तार से उनकी तरफ आती है। शायद उसी को देखकर वे चौंक जाते हैं और एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। वे जो देखते हैं, वह एक रथ है जो आग की तरह चमक रहा है। एलियाह समझ जाता है कि उसका वक्त आ गया है। क्या वह उस रथ पर सवार हो जाता है? बाइबल कुछ नहीं बताती। बाइबल इतना ज़रूर बताती है कि उसे आँधी में आसमान की तरफ ऊपर उठाया जा रहा है!
यह सब देखकर एलीशा दंग रह जाता है। वह समझ जाता है कि यहोवा ज़रूर उसे ‘शक्ति के दो हिस्से’ देगा यानी एलियाह के जैसा हिम्मतवाला बनाएगा। मगर वह इस बारे में नहीं सोच पाता, क्योंकि वह बहुत दुखी है। वह नहीं जानता कि उसका प्यारा दोस्त कहाँ जा रहा है। शायद उसे उम्मीद नहीं है कि वह एलियाह से फिर कभी मिल पाएगा। वह ज़ोर-ज़ोर से कहता है, “हे मेरे पिता, हे मेरे पिता! देख, इसराएल का रथ और उसके घुड़सवार!” धीरे-धीरे उसका शिक्षक उसकी आँखों से ओझल हो जाता है। वह अपने कपड़े फाड़कर मातम मनाने लगता है।—2 राजा 2:12.
जब एलियाह ऊपर उठ रहा था, तो क्या उसने अपने दोस्त का रोना सुना होगा? क्या वह भी रोया होगा? शायद। मगर एक बात तय है, एलियाह यह ज़रूर जानता था कि एलीशा जैसे वफादार दोस्त की मदद से वह कई मुश्किल हालात में धीरज रख पाया। एलियाह से हम एक ज़रूरी बात सीख सकते हैं। हमें ऐसे लोगों से दोस्ती करनी चाहिए जो परमेश्वर से प्यार करते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करते हैं।
एक आखिरी काम
इसके बाद एलियाह कहाँ गया? कुछ धर्म सिखाते हैं कि उसे स्वर्ग उठा लिया गया ताकि वह परमेश्वर के साथ रहे। लेकिन ऐसा हो ही नहीं सकता। सदियों बाद यीशु मसीह ने कहा कि उसके समय से पहले कोई भी इंसान स्वर्ग नहीं गया। (यूहन्ना 3:13) फिर जब बाइबल के कुछ अनुवादों में लिखा है कि “एलियाह बवंडर में होकर स्वर्ग पर चढ़ गया,” तो उसका क्या मतलब है? (2 राजा 2:11, हिंदी—ओ.वी.) बाइबल में शब्द “स्वर्ग” का मतलब हमेशा वह जगह नहीं होता, जहाँ यहोवा रहता है। कई आयतों में इसका मतलब आसमान है, जहाँ बादल होते हैं और पंछी उड़ते हैं। (भजन 147:8) तो फिर एलियाह आसमान में गया। फिर वहाँ से वह कहाँ गया?
यहोवा अपने प्यारे भविष्यवक्ता को पास के यहूदा राज्य ले गया। वहाँ उसने एलियाह को एक नयी ज़िम्मेदारी दी। बाइबल बताती है कि वह यहूदा में काफी समय तक सेवा करता रहा। शायद सात साल से भी ज़्यादा समय तक। उस दौरान यहूदा पर दुष्ट राजा यहोराम का राज था। उसने अहाब और इज़ेबेल की बेटी से शादी की थी। इस वजह से अहाब और इज़ेबेल का बुरा असर अब भी देखा जा सकता था। यहोवा के कहने पर एलियाह ने एक चिट्ठी के ज़रिए यहोराम को सज़ा सुनायी। इस भविष्यवाणी के मुताबिक, यहोराम एक बुरी मौत मरा। और-तो-और “जब उसकी मौत हुई तो किसी को दुख नहीं हुआ।”—2 इतिहास 21:12-20.
उस दुष्ट राजा और एलियाह के बीच कितना बड़ा फर्क था! हम यह नहीं जानते कि एलियाह की मौत कब या कैसे हुई। मगर हम यह ज़रूर जानते हैं कि उसकी मौत यहोराम की तरह नहीं हुई और ऐसा भी नहीं था कि उसकी मौत पर किसी को दुख न हुआ हो। एलीशा को अपने इस दोस्त की बहुत याद आयी। दूसरे वफादार भविष्यवक्ताओं ने भी उसे याद किया होगा। यही नहीं, करीब 1,000 साल बाद भी वह यहोवा की नज़रों में अनमोल था। इस वजह से उसने उस दर्शन में इस प्यारे भविष्यवक्ता को दिखाया, जिसमें यीशु का रूप बदला था। (मत्ती 17:1-9) क्या आप भी एलियाह की तरह मुश्किल हालात में अपना विश्वास मज़बूत करना चाहते हैं? अगर हाँ, तो उन लोगों से दोस्ती कीजिए जो परमेश्वर से प्यार करते हैं, अपनी पूरी ज़िंदगी यहोवा की सेवा करते रहिए और लगातार दिल से प्रार्थना कीजिए। ऐसा करने से आप हमेशा यहोवा के दिल के करीब रहेंगे!
^ पैरा. 9 कुछ विद्वानों का कहना है कि यह करमेल पहाड़ है, जहाँ कुछ साल परमेश्वर ने एलियाह की बिनती का जवाब दिया था। इस वजह से एलियाह ने बाल के भविष्यवक्ताओं को मात दी थी। लेकिन बाइबल नहीं बताती कि यह कौन-सा पहाड़ था।