उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए | योनातान
‘यहोवा के लिए कोई बात रुकावट नहीं है’
कल्पना कीजिए कि दूर-दूर तक फैला एक सूखा चट्टानी इलाका है और उस पूरे सुनसान इलाके में सिर्फ सैनिकों की एक चौकी बनी हुई है। उसमें तैनात पलिश्ती सैनिकों को अचानक उस सुनसान इलाके में कुछ ऐसा दिखायी देता है कि उनमें सनसनी दौड़ जाती है। वे देखते हैं कि एक तंग घाटी के उस पार दो इसराएली आदमी खड़े हैं। उन्हें वहाँ देखकर पलिश्तियों को हँसी आती है। एक लंबे अरसे से पलिश्ती लोग इसराएलियों को अपने अधिकार में किए हुए हैं। इसराएलियों को अपनी खेती-बाड़ी के औज़ारों पर धार लगवाने के लिए भी पलिश्तियों के यहाँ जाना पड़ता है। इसराएली सैनिकों के पास ढंग के हथियार नहीं हैं। और अभी तो यहाँ सिर्फ दो इसराएली आदमी आए हैं। भला वे पलिश्तियों का क्या बिगाड़ सकते हैं? अगर वे हथियारों से लैस योद्धा हैं, तो भी वे कुछ नहीं कर सकते। पलिश्ती सैनिक उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं, “आओ, आओ, हम तुम्हें सबक सिखाते हैं!”—1 शमूएल 13:19-23; 14:11, 12.
वाकई अब कुछ ऐसा होनेवाला था कि उस घटना से एक सबक ज़रूर मिलता। मगर यह सबक उन इसराएली आदमियों को नहीं बल्कि पलिश्तियों को मिलता। दोनों इसराएली आदमी घाटी में उतरते हैं, उसे पार करते हैं और फिर पास की ढलान पर चढ़ने लगते हैं। यह ऐसी नुकीली चट्टान है कि उन्हें अपने हाथों और पैरों के बल ऊपर चढ़ना पड़ता है। फिर भी वे हार नहीं मानते। किसी तरह चट्टानों पर रेंगते-रेंगते सीधे पलिश्तियों की चौकी की तरफ चल पड़ते हैं। (1 शमूएल 14:13) अब पलिश्ती देख सकते हैं कि दोनों में से जो आदमी सामने है, वह हथियारों से लैस है और उसके पीछे उसका हथियार ढोनेवाला सैनिक है। वे सोचते हैं, क्या यह आदमी अपने साथ सिर्फ एक आदमी को लेकर पलिश्तियों की पूरी चौकी पर हमला करने आया है? कहीं यह पागल तो नहीं है?
नहीं, यह पागल नहीं है बल्कि एक ऐसा आदमी है जिसका विश्वास बहुत मज़बूत है। उसका नाम योनातान है। आज भी सच्चे मसीही उसकी ज़िंदगी की कहानी से काफी कुछ सीख सकते हैं। यह सच है कि हम सचमुच का कोई युद्ध नहीं करते, फिर भी हम हिम्मत से काम लेने, वफादार रहने और निस्वार्थ होने के बारे में योनातान से बहुत कुछ सीख सकते हैं, क्योंकि सच्चा विश्वास बढ़ाने के लिए ये सारे गुण होना ज़रूरी है।—यशायाह 2:4; मत्ती 26:51, 52.
वफादार बेटा और दिलेर सैनिक
योनातान पलिश्तियों की उस चौकी पर क्यों हमला करने गया, यह जानने के लिए हमें पहले योनातान की ज़िंदगी के बारे में कुछ जानना होगा। योनातान इसराएल के पहले राजा शाऊल का सबसे बड़ा बेटा था। जब शाऊल को राजा चुना गया, तब तक योनातान काफी बड़ा हो चुका था। तब उसकी उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा रही होगी। ऐसा मालूम पड़ता है कि उसका अपने पिता के साथ गहरा रिश्ता था। उसका पिता अकसर उसे अपने मन की बात बताता था। उन दिनों योनातान ने देखा कि उसका पिता न सिर्फ एक लंबा-चौड़ा, सजीला आदमी और वीर योद्धा है बल्कि एक नम्र इंसान है और उसका विश्वास बहुत मज़बूत है। योनातान समझ सकता था कि यहोवा ने क्यों शाऊल को राजा चुना। भविष्यवक्ता शमूएल ने भी कहा था कि पूरे इसराएल देश में शाऊल जैसा आदमी कहीं नहीं है।—1 शमूएल 9:1, 2, 21; 10:20-24; 20:2.
योनातान को अपने पिता की कमान के नीचे परमेश्वर के दुश्मनों से युद्ध करने में काफी गर्व महसूस हुआ होगा। वे युद्ध आज होनेवाले देश-देश के युद्धों जैसे नहीं थे। इसराएल राष्ट्र यहोवा का चुना हुआ राष्ट्र था और उनके देश पर झूठे देवताओं को पूजनेवाले देश लगातार हमला करते थे। ऐसा ही एक देश था पलिश्त। पलिश्ती लोग दागोन जैसे देवताओं को पूजने की वजह से बहुत बुरे काम करते थे। उन्होंने कई बार यहोवा के चुने हुए लोगों को सताने, यहाँ तक कि उन्हें मिटा देने की कोशिश भी की।
योनातान जैसे आदमी इसलिए युद्ध करते थे क्योंकि वे यहोवा से वफादारी निभाना चाहते थे। यहोवा ने भी योनातान को कामयाबी दिलायी। शाऊल ने राजा बनने के कुछ ही समय बाद योनातान को 1,000 सैनिकों की कमान सौंपी। योनातान उन्हें लेकर पलिश्तियों की एक चौकी पर हमला करने गिबा गया। योनातान के आदमियों के पास कोई खास हथियार नहीं थे, फिर भी यहोवा की मदद से उस दिन उसने जीत हासिल की। मगर जवाब में पलिश्तियों ने इसराएलियों पर हमला करने के लिए एक बहुत बड़ी सेना इकट्ठी की। यह देखकर शाऊल के कई सैनिक बुरी तरह डर गए। उनमें से कुछ भागकर छिप गए और कुछ तो पलिश्तियों की तरफ हो गए। मगर योनातान ने हिम्मत नहीं हारी।—1 शमूएल 13:2-7; 14:21.
लेख की शुरूआत में जिस दिन का ब्यौरा दिया गया है, उस दिन योनातान ने फैसला किया कि वह किसी को बताए बिना सिर्फ अपने हथियार ढोनेवाले सैनिक को लेकर निकल पड़ेगा। जैसे ही वे मिकमाश के पास पहुँचे, जहाँ पलिश्तियों की चौकी थी, योनातान ने अपने सैनिक को अपनी तरकीब बतायी। उसने कहा कि वे दोनों ऐसी जगह खड़े होंगे कि पलिश्तियों को साफ नज़र आएँ। अगर पलिश्ती उन्हें चुनौती देंगे कि वे उनसे लड़ने ऊपर आएँ, तो यह इस बात की निशानी होगी कि यहोवा उनकी मदद करेगा। योनातान का हथियार ढोनेवाला सैनिक फौरन राज़ी हो गया। योनातान की इस बात ने उसके अंदर जोश भर दिया होगा: “चाहे हम गिनती में थोड़े हों या ज़्यादा, यहोवा हमारे ज़रिए उद्धार दिला सकता है, उसके लिए कोई बात रुकावट नहीं है।” (1 शमूएल 14:6-10) योनातान के कहने का क्या मतलब था?
ज़ाहिर है कि योनातान अपने परमेश्वर को अच्छी तरह जानता था। उसे बेशक यह बात पता थी कि गुज़रे वक्त में भी परमेश्वर ने दुश्मनों को हराने में अपने लोगों की मदद की थी, इसके बावजूद कि दुश्मनों की गिनती उनसे कहीं ज़्यादा थी। कभी-कभी तो उसने सिर्फ एक आदमी के ज़रिए जीत दिलायी थी। (न्यायियों 3:31; 4:1-23; 16:23-30) योनातान जानता था कि यह बात कोई मायने नहीं रखती कि यहोवा के लोगों की गिनती कितनी है या उनके पास कितने हथियार हैं, बल्कि यह बात मायने रखती है कि उनमें विश्वास हो। योनातान ने विश्वास रखते हुए यह फैसला यहोवा पर छोड़ दिया कि उसे और उसके सैनिक को दुश्मनों की चौकी पर हमला करना चाहिए या नहीं। उसने एक निशानी तय की जिससे पता चलता कि पलिश्तियों पर हमला करना यहोवा को मंज़ूर है या नहीं। जब उसे मंज़ूरी मिल गयी, तो उसने निडर होकर दुश्मनों से मुकाबला किया।
योनातान के विश्वास के बारे में दो बातों पर गौर कीजिए। एक तो यह कि उसके दिल में अपने परमेश्वर यहोवा के लिए गहरा आदर था। वह जानता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपना मकसद पूरा करने के लिए इंसानी ताकत पर निर्भर नहीं रहता, पर साथ ही उसे उन लोगों को आशीष देने में खुशी होती है जो वफादारी से उसकी सेवा करते हैं। (2 इतिहास 16:9) दूसरी बात, योनातान ने कोई कदम उठाने से पहले यहोवा की मंज़ूरी जानने के लिए एक निशानी चाही। आज हम अपने परमेश्वर से कोई अलौकिक निशानी नहीं चाहते जिससे साबित हो कि हम जो करने जा रहे हैं वह उसे मंज़ूर है या नहीं। हमारे पास ईश्वर-प्रेरणा से लिखा गया पूरा शास्त्र है, इसलिए परमेश्वर की मरज़ी जानने के लिए हमें जो भी मार्गदर्शन चाहिए वह हमें उसके वचन से मिलता है। (2 तीमुथियुस 3:16, 17) हमें खुद को जाँचना चाहिए कि क्या हम कोई अहम फैसला करने से पहले बाइबल की सलाह पर अच्छी तरह ध्यान देते हैं? अगर हम ऐसा करते हैं, तो हम खुद से ज़्यादा परमेश्वर की मरज़ी को अहमियत दे रहे होंगे, ठीक जैसे योनातान ने किया था।
अब यह वीर योद्धा योनातान और उसका हथियार ढोनेवाला सैनिक, दोनों उस खड़ी चट्टान पर चढ़ते हुए पलिश्तियों की तरफ कदम बढ़ाते हैं। पलिश्ती अब समझ जाते हैं कि वे दोनों आदमी उन पर हमला करनेवाले हैं। इसलिए वे अपने आदमियों को उनसे लड़ने भेजते हैं। पलिश्ती लोग एक तो गिनती में ज़्यादा हैं और वे ऊँची जगह पर हैं, इसलिए उनके लिए दोनों आदमियों को मार गिराना बाएँ हाथ का खेल था। लेकिन हुआ यह कि योनातान एक-एक करके पलिश्तियों पर वार करने लगा और उसका सैनिक उसके पीछे-पीछे जाकर उनका घात करने लगा। थोड़ी-सी जगह पर उन दो आदमियों ने 20 दुश्मन सैनिकों को मार डाला। इसके बाद यहोवा ने कुछ और भी किया। बाइबल बताती है, “तब उन सभी पलिश्तियों में आतंक फैल गया जो चौकी में तैनात थे और जो मैदान में छावनी डाले हुए थे। यहाँ तक कि उनके लुटेरे-दलों में भी खौफ समा गया और ज़मीन काँपने लगी। इस सबके पीछे परमेश्वर का हाथ था।”—1 शमूएल 14:15.
पलिश्तियों में खौफ समा गया और ऐसी खलबली मच गयी कि वे एक-दूसरे पर ही तलवार चलाने लगे। दूर से शाऊल और उसके आदमी यह सब नज़ारा देख रहे थे। (1 शमूएल 14:16, 20) फिर इसराएलियों ने भी हिम्मत जुटायी और पलिश्तियों पर वार करने लगे। उन्होंने हमला करने के लिए घात किए गए पलिश्तियों के हथियार उठाए होंगे। उस दिन यहोवा ने अपने लोगों को बहुत बड़ी जीत दिलायी। यहोवा बदला नहीं है। अगर हम भी योनातान और उसके सैनिक की तरह, जिसका नाम बाइबल में नहीं लिखा है, यहोवा पर विश्वास रखें, तो हमें कभी निराश नहीं होना पड़ेगा।—मलाकी 3:6; रोमियों 10:11.
“उसने परमेश्वर के साथ मिलकर काम किया”
उस जीत के बाद योनातान के साथ भला हुआ मगर शाऊल के साथ भला नहीं हुआ। शाऊल ने बड़े-बड़े पाप किए। उसने यहोवा के ठहराए भविष्यवक्ता शमूएल की आज्ञा के खिलाफ जाकर एक बलिदान चढ़ा दिया जबकि वह बलिदान शमूएल को चढ़ाना था जो एक लेवी भी था। जब शमूएल बलिदान की जगह पहुँचा, तो उसने शाऊल को बताया कि उसका राज अब नहीं टिकेगा, क्योंकि उसने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी है। इसके बाद जब शाऊल ने अपने आदमियों को युद्ध करने भेजा, तो उसने बिना सोचे-समझे उनसे यह शपथ धरायी: “अगर किसी आदमी ने शाम से पहले, जब तक मैं अपने दुश्मनों से बदला नहीं ले लेता, एक निवाला भी खाया तो वह शापित हो!”—1 शमूएल 13:10-14; 14:24.
शाऊल की बातों से पता चलता है कि वह कितना बदल गया था। जो इंसान एक वक्त में बहुत नम्र था और परमेश्वर जैसी सोच रखता था, अब वह घमंडी हो गया था और उस पर बड़ा बनने का जुनून सवार हो गया था। यहोवा ने कभी यह निर्देश नहीं दिया था कि उन साहसी और मेहनती सैनिकों के साथ ऐसी ज़्यादती करके उन पर ऐसी बंदिश लगायी जाए। यह भी गौर कीजिए कि शाऊल ने कहा, “जब तक मैं अपने दुश्मनों से बदला नहीं ले लेता।” शाऊल शायद सोचने लगा कि वह अपने बलबूते युद्ध कर रहा है। वह शायद भूल गया कि यहोवा इंसाफ करने के लिए युद्ध कर रहा है, न कि शाऊल को खुद दुश्मनों से बदला लेने, किसी भी हाल में जीतने या नाम कमाने के लिए लड़ाई लड़नी है।
योनातान को अपने पिता की इस शपथ के बारे में कुछ नहीं पता था। जब वह युद्ध से लौटा, तो वह बुरी तरह पस्त था। उसने अपनी लाठी का छोर मधुमक्खी के छत्ते में डाला और थोड़ा-सा शहद चखा। शहद खाते ही उसकी जान में जान आयी। तब उसके आदमियों में से एक ने उसे बताया कि उसके पिता ने यह पाबंदी लगायी है कि कोई कुछ न खाए। तब योनातान ने कहा, “मेरा पिता देश पर बड़ा संकट ले आया है! देखो, मैंने ज़रा-सा शहद चखा और मेरी जान में जान आ गयी। अगर लोगों को दुश्मनों की लूट में से जी-भरकर खाने दिया जाता तो कितना अच्छा होता! हम और भी बड़ी तादाद में पलिश्तियों को मार डालते।” (1 शमूएल 14:25-30) योनातान ने सही कहा। हालाँकि वह शाऊल का वफादार बेटा था, मगर वह आँख मूँदकर उसकी हर बात नहीं मान लेता था। वह बिना सोचे-समझे अपने पिता की हर बात या हर काम को सही नहीं ठहराता था, इसलिए लोग उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे।
जब शाऊल को पता चला कि योनातान ने उसकी आज्ञा तोड़ दी है, तो भी उसने यह मानने से इनकार कर दिया कि उसने ऐसी पाबंदी लगाकर मूर्खता का काम किया है। उलटा उसने कहा कि उसके बेटे को मौत की सज़ा मिलनी चाहिए। तब योनातान ने शाऊल से न बहस किया, न ही उससे रहम की भीख माँगी। गौर कीजिए कि उसने अपनी जान की परवाह किए बिना क्या कहा: “मैं मरने के लिए तैयार हूँ!” मगर तभी इसराएली उसकी तरफ से बोल उठे, “क्या योनातान मार डाला जाएगा जिसने इसराएल को इतनी बड़ी जीत दिलायी है? नहीं, यह हरगिज़ नहीं हो सकता! यहोवा के जीवन की शपथ, उसका बाल भी बाँका नहीं होगा क्योंकि उसने आज के दिन परमेश्वर के साथ मिलकर काम किया है।” नतीजा क्या हुआ? शाऊल मान गया। बाइबल कहती है, “ऐसा कहकर लोगों ने योनातान को बचा लिया और उसे मौत की सज़ा नहीं दी गयी।”—1 शमूएल 14:43-45.
योनातान एक हिम्मतवाला और मेहनती आदमी था और उसमें बिलकुल स्वार्थ नहीं था। इसलिए उसने लोगों में एक अच्छा नाम कमाया। जब उसकी जान को खतरा हुआ, तो उसकी नेकनामी काम आयी। हमें भी खुद पर ध्यान देना चाहिए कि हम दिन-ब-दिन कैसा नाम कमा रहे हैं। बाइबल बताती है कि एक अच्छा नाम अनमोल होता है। (सभोपदेशक 7:1) अगर हम भी योनातान की तरह इस बात का ध्यान रखें कि हम यहोवा की नज़र में कैसा नाम कमा रहे हैं, तो हमारी नेकनामी हमारे लिए एक अनमोल खज़ाना साबित होगी।
बुरा रवैया
शाऊल की खामियों के बावजूद, योनातान बरसों तक अपने पिता का वफादार रहा और उसके साथ मिलकर युद्ध करता रहा। हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब उसने अपने पिता में घमंडी और बगावती रवैया पनपते देखा, तो उसे कितना दुख हुआ होगा। वह साफ देख सकता था कि उसका पिता गलत राह पर निकल पड़ा है, मगर वह उसे रोक नहीं सकता था।
फिर एक वक्त ऐसा आया कि शाऊल ने बगावत करने में हद कर दी। यहोवा ने उससे कहा था कि वह जाकर अमालेकियों से युद्ध करे। अमालेकी लोग इतने दुष्ट थे कि यहोवा ने सदियों पहले मूसा के दिनों में ही भविष्यवाणी की थी कि पूरी अमालेकी जाति का नाश कर दिया जाएगा। (निर्गमन 17:14) शाऊल से कहा गया कि वह अमालेकियों के सभी जानवरों का नाश कर दे और उनके राजा अगाग को मार डाले। शाऊल जब अमालेकियों से युद्ध करने गया तो वह जीत गया, क्योंकि योनातान ने हमेशा की तरह अपने पिता की कमान के नीचे बड़ी हिम्मत से लड़ाई लड़ी। मगर शाऊल ने गुस्ताखी करते हुए यहोवा की आज्ञा नहीं मानी। उसने अगाग को ज़िंदा छोड़ दिया और अमालेकियों की जायदाद यानी उनके जानवरों का भी नाश नहीं किया। तब भविष्यवक्ता शमूएल ने शाऊल को यहोवा का अंतिम फैसला सुनाया: “तूने यहोवा की आज्ञा ठुकरा दी है, इसलिए उसने तुझे भी ठुकरा दिया है कि तू राजा न रहे।—1 शमूएल 15:2, 3, 9, 10, 23.
इसके कुछ समय बाद यहोवा ने शाऊल से अपनी पवित्र शक्ति हटा दी। अब यहोवा का साया शाऊल पर नहीं रहा, इसलिए अचानक उसका मिज़ाज बदल जाता और वह अजीबो-गरीब हरकतें करने लगता, गुस्से से भड़क उठता और उस पर डर हावी हो जाता था। परमेश्वर ने उस पर एक बुरी फितरत हावी होने दी। (1 शमूएल 16:14; 18:10-12) योनातान को यह देखकर कितना दुख हुआ होगा कि उसका पिता, जो एक वक्त में एक इज़्ज़तदार आदमी था, अब कितने बुरे हाल में है। फिर भी योनातान यहोवा का वफादार रहा और उसका कहा मानता रहा। उसने अपने पिता का साथ देने के लिए अपनी तरफ से जो बन पड़ता वह किया और कभी-कभी उसे साफ-साफ समझाया भी कि वह गलत कर रहा है। पर इस पूरे दौर में योनातान ने अपना ध्यान अपने पिता और परमेश्वर यहोवा पर लगाया जो कभी बदलता नहीं।—1 शमूएल 19:4, 5.
क्या आपने कभी अपने परिवार के किसी सदस्य को या किसी जिगरी दोस्त को बदलकर एक बुरा इंसान बनते देखा है? यह बड़ा ही दर्दनाक अनुभव हो सकता है। योनातान की कहानी हमें भजन के एक लेखक की यह बात दिलाती है: “चाहे मेरे माता-पिता मुझे छोड़ दें, फिर भी यहोवा मुझे अपना लेगा।” (भजन 27:10) यहोवा एक वफादार परमेश्वर है। अपरिपूर्ण इंसान चाहे आपको अपने बरताव से निराश कर दें, मगर यहोवा आपको थाम लेगा और एक पिता के नाते आपको इतना प्यार देगा कि आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।
योनातान को ज़रूर यह बात पता चली होगी कि यहोवा ने फैसला किया है कि वह शाऊल से राज करने का अधिकार ले लेगा। तब योनातान को कैसा लगा होगा? क्या उसने सोचा होगा कि शाऊल के बाद मैं कैसा राजा साबित होऊँगा? क्या उसने सोचा होगा कि उसके पिता ने जो तबाही मचायी थी, उसका सुधार करने के लिए वह कुछ कदम उठाएगा और एक वफादार और आज्ञाकारी राजा बनेगा? हम नहीं जानते कि उसने मन में क्या-क्या सोचा होगा। हम इतना ज़रूर जानते हैं कि अगर उसने राजा बनने की उम्मीद की होगी, तो वह पूरी नहीं हुई। क्या इसका यह मतलब है कि यहोवा ने उस वफादार इंसान को ठुकरा दिया था? ऐसी बात नहीं है। इसके बजाय, यहोवा ने योनातान को मौका दिया कि एक वफादार दोस्त होने की बढ़िया मिसाल कायम करे। बाइबल में सच्चे दोस्तों की जो बेहतरीन मिसालें दर्ज़ हैं, उनमें से एक योनातान की है। योनातान के बारे में एक और लेख में इसी दोस्ती की बात की जाएगी।