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गीत १२२

निर्भय व निश्‍चयी राहा!

निर्भय व निश्‍चयी राहा!

(१ करिंथकर १५:५८)

  1. १. घे-र-ले भी-ती-ने लो-कां ज-गी,

    भा-वी का-ळा-ची चिं-ता त्यां छ-ळी.

    रा-हु-नी आ-पण नि-र्भय, नि-श्‍च-यी,

    चा-लू या-हा-सो-ब-ती.

    (कोरस)

    रा-हू नि-र्भय, नि-श्‍च-यी,

    अं-ता-च्या या स-म-यी,

    ना-का-रु-नी ज-गा,

    स-त्या कव-टा-ळु-नी!

  2. २. रं-ग मन-मो-हक दुनि-ये-चे कि-ती!

    आ-ठ-व ठे-वू स-दा हा म-नी,

    ऐ-क-ता वा-णी य-हो-वा-ची, तो

    वा-च-वेल पा-शां-तु-नी.

    (कोरस)

    रा-हू नि-र्भय, नि-श्‍च-यी,

    अं-ता-च्या या स-म-यी,

    ना-का-रु-नी ज-गा,

    स-त्या कव-टा-ळु-नी!

  3. ३. हो-उ-नी क-ष्टा-ळू का-म-क-री,

    या-हा-ची से-वा क-रू या पु-री.

    रा-बू या का-प-णीत आ-वे-शा-ने,

    ये-ती-ल दिन सौ-ख्या-चे!

    (कोरस)

    रा-हू नि-र्भय, नि-श्‍च-यी,

    अं-ता-च्या या स-म-यी,

    ना-का-रु-नी ज-गा,

    स-त्या कव-टा-ळु-नी!

(लूक २१:९; १ पेत्र ४:७ ही वचनंसुद्धा पाहा.)