गीत १२२
निर्भय व निश्चयी राहा!
१. घे-र-ले भी-ती-ने लो-कां ज-गी,
भा-वी का-ळा-ची चिं-ता त्यां छ-ळी.
रा-हु-नी आ-पण नि-र्भय, नि-श्च-यी,
चा-लू या-हा-सो-ब-ती.
(कोरस)
रा-हू नि-र्भय, नि-श्च-यी,
अं-ता-च्या या स-म-यी,
ना-का-रु-नी ज-गा,
स-त्या कव-टा-ळु-नी!
२. रं-ग मन-मो-हक दुनि-ये-चे कि-ती!
आ-ठ-व ठे-वू स-दा हा म-नी,
ऐ-क-ता वा-णी य-हो-वा-ची, तो
वा-च-वेल पा-शां-तु-नी.
(कोरस)
रा-हू नि-र्भय, नि-श्च-यी,
अं-ता-च्या या स-म-यी,
ना-का-रु-नी ज-गा,
स-त्या कव-टा-ळु-नी!
३. हो-उ-नी क-ष्टा-ळू का-म-क-री,
या-हा-ची से-वा क-रू या पु-री.
रा-बू या का-प-णीत आ-वे-शा-ने,
ये-ती-ल दिन सौ-ख्या-चे!
(कोरस)
रा-हू नि-र्भय, नि-श्च-यी,
अं-ता-च्या या स-म-यी,
ना-का-रु-नी ज-गा,
स-त्या कव-टा-ळु-नी!
(लूक २१:९; १ पेत्र ४:७ ही वचनंसुद्धा पाहा.)