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ଅଧ୍ୟୟନ ଲେଖା ୩

ଯୀଶୁଙ୍କ ଆଖିର ଲୁହ ମଧ୍ୟ ଆମକୁ ବହୁତ କିଛି ଶିଖାଇଲା !

ଯୀଶୁଙ୍କ ଆଖିର ଲୁହ ମଧ୍ୟ ଆମକୁ ବହୁତ କିଛି ଶିଖାଇଲା !

“ଯୀଶୁ କାନ୍ଦିଲେ ।”​ଯୋହ. ୧୧:୩୫.

ଗୀତ ୧୭ मैं चाहता हूँ

ଲେଖାର ଝଲକ a

୧-୩. ଆମେ ହୁଏତ କାହିଁକି କାନ୍ଦିଥାଉ ?

 आप पिछली बार कब रोए थे? कभी-कभी हम इतने खुश होते हैं कि हमारे आँसू छलक पड़ते हैं। लेकिन अकसर हम तब रोते हैं जब हम बहुत दुखी होते हैं, खासकर जब हमारे किसी अपने की मौत हो जाती है। अमरीका में रहनेवाली एक बहन लौरल ने कहा, “मेरी बेटी की मौत के बाद कई बार मुझे लगता था कि मैं यह गम बरदाश्‍त नहीं कर पाऊँगी। मेरे आँसू रुकने का नाम ही नहीं लेते थे। मैं सोचती थी कि क्या मेरा यह दर्द कभी कम हो पाएगा।” b

हम किसी और वजह से भी रोने लग सकते हैं। जापान में रहनेवाली एक पायनियर बहन हीरोमी बताती है, “कई बार जब लोग प्रचार में मेरी नहीं सुनते, तो मैं बहुत निराश हो जाती हूँ। इस बारे में यहोवा से प्रार्थना करते वक्‍त, मेरी आँखों में आँसू भर आते हैं। मैं उससे मिन्‍नतें करती हूँ कि वह मुझे किसी ऐसे व्यक्‍ति से मिलवाए, जो सच्चाई सीखना चाहता है।”

शायद हममें से कई लोग इन बहनों की तरह महसूस करें। (1 पत. 5:9) हम “खुशी-खुशी यहोवा की सेवा” करना चाहते हैं, लेकिन कई बार हम ऐसा नहीं कर पाते। हो सकता है हमारे किसी अपने की मौत हो जाए, हम निराश हो जाएँ या हम ऐसे हालात से गुज़रें जिनमें यहोवा का वफादार रहना हमारे लिए मुश्‍किल हो। (भज. 6:6; 100:2) ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?

୪. ଏହି ଲେଖାରେ ଆମେ କʼଣ ଆଲୋଚନା କରିବା ?

ऐसे में हम यीशु के उदाहरण से सीख सकते हैं। वह ऐसे कई हालात से गुज़रा, जिनमें उसके “आँसू बहने लगे।” (यूह. 11:35; लूका 19:41; 22:44; इब्रा. 5:7) इस लेख में हम उन हालात के बारे में चर्चा करेंगे और जानेंगे कि उनसे हम यहोवा और यीशु के बारे में क्या सीख सकते हैं। हम यह भी चर्चा करेंगे कि जब हम ऐसे हालात से गुज़रते हैं, तो हम क्या कर सकते हैं।

ନିଜ ସାଙ୍ଗମାନଙ୍କ ପାଇଁ କାନ୍ଦିଲେ

यीशु की तरह, शोक मनानेवालों को सहारा दीजिए (पैराग्राफ 5-9 पढ़ें) e

୫. ଯୋହନ ୧୧:୩୨-୩୬ ପଦରୁ ଯୀଶୁଙ୍କ ବିଷୟରେ କʼଣ ଜଣାପଡ଼େ ?

लाज़र और उसकी दो बहनें, मारथा और मरियम, यीशु के अच्छे दोस्त थे। ईसवी सन्‌ 32 की सर्दियों में लाज़र बीमार पड़ गया और उसकी मौत हो गयी। (यूह. 11:3, 14) इससे दोनों बहनों को लगा कि उनकी दुनिया ही उजड़ गयी। जब यीशु बैतनियाह गाँव के पास पहुँचा, तो मारथा दौड़कर उससे मिलने गयी। उसने कहा, “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” (यूह. 11:21) ज़रा सोचिए, यह बात कहते वक्‍त मारथा पर क्या बीती होगी! फिर जब यीशु ने मरियम और दूसरों को रोते देखा, तो ‘उसके आँसू बहने लगे।’​—यूहन्‍ना 11:32-36 पढ़िए।

୬. ଯୀଶୁ କାହିଁକି କାନ୍ଦିଲେ ?

यीशु क्यों रो पड़ा? इंसाइट किताब में लिखा है, “अपने करीबी दोस्त लाज़र की मौत की वजह से और उसकी बहनों को मातम मनाते देखकर, यीशु ने ‘गहरी आह भरी और उसके आँसू बहने लगे।’” c शायद उसने सोचा होगा कि लाज़र अपनी बीमारी की वजह से कितने दर्द में रहा होगा और आखिरी साँसें लेते वक्‍त उसे कैसा लगा होगा। इतना ही नहीं, जब उसने देखा कि मारथा और मरियम अपने भाई की मौत की वजह से कितने दुख में हैं, तो वह अपने आँसू रोक नहीं पाया। अगर आपने अपने किसी दोस्त या परिवारवाले को खोया है, तो आपने भी ज़रूर ऐसा ही दुख महसूस किया होगा। आइए देखें कि इस घटना से हम कौन-सी तीन बातें सीख सकते हैं।

୭. ଯୀଶୁ ନିଜ ସାଙ୍ଗମାନଙ୍କ ପାଇଁ କାନ୍ଦିଲେ, ଏଥିରୁ ଯିହୋବାଙ୍କ ବିଷୟରେ କʼଣ ଜଣାପଡ଼େ ?

यहोवा जानता है कि आप पर क्या बीत रही है। यीशु अपने पिता की “हू-ब-हू छवि है।” (इब्रा. 1:3) उसे वैसा ही महसूस होता है, जैसा यहोवा को होता है। इसलिए यीशु का रोना दिखाता है कि किसी की मौत पर यहोवा को भी बहुत दुख होता है। (यूह. 14:9) अगर आपके किसी अपने की मौत हो गयी है, तो आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा न सिर्फ आपकी तकलीफ देखता है, बल्कि उसे महसूस भी करता है। यही नहीं, वह आपका दर्द दूर करना चाहता है।​—भज. 34:18; 147:3.

୮. ମାର୍ଥାଙ୍କ ଭଳି ଆପଣ କାହିଁକି ଭରସା କରିପାରିବେ ଯେ ଆମ ନିଜ ଲୋକମାନଙ୍କୁ ଯେଉଁମାନଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁ ହୋଇଯାଇଛି, ଯୀଶୁ ପୁଣିଥରେ ଜୀବିତ କରିବେ ?

यीशु आपके अज़ीज़ों को ज़िंदा करना चाहता है। गौर कीजिए कि रोने से पहले यीशु ने मारथा से क्या कहा। उसने मारथा को यकीन दिलाया, “तेरा भाई ज़िंदा हो जाएगा।” मारथा ने इस बात पर यकीन किया। (यूह. 11:23-27) वह सालों से परमेश्‍वर की सेवा कर रही थी, इसलिए वह जानती थी कि सदियों पहले यहोवा के भविष्यवक्‍ता एलियाह और एलीशा ने मरे हुओं को ज़िंदा किया था। (1 राजा 17:17-24; 2 राजा 4:32-37) उसने यह भी सुना होगा कि यीशु ने कुछ लोगों को ज़िंदा किया है। (लूका 7:11-15; 8:41, 42, 49-56) मारथा की तरह आप भी यकीन रख सकते हैं कि आप अपने अज़ीज़ों से दोबारा ज़रूर मिलेंगे। यीशु ने गम में डूबे अपने दोस्तों को न सिर्फ दिलासा दिया, बल्कि वह उनके साथ रोया भी। यह इस बात का सबूत है कि वह मरे हुओं को ज़िंदा करने के लिए बेताब है।

୯. ମୃତ୍ୟୁର ଶୋକରେ ଥିବା ଲୋକମାନଙ୍କୁ ଆପଣ କିପରି ସାହାଯ୍ୟ କରିପାରିବେ ? ଗୋଟିଏ ଉଦାହରଣ ଦେଇ ବୁଝାନ୍ତୁ ।

आप शोक मनानेवालों को सहारा दे सकते हैं। यीशु न सिर्फ मारथा और मरियम के साथ रोया, बल्कि उसने उनकी सुनी और उनसे प्यार से बात की, उनकी हिम्मत बँधायी। हम भी शोक मनानेवालों को सहारा दे सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाला डैन नाम का प्राचीन बताता है, “जब मेरी पत्नी की मौत हुई, तो मुझे सहारे की बहुत ज़रूरत थी। कई भाई और उनकी पत्नियाँ सुबह-शाम मुझसे मिलने आते थे और मेरी ध्यान से सुनते थे। उन्होंने मुझे रोने से नहीं रोका, न ही मुझे रोता देखकर उन्हें अजीब लगा। कई बार जब मुझसे घर के काम नहीं हो पाते थे, तो वे मेरी मदद करते थे। जैसे, वे मेरी गाड़ी धोते थे, खरीदारी करते थे और मेरे लिए खाना बनाते थे। वे मेरे साथ बार-बार प्रार्थना करते थे। वे मेरे सच्चे दोस्त थे और ‘मुसीबत की घड़ी में भाई बन गए थे।’”​—नीति. 17:17.

ଲୋକମାନଙ୍କ ପାଇଁ କାନ୍ଦିଲେ

୧୦. ଲୂକ ୧୯:୩୬-୪୦ ପଦରେ କେଉଁ ଘଟଣା ବିଷୟରେ କୁହାଯାଇଛି ?

୧୦ ईसवी सन्‌ 33 के नीसान 9 को यीशु यरूशलेम के पास पहुँचा। उसने देखा कि लोगों की भीड़ उसके आगे-आगे रास्ते पर अपने कपड़े बिछा रही है और एक राजा की तरह उसका स्वागत कर रही है। यह सच में बड़ी खुशी का मौका था। (लूका 19:36-40 पढ़िए।) लेकिन इसके तुरंत बाद यीशु ने जो किया, वह देखकर चेले हैरान रह गए होंगे। “जब [यीशु] शहर के करीब पहुँचा, तो वह शहर को देखकर रोने लगा” और उसने बताया कि यरूशलेम के लोगों के साथ क्या-क्या बुरा होगा।​—लूका 19:41-44.

୧୧. ଯୀଶୁ ଯିରୂଶାଲମର ଲୋକମାନଙ୍କ ପାଇଁ କାହିଁକି କାନ୍ଦିଲେ ?

୧୧ यीशु जानता था कि भले ही लोग अभी खुशी-खुशी उसका स्वागत कर रहे हैं, पर आगे चलकर उनमें से ज़्यादातर लोग उसका संदेश नहीं सुनेंगे और उसे ठुकरा देंगे। इसी वजह से यरूशलेम का नाश होगा और बचे हुए यहूदियों को बंदी बनाकर ले जाया जाएगा। यह सब सोचकर यीशु रोने लगा। (लूका 21:20-24) यीशु ने जो कहा, वही हुआ। बहुत-से लोगों ने उसके संदेश पर ध्यान नहीं दिया। हो सकता है कि हमारे इलाके के ज़्यादातर लोग भी राज का संदेश न सुनें। अगर ऐसा है, तो आइए इस घटना से तीन बातें सीखें।

୧୨. ଯୀଶୁ ଲୋକମାନଙ୍କ ପାଇଁ କାନ୍ଦିଲେ, ଏଥିରୁ ଯିହୋବାଙ୍କ ବିଷୟରେ କʼଣ ଜଣାପଡ଼େ ?

୧୨ यहोवा को लोगों की परवाह है। यीशु ने लोगों के लिए आँसू बहाए, इससे पता चलता है कि यहोवा को लोगों की कितनी परवाह है। “वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो बल्कि यह कि सबको पश्‍चाताप करने का मौका मिले।” (2 पत. 3:9) यहोवा की तरह हमें भी लोगों की परवाह है। हम अपने पड़ोसियों से प्यार करते हैं, इसलिए हम उन्हें खुशखबरी सुनाने की पूरी कोशिश करते हैं।​—मत्ती 22:39. d

यीशु की तरह, अलग-अलग समय पर लोगों से मिलने के लिए तैयार रहिए (पैराग्राफ 13-14 पढ़ें) f

୧୩-୧୪. (କ) ଯୀଶୁ ଲୋକମାନଙ୍କ ପ୍ରତି କିପରି ଦୟା ଦେଖାଇଲେ ? (ଖ) ଆମେ ଏହି ଗୁଣ ନିଜଠାରେ କିପରି ବଢ଼ାଇପାରିବା ?

୧୩ यीशु ने बहुत मेहनत से प्रचार किया। यीशु का दिल लोगों के लिए प्यार और करुणा से भरा था। इसलिए वह लोगों को सिखाने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देता था। (लूका 19:47, 48) कई बार ‘यीशु और उसके चेले खाना तक नहीं खा’ पाते थे, क्योंकि उसकी बात सुनने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी। (मर. 3:20) उसने रात को भी दूसरों को सिखाने के लिए वक्‍त निकाला। (यूह. 3:1, 2) यीशु ने जिन लोगों को खुशखबरी सुनायी उनमें से ज़्यादातर उसके चेले नहीं बने। लेकिन उसने हरेक को अच्छी तरह गवाही दी। आज हम भी ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों से मिलना चाहते हैं और उन्हें अच्छी तरह गवाही देना चाहते हैं। (प्रेषि. 10:42) लेकिन शायद इसके लिए हमें कुछ फेरबदल करने पड़ें।

୧୪ हमें फेरबदल करने चाहिए। हमें अलग-अलग समय पर गवाही देनी चाहिए, तभी हम ऐसे लोगों से मिल पाएँगे जो सचमुच खुशखबरी सुनना चाहते हैं। मटिल्डा नाम की एक पायनियर बहन कहती है, “मैं और मेरे पति अलग-अलग समय पर लोगों से मिलते हैं। सुबह-सुबह हम बाज़ारों में प्रचार करते हैं। दोपहर को हम कार्ट लगाते हैं, क्योंकि उस वक्‍त ज़्यादातर लोग बाहर होते हैं। और शाम को हम घर-घर का प्रचार करते हैं, क्योंकि तब लोग घर पर होते हैं।” इससे हम सीखते हैं कि हमें अपने समय के मुताबिक नहीं, बल्कि लोगों के समय के मुताबिक प्रचार करना चाहिए। तभी हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों से मिल पाएँगे और यहोवा हमारी मेहनत देखकर खुश होगा।

ନିଜ ପିତାଙ୍କ ନାମ ପାଇଁ କାନ୍ଦିଲେ

यीशु की तरह, मुश्‍किल घड़ी में यहोवा से मिन्‍नतें कीजिए (पैराग्राफ 15-17 पढ़ें) g

୧୫. ଲୂକ ୨୨:୩୯-୪୪ ପଦ ଅନୁସାରେ, ନୀସନ୍‌ ମାସର ୧୪ ତାରିଖ ରାତିରେ କʼଣ ହେଲା ?

୧୫ ईसवी सन्‌ 33 के नीसान 14 की रात को यीशु गतसमनी बाग में गया। वह यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात थी और वह बहुत तनाव में था। (लूका 22:39-44 पढ़िए।) इसलिए “उसने ऊँची आवाज़ में पुकार-पुकारकर और आँसू बहा-बहाकर परमेश्‍वर से मिन्‍नतें” कीं। (इब्रा. 5:7) यीशु, यहोवा का वफादार रहना चाहता था और उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता था, इसलिए उसने यहोवा से हिम्मत माँगी। यहोवा ने अपने बेटे की मिन्‍नतें सुनीं और उसकी हिम्मत बँधाने के लिए एक स्वर्गदूत को भेजा।

୧୬. ଯୀଶୁ ନିଜ ଜୀବନର ଶେଷ ରାତିରେ କାହିଁକି କାନ୍ଦିଲେ ?

୧୬ यीशु अपने पिता के नाम का अपमान करने की कभी सोच भी नहीं सकता था, लेकिन बहुत जल्द लोग उस पर यही इलज़ाम लगानेवाले थे। इस बारे में सोचकर यीशु रोने लगा। उसके रोने की एक और वजह थी। उस पर यहोवा के नाम की महिमा करने की बड़ी ज़िम्मेदारी थी। लेकिन इसके लिए उसे दर्दनाक मौत सहनी थी और अंत तक वफादार रहना था। अगर आप भी ऐसे हालात से गुज़र रहे हैं, जिनमें यहोवा का वफादार रहना आपके लिए मुश्‍किल हो रहा है, तो आप क्या कर सकते हैं? आइए इस घटना से तीन बातें सीखें।

୧୭. ଯିହୋବା ଯୀଶୁଙ୍କ ପ୍ରାର୍ଥନା କାହିଁକି ଶୁଣିଲେ ଏବଂ ଏଥିରୁ ଆମକୁ ଯିହୋବାଙ୍କ ବିଷୟରେ କʼଣ ଜଣାପଡ଼େ ?

୧୭ यहोवा आपकी मिन्‍नतें सुनेगा। उसने यीशु की भी मिन्‍नतें सुनी थीं, क्योंकि यीशु अपने पिता का वफादार रहना चाहता था और उसके नाम की महिमा करना चाहता था। अगर हमारी भी यही इच्छा होगी, तो मुश्‍किल की घड़ी में जब हम उसे पुकारेंगे, वह हमारी ज़रूर सुनेगा।​—भज. 145:18, 19.

୧୮. ଆମେ କାହିଁକି କହିପାରିବା ଯେ ଯୀଶୁ ଆମ ଦୁଃଖ ବୁଝନ୍ତି ?

୧୮ यीशु आपका दर्द समझता है। वह एक ऐसे दोस्त की तरह है, जो हमें तसल्ली और हिम्मत दे सकता है। क्यों? वह उन्हीं हालात से गुज़रा है जिनसे हम गुज़रते हैं। इसलिए वह हमारी तकलीफ अच्छी तरह समझता है। वह जानता है कि जब हम बेबस होते हैं, तो कैसा लगता है। वह हमारी कमज़ोरियाँ भी जानता है। वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि हमें “सही वक्‍त पर” मदद मिले। (इब्रा. 4:15, 16) जिस तरह यीशु ने गतसमनी बाग में स्वर्गदूत की मदद स्वीकार की, उसी तरह हमें यहोवा से मिलनेवाली मदद स्वीकार करनी चाहिए। यहोवा कई तरीकों से हमारी मदद करता है, जैसे किसी प्राचीन या मंडली के किसी भाई-बहन के ज़रिए, या किताबों-पत्रिकाओं, वीडियो या भाषण के ज़रिए।

୧୯. ଜଣେ ଭଉଣୀଙ୍କ ଉଦାହରଣ ଦେଇ ବୁଝାନ୍ତୁ ଯେ ଆପଣ ସମସ୍ୟା ସମୟରେ କʼଣ କରିପାରିବେ ।

୧୯ यहोवा आपको शांति देगा। मुश्‍किल की घड़ी में जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हमें ‘परमेश्‍वर की वह शांति मिलती है जो समझ से परे है।’ (फिलि. 4:6, 7) इस शांति की वजह से हमारी बेचैनी दूर होती है और हम सही तरीके से सोच पाते हैं। बहन लोइस के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। वह कहती है, “मैं कई बार अकेलापन महसूस करती हूँ और मुझे लगता है कि यहोवा मुझसे प्यार नहीं करता। लेकिन जब भी ऐसा होता है, मैं तुरंत यहोवा से प्रार्थना करती हूँ और उसे अपने दिल की बात बताती हूँ। इससे मेरी बेचैनी दूर हो जाती है।” बहन लोइस से हम सीखते हैं कि प्रार्थना करने से हमें मन की शांति मिल सकती है।

୨୦. ଏହି ଲେଖାରୁ ଆମେ କʼଣ ଶିଖିଲୁ ?

୨୦ जिन-जिन मौकों पर यीशु रोया, उनसे हमने बहुत कुछ सीखा! हमने सीखा कि हमें मातम मनानेवालों को सहारा देना चाहिए और जब भी हमारे किसी अपने की मौत होती है, तो हमें भरोसा रखना चाहिए कि यहोवा और यीशु हमें दिलासा देंगे। हमें इस बात का भी बढ़ावा मिला कि हम यहोवा और यीशु की तरह लोगों पर करुणा करें, तभी हम उन्हें अच्छी तरह गवाही दे पाएँगे और सिखा पाएँगे। हमें यह जानकर भी अच्छा लगा कि यहोवा और यीशु हमारा दर्द समझते हैं, हमारी कमज़ोरियाँ जानते हैं और हमारी मदद करना चाहते हैं। जब तक यहोवा हमारी “आँखों से हर आँसू पोंछ” नहीं देता, तब तक आइए हम इस लेख से सीखी बातों को मानते रहें।​—प्रका. 21:4.

ଗୀତ ୧୨୦ यीशु जैसे कोमल बनें

[फुटनोट]

a बाइबल में बताया गया है कि कई मौकों पर यीशु अपने आँसू रोक नहीं पाया। हम उनमें से तीन मौकों के बारे में चर्चा करेंगे और जानेंगे कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं।

b कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

d मत्ती 22:39 में लिखे यूनानी शब्द “पड़ोसी” का मतलब सिर्फ पड़ोस में रहनेवाले लोग नहीं, बल्कि वे लोग भी हो सकते हैं जिनसे हम मिलते हैं।

e तसवीर के बारे में: यीशु ने मारथा और मरियम का दुख देखकर उन्हें दिलासा दिया। हम भी शोक मनानेवालों को दिलासा दे सकते हैं।

f तसवीर के बारे में: यीशु नीकुदेमुस को रात में सिखाने के लिए तैयार था। हमें लोगों के समय के मुताबिक उनका अध्ययन कराना चाहिए।

g तसवीर के बारे में: यीशु, यहोवा का वफादार रहना चाहता था, इसलिए उसने यहोवा से हिम्मत माँगी। हमें भी मुश्‍किल के वक्‍त ऐसा करना चाहिए।