अध्ययन लेख 17
अचानक मुसीबतूं अचण ते यहोवा तव्हां खे संभालींदो!
“नेक जन पर बहुत-सी विपत्तियाँ तो आती हैं, मगर यहोवा उसे उन सबसे छुड़ाता है।”—भज. 34:19.
गीत 44 दुखियारे की प्रार्थना
एक झलक a
1. असां खे कहिड़ी ॻाल्हि जो यकीन आहे?
हम यहोवा के लोग हैं, इसलिए हमें यकीन है कि वह हमसे प्यार करता है और चाहता है कि हम खुश रहें और अच्छी ज़िंदगी जीएँ। (रोमि. 8:35-39) हमें यह भी यकीन है कि अगर हम बाइबल के सिद्धांतों के हिसाब से जीएँगे, तो हमारा भला होगा। (यशा. 48:17, 18) लेकिन कई बार हम पर ऐसी मुसीबतें आ पड़ती हैं जिनके बारे में शायद हमने कभी सोचा भी नहीं था। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?
2. शायद असां खे कहिड़ियुनि मुश्किलुनि जो सामनो करणो पवे? ऐं उन वक्त असां छा सोचे सघूं था?
2 यहोवा के सभी सेवकों को किसी-न-किसी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। जैसे हो सकता है, हमारे परिवार का कोई सदस्य कुछ ऐसा कर दे जिससे हमें दुख पहुँचे। शायद हमें कोई बीमारी हो जिस वजह से हम यहोवा की सेवा ज़्यादा ना कर पा रहे हों। हो सकता है, हम किसी प्राकृतिक विपत्ति की मार झेल रहे हों या हम जो मानते हैं, उस वजह से हमें सताया जा रहा हो। जब हम ऐसी किसी मुश्किल का सामना करते हैं, तो शायद हम सोचने लगें, ‘मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मैंने ऐसा क्या गलत कर दिया? कहीं यहोवा मुझसे नाराज़ तो नहीं?’ क्या आपके मन में भी कभी ऐसे खयाल आए हैं? अगर हाँ, तो निराश मत होइए। यहोवा के और भी कई वफादार सेवकों को ऐसा ही लगा था।—भज. 22:1, 2; हब. 1:2, 3.
3. असां भजन 34:19 मां छा सिखूं था?
3 भजन 34:19 पढ़िए। इस भजन में खासकर दो बातें बतायी गयी हैं: (1) नेक लोगों पर भी मुश्किलें आती हैं और (2) यहोवा हमें मुश्किलों से छुड़ाता है। वह हमें कैसे छुड़ाता है? उसने हमें बताया है कि इस दुनिया में हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हमारे साथ हमेशा अच्छा ही होगा। वह हमसे यह वादा तो करता है कि उसकी सेवा करने से हमें खुशी मिलेगी, लेकिन वह इस बात की गारंटी नहीं देता कि हम पर कभी कोई मुसीबत नहीं आएगी। (यशा. 66:14) यहोवा चाहता है कि हम भविष्य के बारे में सोचें, उस वक्त के बारे में जब वह हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा और हम हमेशा खुश रहेंगे। (2 कुरिं. 4:16-18) पर तब तक वह हमारी मदद कर रहा है ताकि हम हिम्मत ना हारें और उसकी सेवा करते रहें।—विला. 3:22-24.
4. हिन लेख में असां छा सिखंदासीं?
4 आइए जानें कि हम यहोवा के वफादार सेवकों से क्या सीख सकते हैं। हम बीते ज़माने के कुछ लोगों और हमारे दिनों के कुछ भाई-बहनों के उदाहरणों पर ध्यान देंगे। हम जानेंगे कि कभी-कभी अचानक हम पर कोई मुश्किल आ सकती है, लेकिन ऐसे में भी जब हम यहोवा पर भरोसा रखेंगे तो वह हमें ज़रूर सँभालेगा। (भज. 55:22) जब हम इन उदाहरणों पर चर्चा करेंगे तो सोचिए, ‘अगर मेरे हालात भी ऐसे ही होते, तो मैं क्या करता? इस उदाहरण पर ध्यान देने से यहोवा पर मेरा भरोसा कैसे बढ़ा है? इससे मैं और क्या सीख सकता हूँ?’
पुराणे ज़माने जा माण्हू
5. लाबान जे करे याकूब खे छा सहणो पयो? (ॿाहिर ॾिनल तसवीर ॾिसो.)
5 यहोवा के कई सेवकों को ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जिनका कभी उनके मन में खयाल भी नहीं आया था। ज़रा याकूब के बारे में सोचिए। उसके पिता ने उससे कहा कि वह अपने एक रिश्तेदार लाबान के घर जाए जो यहोवा का सेवक है और उसकी एक बेटी से शादी करे। उसने उसे यकीन दिलाया कि ऐसा करने से यहोवा उसे ढेरों आशीषें देगा। (उत्प. 28:1-4) याकूब ने अपने पिता की बात मानी। वह कनान छोड़कर लाबान के घर के लिए निकल पड़ा। लाबान की दो बेटियाँ थीं, लिआ और राहेल। याकूब को उसकी छोटी बेटी राहेल से प्यार हो गया और वह उससे शादी करना चाहता था। इसके लिए वह लाबान के यहाँ सात साल काम करने को तैयार हो गया। (उत्प. 29:18) लेकिन याकूब ने जैसा सोचा था, वैसा नहीं हुआ। सात साल पूरे होने पर लाबान ने उसकी शादी धोखे से अपनी बड़ी बेटी लिआ से करवा दी। फिर उसने याकूब से कहा कि वह एक हफ्ते बाद राहेल से भी उसकी शादी करा देगा, पर इसके लिए उसे सात साल और काम करना पड़ेगा। (उत्प. 29:25-27) और जब याकूब लाबान के लिए काम कर रहा था, तब भी लाबान ने उसके साथ हेराफेरी की। लाबान 20 साल तक याकूब को धोखा देता रहा!—उत्प. 31:41, 42.
6. याकूब ते ॿियूं कहिड़ियूं मुश्किलूं आहियूं?
6 याकूब को और भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसका परिवार बहुत बड़ा था पर कई बार उसके बेटों की आपस में नहीं बनती थी। यहाँ तक कि उन्होंने अपने एक भाई यूसुफ को गुलामी में बेच दिया। याकूब के दो बेटों, शिमोन और लेवी ने अपने परिवार की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी और यहोवा के नाम पर भी कलंक लगाया। इसके अलावा याकूब की प्यारी पत्नी राहेल ने उनके दूसरे बच्चे को जन्म देते वक्त दम तोड़ दिया। और एक भयानक अकाल की वजह से याकूब को अपने बुढ़ापे में मजबूरन मिस्र जाकर बसना पड़ा।—उत्प. 34:30; 35:16-19; 37:28; 45:9-11, 28.
7. यहोवा कीअं हर कदम ते याकूब जो साथ ॾिनो?
7 इन सब मुश्किलों के बावजूद यहोवा और उसके वादों पर याकूब का विश्वास डगमगाया नहीं। और यहोवा ने भी हर कदम पर उसका साथ दिया। जैसे, वह उसकी संपत्ति बढ़ाता रहा, जबकि लाबान ने उसके साथ बार-बार नाइंसाफी की। और सोचिए उस वक्त याकूब को कितनी खुशी हुई होगी जब वह काफी लंबे समय बाद यूसुफ से दोबारा मिला! उसने यहोवा का कितना शुक्रिया अदा किया होगा कि उसका बेटा उसे वापस मिल गया। याकूब का यहोवा के साथ बहुत अच्छा रिश्ता था, इसलिए वह इतनी सारी मुश्किलों का डटकर सामना कर पाया। (उत्प. 30:43; 32:9, 10; 46:28-30) अगर हमारा भी यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता होगा, तो हम भी उन मुश्किलों का डटकर सामना कर पाएँगे जो अचानक हम पर आ पड़ती हैं।
8. राजा दाविद जी कहिड़ी इच्छा हुई?
8 राजा दाविद यहोवा के लिए जो कुछ करना चाहता था, वह सब नहीं कर पाया। जैसे उसकी बहुत इच्छा थी कि वह यहोवा के लिए एक भवन बनाए। उसने इस बारे में भविष्यवक्ता नातान को बताया। तब नातान ने उससे कहा, “तेरे मन में जो कुछ है वह कर क्योंकि सच्चा परमेश्वर तेरे साथ है।” (1 इति. 17:1, 2) यह सुनकर दाविद खुशी से फूला नहीं समाया होगा। शायद वह तुरंत उस भवन के लिए योजना बनाने लगा होगा।
9. मायूस करण वारी खबर ॿुधी दाविद छा कयो?
9 लेकिन ‘उसी रात’ यहोवा नातान को बताता है कि दाविद उसके लिए भवन नहीं बनाएगा, बल्कि उसका एक बेटा ऐसा करेगा। यह सुनकर नातान तुरंत दाविद के पास जाता है और उसे यह खबर देता है। (1 इति. 17:3, 4, 11, 12) तब दाविद क्या करता है? वह अपना लक्ष्य बदल लेता है और यहोवा के भवन के लिए पैसा और दूसरी चीज़ें इकट्ठा करने में लग जाता है, जिसे आगे चलकर उसका बेटा सुलैमान बनाता।—1 इति. 29:1-5.
10. यहोवा दाविद खे कहिड़ी आसीस ॾिनी?
10 जब दाविद को यह बताया गया कि वह यहोवा के लिए भवन नहीं बनाएगा, तो इसके तुरंत बाद यहोवा उससे एक करार करता है। वह दाविद से वादा करता है कि उसका एक वंशज हमेशा राज करेगा। (2 शमू. 7:16) सोचिए, जब दाविद को मसीह के हज़ार साल के दौरान ज़िंदा किया जाएगा, तो उसे यह जानकर कितनी खुशी होगी कि हमारा राजा यीशु मसीह उसी के खानदान से है! इस किस्से से हम क्या सीखते हैं? अगर हम यहोवा के लिए वह सब ना कर पाएँ जो हम करना चाहते हैं, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। क्या पता यहोवा हमें किसी ऐसे तरीके से आशीष दे जिसकी हमने कभी उम्मीद भी ना की हो!
11. परमेश्वर जो राॼ उन वक्त न आयो जॾहिं पहिरीं सदी जे मसीहियुनि सोचियो हुयो, त बि उन्हनि खे कहिड़ियूं आसीसूं मिलियूं? (प्रेषितों 6:7)
11 पहली सदी के मसीहियों को भी कुछ ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने जो सोचा था, वैसा नहीं हुआ। वे चाहते थे कि परमेश्वर का राज जल्द आ जाए, लेकिन उस वक्त उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई। उन्हें यह भी नहीं पता था कि परमेश्वर का राज ठीक कब आएगा। (प्रेषि. 1:6, 7) ऐसे में उन्होंने क्या किया? वे निराश नहीं हुए, बल्कि प्रचार काम में लगे रहे। और जैसे-जैसे प्रचार काम दूर-दूर तक होने लगा, वे इस बात के साफ सबूत देख पाए कि यहोवा उनकी मेहनत पर आशीष दे रहा है।—प्रेषितों 6:7 पढ़िए।
12. अकाल जे दौरान पहिरीं सदी जे मसीहियुनि छा कयो?
12 पहली सदी के मसीहियों को कुछ ऐसे हालात का भी सामना करना पड़ा जिसके बारे में उन्होंने सोचा नहीं था। एक बार ‘पूरी दुनिया में एक भारी अकाल’ पड़ा। (प्रेषि. 11:28) क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि उस दौरान मसीहियों पर क्या बीती होगी? परिवार के मुखियाओं को यह चिंता हुई होगी कि वे अपने परिवार की ज़रूरतें कैसे पूरी करेंगे। और ज़रा उन नौजवानों के बारे में सोचिए जो यहोवा की और भी ज़्यादा सेवा करना चाहते थे। क्या उन्हें यह लगा होगा कि अब उन्हें अकाल के खत्म होने का इंतज़ार करना होगा? चाहे जो भी हुआ हो, उन मसीहियों ने हालात के मुताबिक खुद को ढाला और उनसे जितना हो सका, उतना प्रचार करते रहे। साथ ही, उनके पास जो कुछ था, उन्होंने खुशी-खुशी यहूदिया के भाई-बहनों के साथ बाँटा।—प्रेषि. 11:29, 30.
13. अकाल जे दौरान मसीहियुनि खे कहिड़ियूं आसीसूं मिलियूं?
13 उस अकाल के दौरान मसीहियों को कौन-सी आशीषें मिलीं? जिन भाई-बहनों तक राहत का सामान पहुँचाया गया, वे साफ देख पाए कि यहोवा उन्हें सँभाल रहा है। (मत्ती 6:31-33) और उन भाई-बहनों के साथ उनका रिश्ता और भी गहरा हो गया होगा, जिन्होंने उनकी मदद की। वहीं जिन मसीहियों ने दान देकर या दूसरे तरीकों से राहत काम में हाथ बँटाया, उन्हें इस बात से खुशी मिली होगी कि वे दूसरों के लिए कुछ कर पाए। (प्रेषि. 20:35) उस दौरान यहोवा ने सभी मसीहियों को आशीषें दीं, क्योंकि उन्होंने हालात के मुताबिक खुद को ढाला।
14. पौलुस ऐं बरनबास सां छा थियो? ऐं उन जो छा नतीजो निकतो? (प्रेषितों 14:21, 22)
14 पहली सदी के मसीहियों पर अकसर ज़ुल्म भी किए गए। कई बार तो ऐसे मौकों पर जब उन्होंने शायद सोचा भी नहीं था। ध्यान दीजिए कि जब पौलुस और बरनबास लुस्त्रा में प्रचार कर रहे थे, तो उनके साथ क्या हुआ। पहले तो लोगों ने ध्यान से उनकी बातें सुनीं और बड़े अच्छे-से उनका स्वागत किया। लेकिन बाद में कुछ विरोधी वहाँ आ धमके और “लोगों को अपनी तरफ कर लिया।” तब जिन लोगों ने पौलुस और बरनबास का स्वागत किया था, उन्हीं में से कुछ ने पौलुस को पत्थरों से मारा और उसे मरा हुआ समझकर छोड़ दिया। (प्रेषि. 14:19) ऐसे में पौलुस और बरनबास ने क्या किया? वे दूसरी जगह जाकर प्रचार करते रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि वे “कई चेले” बना पाए और उनकी बातों और मिसाल से दूसरे भाई-बहनों को भी बहुत हिम्मत मिली। (प्रेषितों 14:21, 22 पढ़िए।) जब पौलुस और बरनबास पर अचानक ज़ुल्म किए गए, तो उन्होंने हार नहीं मानी। और इस वजह से बहुत-से लोगों को फायदा हुआ। अगर हम भी हार न मानें और यहोवा ने हमें जो काम दिया है, उसमें लगे रहें तो वह हमें भी आशीषें देगा।
अॼु जे ज़माने जा भाउर-भेनरु
15. तव्हां भाउ मैकमिलन जे उदाहरण मां छा सिखयो?
15 सन् 1914 से पहले के कुछ सालों में यहोवा के लोग बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगाए हुए थे। जैसे भाई ए. एच. मैकमिलन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। दूसरे कई भाई-बहनों की तरह उन्हें भी लग रहा था कि वे बहुत जल्द स्वर्ग चले जाएँगे। सितंबर 1914 में एक भाषण देते वक्त उन्होंने कहा, “शायद यह मेरा आखिरी भाषण होगा।” पर उन्होंने जैसा सोचा था, वैसा नहीं हुआ। आगे चलकर भाई ने लिखा, “हममें से कुछ लोगों ने शायद थोड़ी हड़बड़ी की। हम यह मान बैठे थे कि हम बस स्वर्ग जाने ही वाले हैं।” फिर उन्होंने लिखा, “असल में हमें प्रभु की सेवा में व्यस्त रहना था।” और भाई मैकमिलन ने सच में खुद को प्रचार करने में व्यस्त रखा। वे जोश से ऐसा करते रहे। उन्हें जेल में कैद ऐसे कई भाई-बहनों का हौसला बढ़ाने का मौका मिला, जिन्होंने सेना में भर्ती होने से इनकार कर दिया था। और जब ढलती उम्र की वजह से वे बहुत कमज़ोर हो गए थे, तब भी वे लगातार मंडली की सभाओं में जाते रहे। जब भाई स्वर्ग में अपना इनाम पाने का इंतज़ार कर रहे थे, तब भी उन्होंने अपने वक्त का सही इस्तेमाल किया। इससे उन्हें क्या फायदा हुआ? सन् 1966 में अपनी मौत से कुछ समय पहले ही उन्होंने लिखा, “आज भी मेरा विश्वास उतना ही अटूट है जितना कि पहले था।” भाई मैकमिलन का रवैया कितना अच्छा था! कई बार शायद हमने सोचा भी ना हो कि हमें इतने लंबे समय तक मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी। पर ऐसे में आइए हम भाई मैकमिलन की तरह बनें और धीरज धरें!—इब्रा. 13:7.
16. भाउ जनिंग्ज़ ऐं हुन जी ज़ाल खे अचानक कहिड़ी मुश्किल जो सामनो करणो पयो? (याकूब 4:14)
16 यहोवा के कई सेवकों को अचानक सेहत से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे भाई हर्बर्ट जनिंग्ज़ b के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उन्होंने अपनी जीवन कहानी में बताया कि वे और उनकी पत्नी घाना में मिशनरी के तौर पर सेवा कर रहे थे और वे बहुत खुश थे। लेकिन फिर एक दिन उन्हें पता चला कि उन्हें एक बड़ी मानसिक बीमारी (एक तरह का मूड डिसऑर्डर) हो गयी है। याकूब 4:14 को ध्यान में रखते हुए भाई ने अपने हालात के बारे में कहा, “यह एक ऐसा ‘कल’ था जिसकी हमने उम्मीद नहीं की थी।” (पढ़िए।) उन्होंने यह भी लिखा, “ज़िंदगी की सच्चाई को स्वीकार करके हमने . . . घाना को और अपने बहुत-से प्यारे दोस्तों को छोड़कर [इलाज करवाने के लिए] वापस कनाडा जाने का फैसला किया।” भाई जनिंग्ज़ और उनकी पत्नी के लिए यह बहुत मुश्किल वक्त था। पर यहोवा की मदद से वे वफादारी से उसकी सेवा करते रहे।
17. भाउ जनिंग्ज़ जे मिसाल मां ॿियनि भाउर-भेनरुनि खे कीअं फायदो थियो?
17 भाई जनिंग्ज़ ने अपनी जीवन कहानी में जो बातें बतायीं, उन्हें पढ़कर दूसरों पर बहुत अच्छा असर हुआ। एक बहन ने लिखा, ‘मैं बहुत समय से पत्रिकाएँ पढ़ रही हूँ, मगर इस लेख ने मुझ पर सबसे ज़्यादा असर किया है। जब मैंने भाई जनिंग्ज़ की कहानी पढ़ी कि उनको अपनी बीमारी की वजह से अपनी ज़िम्मेदारी छोड़नी पड़ी, तो मुझे अपने हालात को सही नज़रिए से देखने में मदद मिली।’ उसी तरह एक भाई ने लिखा, ‘मंडली में दस साल तक प्राचीन के नाते सेवा करने के बाद मुझे यह ज़िम्मेदारी छोड़नी पड़ी, क्योंकि मैं एक मानसिक बीमारी का शिकार हो गया था। मुझे नाकामी की भावनाएँ इस कदर सताने लगीं कि जब भी मैं भाई-बहनों की जीवन कहानियाँ पढ़ता, तो मैं अपनी हालत के बारे में सोचकर मायूस हो जाता था। मगर जब मैंने भाई जनिंग्ज़ की कहानी पढ़ी कि उन्होंने कैसे धीरज धरा, तो मेरे अंदर नया जोश भर आया।’ इससे हम सीखते हैं कि जब अचानक हमारे हालात बदल जाते हैं और ऐसे में भी हम धीरज धरते हैं, तो यह देखकर भाई-बहनों का हौसला बढ़ सकता है। कई बार जैसा हमने सोचा था वैसा नहीं होता, लेकिन तब भी हम दूसरों के लिए विश्वास और धीरज की एक बढ़िया मिसाल हो सकते हैं।—1 पत. 5:9.
18. नाईजीरिया जी हिक भेण खां तव्हां छा सिखयो? (तसवीरूं बि ॾिसो.)
18 यहोवा के कई सेवकों को कोविड-19 जैसी विपत्तियों की वजह से बहुत कुछ सहना पड़ा है। नाईजीरिया में रहनेवाली एक बहन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जिनके पति की मौत हो गयी है। उनके पास ज़्यादा पैसे नहीं थे और खाने-पीने को भी ज़्यादा कुछ नहीं था। एक दिन सुबह उनके पास सिर्फ एक कप चावल ही बचे थे। इसके अलावा उनके पास ना तो कुछ खाने-पीने को था और ना ही पैसे रह गए थे। उनकी बेटी ने उनसे पूछा कि इसके बाद वे क्या खाएँगे। बहन ने अपनी बेटी से कहा कि उन्हें सारपत की विधवा की तरह बनना है, उनके पास जो खाना है वे उसे खाएँगे और बाकी यहोवा पर छोड़ देंगे। (1 राजा 17:8-16) उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वे दोपहर में क्या खाएँगे कि तभी उन्हें भाई-बहनों से एक बड़ा-सा थैला मिला। उसमें खाने-पीने की इतनी सारी चीज़ें थीं कि वे दो हफ्तों तक आराम से खा-पी सकते थे। बहन बताती हैं कि उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं था कि उन्होंने अपनी बेटी से जो बात कही, यहोवा उसे कितने ध्यान से सुन रहा था। सच में, जब हम अचानक आनेवाली मुश्किलों में भी यहोवा पर भरोसा रखते हैं, तो असल में हम उसके और करीब आ जाते हैं।—1 पत. 5:6, 7.
19. भाउ एलेक्सी येरशोव ते कहिड़ा ज़ुल्म कया वया?
19 हाल के सालों में हमारे कई भाई-बहनों को ऐसे ज़ुल्मों का सामना करना पड़ा है, जिनके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। जैसे, भाई एलेक्सी येरशोव की मिसाल पर ध्यान दीजिए जो रूस में रहते हैं। भाई का बपतिस्मा 1994 में हुआ था और उस वक्त रूस में यहोवा की उपासना करने पर कोई पाबंदी नहीं थी। लेकिन आगे चलकर हालात बदल गए। सन् 2020 में कुछ लोग भाई येरशोव के घर में घुस आए। उन्होंने उनके घर की तलाशी ली और उनका काफी सारा सामान ज़ब्त कर लिया। फिर कुछ महीनों बाद सरकार ने उन पर अपराधी होने का इलज़ाम लगाया। असल में एक व्यक्ति भाई के साथ एक साल से बाइबल अध्ययन करने का ढोंग कर रहा था। उसने कुछ वीडियो बनाए थे और उन्हीं के आधार पर भाई पर इलज़ाम लगाए गए। उस आदमी ने उन्हें कितना बड़ा धोखा दिया!
20. भाउ येरशोव यहोवा सां पंहिंजो रिश्तो मज़बूत करण जे लाइ छा कयो?
20 भाई येरशोव पर जो ज़ुल्म किए गए, क्या उसके कुछ अच्छे नतीजे भी निकले? जी हाँ, भाई का यहोवा के साथ रिश्ता और भी मज़बूत हो गया। वे कहते हैं, “अब मैं और मेरी पत्नी साथ मिलकर और भी ज़्यादा प्रार्थना करने लगे हैं। मैं जानता हूँ कि यहोवा की मदद के बिना मैं इस मुश्किल का सामना नहीं कर पाता।” भाई यह भी बताते हैं, “निजी अध्ययन करने से मुझे बहुत फायदा हुआ है। इससे मुझे निराशा पर काबू पाने में काफी मदद मिली है। मैं बीते ज़माने के वफादार सेवकों की मिसाल पर मनन करता हूँ। बाइबल में ऐसे बहुत-से किस्से हैं जिनसे पता चलता है कि मुश्किलों के दौरान शांत रहना और यहोवा पर भरोसा रखना कितना ज़रूरी है।”
21. हिन लेख मां असां छा सिखयो?
21 इस लेख में हमने क्या सीखा? इस दुनिया में हमारे साथ कभी-भी कुछ भी हो सकता है, लेकिन जब हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं तो वह हमेशा हमारी मदद करता है। जैसे इस लेख के मुख्य वचन में लिखा है, “नेक जन पर बहुत-सी विपत्तियाँ तो आती हैं, मगर यहोवा उसे उन सबसे छुड़ाता है।” (भज. 34:19) तो आइए हम अपनी मुश्किलों पर ध्यान देने के बजाय इस बात पर ध्यान दें कि यहोवा कैसे हमें सँभालता है। तब हम भी प्रेषित पौलुस की तरह यह कह पाएँगे, “जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्ति मिलती है।” —फिलि. 4:13.
गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा
a इस दुनिया में हम पर कभी-भी कोई मुसीबत आ सकती है। पर हम यकीन रख सकते हैं कि ऐसे में भी यहोवा अपने वफादार लोगों को सँभालेगा। बीते ज़माने में उसने अपने सेवकों को कैसे सँभाला? और आज वह उन्हें कैसे सँभाल रहा है? इस लेख में हम बीते ज़माने के लोगों और हमारे दिनों के कुछ भाई-बहनों के उदाहरणों पर ध्यान देंगे। इससे हमारा यकीन बढ़ेगा कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह हमें भी सँभालेगा।