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अध्ययन लेख 14

‘इन मां सभिनी खे खबर पवंदी त तव्हां मुंहिंजा चेला आहियो’

‘इन मां सभिनी खे खबर पवंदी त तव्हां मुंहिंजा चेला आहियो’

“अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”​—यूह. 13:35.

गीत 106 प्यार बढ़ाएँ

एक झलक a

जब लोग देखते हैं कि यहोवा के लोगों के बीच कितना प्यार है, तो उन्हें कैसा लगता है? (पैराग्राफ 1)

1. जॾहिं माण्हू पहिरियों दफो सभाउनि में ईंदा आहिनि, तॾहिं उन्हनि खे कहिड़ी ॻाल्हि सुठी लॻंदी आहे? (तसवीर बि ॾिसो.)

 सोचिए, एक पति-पत्नी पहली बार यहोवा के साक्षियों के राज-घर में सभा के लिए आए हैं। सब लोग बड़े प्यार से उनसे मिलते हैं। वे यह भी देखते हैं कि इन लोगों के बीच कितना प्यार है। यह सब देखकर उन्हें बहुत अच्छा लगता है। सभा से घर लौटते वक्‍त पत्नी अपने पति से कहती है, ‘कितने अच्छे थे ना ये लोग! दूसरों से कितने अलग थे।’

2. कुछ माण्हू छो यहोवा जी सेवा करण छॾे ॾींदा आहिनि?

2 यहोवा के लोगों के बीच जो प्यार है, वह सच में कमाल का है! पर ऐसा नहीं है कि हमसे गलतियाँ नहीं होतीं। (1 यूह. 1:8) और हम जितना ज़्यादा दूसरों को जानने लगते हैं, हमें उनकी कमियाँ दिखायी देने लगती हैं। (रोमि. 3:23) दुख की बात है कि कुछ लोगों ने दूसरों की कमियों की वजह से यहोवा की सेवा करनी छोड़ दी है।

3. यीशु जे चेलनि जी पहिचान छा आहे? (यूहन्‍ना 13:34, 35)

3 ज़रा इस लेख के मुख्य वचन पर दोबारा गौर कीजिए। (यूहन्‍ना 13:34, 35 पढ़िए।) यीशु के सच्चे चेलों की पहचान किस बात से होती? इस बात से कि उनके बीच प्यार होगा, ना कि इससे कि वे कोई गलती नहीं करेंगे। यह भी गौर कीजिए कि यीशु ने अपने चेलों से यह नहीं कहा था, ‘इसी से तुम  जानोगे कि तुम मेरे चेले हो।’ उसने कहा, “इसी से सब  जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” इस तरह यीशु ने बताया कि उसके चेलों के बीच जो निस्वार्थ प्यार होगा, उससे ना सिर्फ मंडली के लोग, बल्कि बाहरवाले भी यह साफ समझ पाएँगे कि वे ही सच में यीशु के चेले हैं।

4. कुछ माण्हू सच्चे मसीहियुनि जे बारे में शायद छा ॼाणण चाहिन?

4 जो लोग यहोवा के साक्षी नहीं हैं, उनमें से कुछ शायद सोचें, ‘प्यार से यीशु के सच्चे चेलों की पहचान कैसे होती है? यीशु ने कैसे ज़ाहिर किया कि वह उनसे प्यार करता है? और आज हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं?’ हम यहोवा के साक्षियों को इन सवालों के जवाबों पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से हम एक-दूसरे से और भी प्यार कर पाएँगे, तब भी जब कोई गलती करता है।​—इफि. 5:2.

प्यार सां सच्चे मसीहियुनि जी पहिचान कीअं थींदी आहे?

5. यूहन्‍ना 15:12, 13 में यीशु जे शब्दनि जो छा मतलब आहे?

5 यीशु ने साफ बताया कि उसके चेलों के बीच एक खास तरह का प्यार होगा। (यूहन्‍ना 15:12, 13 पढ़िए।) ध्यान दीजिए कि यीशु ने उन्हें क्या आज्ञा दी थी। उसने कहा, “तुम एक-दूसरे से प्यार करो जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है।”  इसका क्या मतलब है? यीशु ने समझाया कि उन्हें दूसरे मसीहियों को खुद से बढ़कर प्यार करना है, इतना प्यार करना है कि अगर ज़रूरत पड़े, तो वे अपनी जान देने के लिए भी तैयार हो जाएँ। b

6. परमेश्‍वर जे वचन में प्यार ते ज़ोर ॾिनल आहे, इहो असां कीअं था चई सघूं?

6 परमेश्‍वर के वचन में प्यार करने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। कई भाई-बहनों की मनपसंद आयतें प्यार के बारे में ही हैं। जैसे, “परमेश्‍वर प्यार है।” (1 यूह. 4:8) “तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।” (मत्ती 22:39) “प्यार ढेर सारे पापों को ढक देता है।” (1 पत. 4:8) “प्यार कभी नहीं मिटता।” (1 कुरिं. 13:8) इन आयतों और ऐसी ही दूसरी आयतों से साफ पता चलता है कि दूसरों से प्यार करना कितना ज़रूरी है।

7. शैतान माण्हुनि खे प्यार ऐं एकता में रहण छो न थो सेखारे सघे?

7 बहुत-से लोग कहते हैं, ‘आज सभी धर्म यह दावा करते हैं कि वे जो सिखाते हैं, वही सच है। लेकिन जब परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई सिखाने की बात आती है, तो कोई कुछ कहता है, तो कोई कुछ। फिर यह कैसे पता चल सकता है कि कौन-सा धर्म सच्चा है?’ शैतान ने इतने सारे धर्म बना दिए हैं कि लोगों को समझ में नहीं आता कि कौन-सा धर्म सच्चा है। पर वह एक ऐसा संगठन नहीं बना सकता जिसके लोग पूरी दुनिया में फैले हों, फिर भी उनके बीच सच्चा प्यार हो। यह सिर्फ यहोवा ही कर सकता है, क्योंकि जिन लोगों पर उसकी पवित्र शक्‍ति और उसकी आशीष होती है, उन्हीं के बीच सच्चा प्यार होता है। (1 यूह. 4:7) इसी वजह से यीशु ने कहा था कि उसके चेलों की पहचान इस बात से होगी कि उनके बीच सच्चा प्यार होगा।

8-9. यहोवा जे गवाहनि में प्यार ॾिसी, घणनि माण्हुनि खे कीअं लॻो?

8 जैसे यीशु ने बताया था, बहुत-से लोगों ने देखा है कि यहोवा के लोगों के बीच सच्चा प्यार है। यह देखकर वे समझ गए हैं कि ये लोग ही यीशु के सच्चे चेले हैं। इयन नाम के भाई का कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। वे बताते हैं कि उनके घर के पास एक स्टेडियम था जहाँ वे पहली बार यहोवा के साक्षियों के अधिवेशन में गए थे। उसके कुछ ही महीनों पहले वे उसी स्टेडियम में एक मैच देखने गए थे। वे कहते हैं, “उस मैच और इस अधिवेशन में ज़मीन-आसमान का फर्क था। यहोवा के साक्षी बड़े अदब से एक-दूसरे से बात कर रहे थे और सबने बहुत अच्छे कपड़े पहने हुए थे और उनके बच्चों का व्यवहार भी बहुत अच्छा था। . . . जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी, वह यह थी कि ऐसा लग रहा था इन लोगों के पास दुनिया की सारी खुशियाँ हैं और इन्हें किसी बात की चिंता नहीं है। मैं भी ऐसे ही जीना चाहता था। उस दिन जो भाषण दिए गए थे, उनमें से एक भी मुझे याद नहीं, पर साक्षी जिस तरह से व्यवहार कर रहे थे, वह मैं कभी नहीं भूलूँगा।” c असल में हमारा व्यवहार इसलिए इतना अच्छा है, क्योंकि हम एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं। इसी प्यार की वजह से हम अपने भाई-बहनों की इज़्ज़त करते हैं और उनकी परवाह करते हैं।

9 जॉन नाम के एक भाई ने जब सभाओं में जाना शुरू किया, तो उन्हें भी कुछ ऐसा ही लगा था। वे कहते हैं, ‘वहाँ सब एक-दूसरे से बहुत अच्छे-से बात कर रहे थे। उन्हें देखकर मैं हैरान रह गया! ऐसा लग रहा था जैसे ये किसी और ही दुनिया से हैं। उनके बीच जो प्यार था, वह देखकर मुझे यकीन हो गया कि यही सच्चा धर्म है।’ d बहुत-से लोगों का ऐसा ही अनुभव रहा है। इनसे यह साबित हो जाता है कि यहोवा के लोग ही सही मायनों में यीशु के नक्शे-कदम पर चलते हैं।

10. असां खे खास करे सच्चो प्यार ॾेखारण जो कॾहिं मौको मिलंदो आहे? (फुटनोट बि ॾिसो.)

10 जैसे लेख की शुरूआत में हमने चर्चा की थी, हममें से कोई भी परिपूर्ण नहीं है। इसलिए कई बार हमारे भाई-बहन कुछ ऐसा कर देते हैं जिससे हमें बुरा लगता है। e (याकू. 3:2) जब ऐसा होता है, तो हम जिस तरह उनसे व्यवहार करते हैं उससे खासकर हम दिखा सकते हैं कि हमें उनसे सच में प्यार है। इस मामले में हम यीशु से क्या सीख सकते हैं?​—यूह. 13:15.

यीशु पंहिंजनि प्रेषितनि लाइ प्यार कीअं ज़ाहिर कयो?

यीशु के प्रेषितों ने कई गलतियाँ कीं, फिर भी वह उनसे प्यार करता रहा (पैराग्राफ 11-13)

11. याकूब ऐं यूहन्‍ना में कहिड़ियूं खामियूं हुयूं? (तसवीर बि ॾिसो)

11 यीशु ने अपने चेलों से यह उम्मीद नहीं की कि वे कभी कोई गलती नहीं करेंगे। इसके बजाय वह जानता था कि उनमें कुछ कमियाँ हैं और वे कमियाँ दूर करने में उसने प्यार से उनकी मदद की, ताकि यहोवा उनसे खुश हो। एक बार यीशु के दो चेलों, याकूब और यूहन्‍ना, ने अपनी माँ से कहा कि वह यीशु से कहे कि वह उन्हें अपने राज में ऊँचा पद दे। (मत्ती 20:20, 21) इस तरह याकूब और यूहन्‍ना ने दिखाया कि उनमें घमंड है और वे दूसरों से बड़ा बनना चाहते हैं।​—नीति. 16:18.

12. छा सिर्फ याकूब ऐं यूहन्‍ना में ही खामियूं हुयूं? समझायो.

12 ऐसा नहीं था कि उस मौके पर याकूब और यूहन्‍ना ने ही दिखाया कि उनमें कमज़ोरियाँ हैं। गौर कीजिए कि जब इस बारे में दूसरे प्रेषितों को पता चला, तो उन्होंने क्या किया। बाइबल में लिखा है, “जब बाकी दस ने इस बारे में सुना, तो उन्हें दोनों भाइयों पर बहुत गुस्सा आया।” (मत्ती 20:24) हम कल्पना कर सकते हैं कि याकूब, यूहन्‍ना और बाकी प्रेषितों के बीच कैसे गरमा-गरम बहस छिड़ गयी होगी। शायद बाकी प्रेषितों ने उनसे कुछ इस तरह कहा होगा: ‘तुम्हें क्या लगता है, तुम हमसे ज़्यादा काबिल हो? सिर्फ तुम दोनों ने ही यीशु के साथ मेहनत की है? हमने कुछ नहीं किया? हम सब ऊँचा पद पाने के लायक नहीं हैं?’ उन प्रेषितों ने चाहे जो भी कहा हो, पर एक बात तो है: उस मौके पर वे एक-दूसरे से प्यार करने से चूक गए।

13. प्रेषितनि जे खामियुनि जे बावजूद बि, यीशु उन्हनि सां कीअं व्यवहार कयो? (मत्ती 20:25-28)

13 ऐसे हालात में यीशु ने क्या किया? वह प्रेषितों पर गुस्सा नहीं हुआ। उसने उनसे यह नहीं कहा कि अब मैं दूसरे प्रेषित ढूँढ़ूँगा, ऐसे आदमी जो तुम से ज़्यादा नम्र हों और जो हमेशा एक-दूसरे के साथ प्यार से पेश आएँ। इसके बजाय यीशु ने उनके साथ सब्र रखा और उन्हें प्यार से समझाया, क्योंकि वह जानता था कि वे दिल के अच्छे हैं। (मत्ती 20:25-28 पढ़िए।) और ऐसा नहीं था कि प्रेषितों के बीच पहली बार यह बहस हो रही थी कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। और आगे चलकर भी उनके बीच इस तरह की बहस हुई। फिर भी यीशु उनके साथ हमेशा प्यार से पेश आया।​—मर. 9:34; लूका 22:24.

14. यीशु जा प्रेषित कहिड़े माहोल में वॾा थिया हुआ?

14 यीशु ने ज़रूर इस बात को ध्यान में रखा होगा कि उसके प्रेषित किस समाज में पले-बढ़े हैं। (यूह. 2:24, 25) यहूदी समाज में धर्म गुरु रुतबे और पद को बहुत अहमियत देते थे। (मत्ती 23:6; इसी आयत के अध्ययन नोट में सभा-घर में सबसे आगे की जगह  वीडियो से तुलना करें।) वे खुद को बहुत धर्मी भी समझते थे। f (लूका 18:9-12) यीशु ने इस बात को समझा कि जब आस-पास के लोग ऐसे हैं, तो उनका असर चेलों पर भी पड़ा होगा, वे भी थोड़ा-बहुत उनकी तरह सोचने लगे होंगे। (नीति. 19:11) इसलिए यीशु ने अपने चेलों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं की। और जब उनसे कोई भूल-चूक हो जाती, तो वह उन पर भड़क नहीं उठता था, बल्कि उनके साथ सब्र रखता था। वह जानता था कि वे सही काम करना चाहते हैं। इसलिए उसने उन्हें सिखाया कि वे बड़ा बनने की कोशिश ना करें, बल्कि और भी नम्र हों और सब से प्यार करें।

असां यीशु जी मिसाल ते कीअं हली सघूं था?

15. असां याकूब ऐं यूहन्‍ना जे किस्से मां छा सिखी सघूं था?

15 याकूब और यूहन्‍ना के किस्से से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। परमेश्‍वर के राज में एक ऊँचा पद माँगकर उन दोनों ने गलत किया। लेकिन बाकी प्रेषितों ने जो किया, वह भी सही नहीं था। उन्होंने अपने बीच एकता नहीं बनाए रखी। लेकिन यीशु ने अपना आपा नहीं खोया बल्कि सभी प्रेषितों से प्यार से व्यवहार किया। इससे हम क्या सीखते हैं? सिर्फ इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे क्या करते हैं, बल्कि दूसरों की गलतियाँ देखकर हम कैसा व्यवहार करते हैं,  इससे भी बहुत फर्क पड़ता है। अगर कोई भाई या बहन कुछ ऐसा कर देता है जिससे हमें बुरा लगता है, तो हम सोच सकते हैं, ‘मुझे उसकी बात का इतना बुरा क्यों लग रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुझमें ही कोई खामी है और मुझे सुधार करना है? कहीं वह भाई या बहन किसी मुश्‍किल से तो नहीं गुज़र रहा है? भले ही उसने जो किया वह गलत है, पर क्या मैं प्यार की खातिर उसे माफ कर सकता हूँ?’ इस तरह अगर हम भाई-बहनों से प्यार करते रहेंगे, तो हम साबित करेंगे कि हम सच में यीशु के चेले हैं।

16. असां यीशु खां ॿियो छा सिखी सघूं था?

16 यीशु से हम यह भी सीखते हैं कि हमें अपने भाई-बहनों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। (नीति. 20:5) यीशु की तरह हम लोगों का दिल तो नहीं पढ़ सकते, लेकिन जब भाई-बहन कोई गलती करते हैं, तो उनसे चिढ़ने के बजाय हम उनके साथ सब्र रख सकते हैं। (इफि. 4:1, 2; 1 पत. 3:8) ऐसा करना तब और भी आसान हो जाता है, जब हम भाई-बहनों को अच्छे-से जानने लगते हैं। आइए एक उदाहरण पर ध्यान दें।

17. हिक सफरी निगरान जॾहिं हिक भाउ खे सुठे नमूने ॼाणियो त उन जो छा फायदो थियो?

17 पूर्वी अफ्रीका में सेवा करनेवाले एक सफरी निगरान एक मंडली में एक भाई से मिले। उन्हें लगा कि वह भाई बड़ा बेरूखा है। वे बताते हैं, “मैंने उस भाई से दूर-दूर रहने के बजाय ठान लिया कि मैं उसे अच्छी तरह जानूँगा।” ऐसा करने से वे जान पाए कि वह भाई जिस माहौल में पला-बढ़ा था, उसी वजह से उसका व्यवहार ऐसा था। भाई यह भी बताते हैं, “जब मुझे पता चला कि दूसरों के साथ अच्छे-से पेश आना उसके लिए कितना मुश्‍किल था और इसके लिए उसने कितनी मेहनत की और अपने अंदर काफी सुधार किया है, तो मैं उसकी और भी इज़्ज़त करने लगा। फिर हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए।” सच में, जब हम भाई-बहनों को अच्छी तरह जानने की कोशिश करते हैं, तो उनसे प्यार करना और भी आसान हो जाता है।

18. अगर कंहिं भाउ या भेण असां खे चोट पहुंचायी आहे, त असां कहिड़नि सवालनि जे बारे में सोचे सघूं था? (नीतिवचन 26:20)

18 शायद कई बार हमें लगे कि जिस भाई ने हमें चोट पहुँचायी है, उससे हमें बात करनी चाहिए। पर ऐसा करने से पहले हमें इस बारे में सोचना चाहिए, ‘जो कुछ हुआ था, क्या उस बारे में मुझे सबकुछ पता है?’ (नीति. 18:13) ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि उससे अनजाने में गलती हो गयी?’ (सभो. 7:20) ‘क्या मुझसे भी कभी ऐसी गलती हुई है?’ (सभो. 7:21, 22) ‘अगर मैं उससे जाकर बात करूँ, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि बात बनने के बजाय और बिगड़ जाए?’ (नीतिवचन 26:20 पढ़िए।) जब हम समय निकालकर इन सवालों के बारे में सोचेंगे, तो उस भाई के लिए हमारे दिल में और भी प्यार बढ़ेगा। और फिर हम शायद उस भाई की गलती को भुला पाएँ और उसे माफ कर पाएँ।

19. तव्हां छा करण जो इरादो कयो आहे?

19 पूरी दुनिया में यहोवा के साक्षी एक-दूसरे से प्यार करते हैं और इस तरह वे साबित करते हैं कि वे ही सच में यीशु के चेले हैं। हममें से हरेक भी जब भाई-बहनों की कमज़ोरियों के बावजूद उनसे प्यार करता है, तो वह साबित करता है कि वह सच में यीशु का चेला है। इस तरह जब हम भाई-बहनों से प्यार करते हैं, तो दूसरे लोग समझ पाते हैं कि यहोवा के साक्षियों का धर्म ही सच्चा है। और फिर शायद वे भी हमारे साथ मिलकर परमेश्‍वर यहोवा की उपासना करने लगें, जो सब से बहुत प्यार करता है। तो आइए ठान लें कि हम एक दूसरे-से प्यार करते रहेंगे, ऐसा प्यार जो सच्चे मसीहियों की पहचान है।

गीत 17 “मैं चाहता हूँ”

a हमारे बीच सच्चा प्यार देखकर बहुत-से लोग सच्चाई की तरफ खिंचे चले आते हैं। लेकिन हम अपरिपूर्ण हैं और हम सब से गलतियाँ हो जाती हैं। इसलिए कई बार भाई-बहनों से प्यार करना हमारे लिए मुश्‍किल हो सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि भाई-बहनों से प्यार करना क्यों इतना ज़रूरी है और जब किसी से गलती हो जाती है, तो हम यीशु की तरह उससे कैसे व्यवहार कर सकते हैं।

c भाई इयन की कहानी पढ़ने के लिए jw.org/hi पर जाएँ और “खोजिए” बक्स में “अब मुझे जीने का मकसद मिल गया है” टाइप करें।

d भाई जॉन की कहानी पढ़ने के लिए jw.org/hi पर जाएँ और “खोजिए” बक्स में “मुझे लगता था ज़िंदगी अच्छे-से कट रही है” टाइप करें।

e इस लेख में उस तरह के बड़े-बड़े पापों की बात नहीं की गयी है जैसे कि 1 कुरिंथियों 6:9, 10 में बताए गए हैं और जिन्हें प्राचीन निपटाते हैं।

f एक किताब से पता चलता है कि इसके काफी समय बाद एक रब्बी ने कहा, “इस दुनिया में अब्राहम के जैसे कम-से-कम 30 नेक बंदे तो होंगे ही। अगर 30 हैं, तो उनमें से दो मैं और मेरा बेटा हैं। अगर 10 हैं, तो उनमें से दो मैं और मेरा बेटा हैं। अगर पाँच हैं, तो उनमें से दो मैं और मेरा बेटा हैं। अगर दो हैं, तो वे मैं और मेरा बेटा ही हैं। और अगर सिर्फ एक है, तो वह मैं हूँ।”